Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 30 (last part) - Vrindavan Lal Verma
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अट्ठारह जून आई। ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी। शुक्रवार। सफ़ेद और पीली पौ फटी। उषा ने अपनी मुस्कान बिखेरी। रानी स्नान ध्यान और गीता के अट्ठारहवें अध्याय के पथ से निबट चुकी। झींगुरों की झंकार पर एकाध चिड़िया ने चहक लगाई। रानी ने नित्यवत अपने रिसाले की लाल कुर्ती की मर्दाना पोशाक पहनी। दोनो ओर एक एक तलवार बांधी और पिस्तौलें लटकाई। गले में मोतियों और हीरों की माला - जिससे संग्राम के घमासान में उनके सिपाहियों को उनके पहिचानने में सुविधा रहे। लोहे के कुले पर चन्देरी का जरतारी लाल साफ़ बांधा। लोहे के दस्ताने और भुजबंद पहने। इतने में उसके पाँचों सरदार आ गए।
मुंदर ने कहा, “सरकार घोड़ा लंगड़ाता है। कल की लड़ाई में या तो घायल हो गया है ये ठोकर खा गया है।”
रानी ने आज्ञा दी, “तुरंत दूसरा अच्छा और मज़बूत घोड़ा ले आ।”
मुंदर घोड़ा लेने गई और उसने अस्तबल में से एक बहुत तगड़ा और देखने में पानीदार घोड़ा चुना।
अस्तबल के प्रहरी ने कहा, “हमारे सिंधिया सरकार का यह ख़ास घोड़ा है।”
मुंदर बोली, “ख़ास ही चाहिए। हमारी सरकार की सवारी में आवेगा।”
प्रहरी - “झाँसी की रानी साहब की सवारी में?”
मुंदर - “हाँ”
प्रहरी - “ख़ैर ठीक है। हमारे सरकार जब इस पर बैठते थे बहुत ऊबते थे। इसके जाने से कुछ रंज होता है।”
मुंदर - “क्यों?”
प्रहरी - “जब सरकार इसको ना पावेंगे दुखी होंगे।”
मुंदर जल्दी में थी। घोड़ा लेकर चली गई।
रानी ने अपने सरदारों को हिदायतें दी।
रानी ने कहा, “कुंवर गुल मुहम्मद, आज तुमको अपने जौहर का जौहर दुखलाना है। कल की लड़ाई का हाल देखकर आज जीत की आशा होती है। परंतु यदि पश्चिम या उत्तर का मोर्चा उखाड़ जाय तो उसको सम्भालना और दक्षिण चल पड़ने की तैयारी में रहना।”
“सरकार”। गुल मुहम्मद बोला, “अम सब पठान आज कट जाने का क़सम खाया है। जो बचेगा वो दखन जाएगा। आप दखन जाना सरकार। अमारा राहतगढ लेना। अमारा भौत पठान वहाँ मारा गया। उनका यादगार बनवाना।”
“नहीं कुंवर साहब हम जीतेंगे “रानी ने कहा, “दक्षिण जाने की बात तो तब उठेगी जब यहाँ कूच हाथ न रहे। फ़ौजदार के विचार में जीतने की बात पहले उठनी ही चाहिए, परंतु दूसरी बात जो तै कि जावे वह बच निकालने और फिर कहीं जमकर युद्ध करने की है।”
मुंदर बोली, “सरकार कुछ जलपान कर ले। इसी समय से हवा में कुछ कुछ गर्मी है। दिखता है लू बहुत चलेगी।”
रानी ने कहा, “तुम लोग कुछ खा लो। दामोदर राव को खूब खिला पिला लो। पीठ पर पानी का प्रबंध रखना। मैं केवल शर्बत पियूँगी।”
जूही - “मैं भी शर्बत पियूँगी।”
रानी - “देशमुख, तुम?”
देशमुख - “मैं तो कुछ का पी आया।”
रानी - “रघुनाथ सिंह?”
रघुनाथ सिंह - “में कुछ खाऊँगा।”
रानी - “तुम और मुंदर कुछ खा पीकर झटपट शर्बत बना लाओ।”
मुंदर और रघुनाथ सिंह गए। दामोदर राव आ गया। रानी ने उसको खिलाया पिलाया।
रानी ने जूही से कहा, “आज तेरी सुगंध ऐसी बरसे कि बैरी बिछ जाएँ।”
जूही प्रसन्न होकर बोली, “आज मैं जो कुछ कर सकूँ, कह नहीं सकती, परंतु आँख खुलते ही जो कुछ प्रण किया है, उसके अनुसार अवश्य काम करूँगी।”
रानी - “परंतु को कुछ करे, ठंडक के साथ करना। केवल उत्तेजना से बहुत सहायता नहीं मिलेगी।”
जूही - “तभी तो सरकार मैं हँस रही हूँ। एक हसरत मन में रही जाती है - आपको गाना न सुना पाया।”
रानी - “किसी दिन सुनूँगी।”
जूही - “हाँ सरकार, अवश्य।” जूही ज़रा ज़्यादा हँस पड़ी।
रानी - “तेरी हँसी आ कुछ भीषण है।”
जूही - “काम इससे अधिक भीषण होगा सरकार।”
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मुंदर और रघुनाथ सिंह ने कुछ भी न खाकर जेबों में कलेवा डाला और पीठ पर पानी का बर्तन कस लिया। झटपट शर्बत बनाया।
“मुंदरबाई” , रघुनाथ सिंह ने कहा, “रानी साहब का साथ एक क्षण के लिए भी न छूटने पावे। वे आज अंतिम युद्ध लड़ने जा रही हैं।”
मुंदर - “आप कहाँ रहेंगे?”
रघुनाथ सिंह - “जहां उनकी आज्ञा होगी। वैसे आप लोगों के समीप ही रहने का प्रयत्न करूँगा।”
मुंदर - “मैं चाहती हूँ आप बिलकुल निकट रहे। मुझे लगता है मैं आज मारी जाऊँगी। आपके निकट होने से शांति मिलेगी।”
रघुनाथ सिंह - “मैं भी नहीं बचूँगा। रानी साहब को किसी प्रकार सुरक्षित रखना है। मैं तुम्हें तुरंत ही स्वर्ग में मिलूँगा। केवल आगे पीछे की बात है।” वह ज़रा सूखी हँसी हँसा।
मुंदर ने रघुनाथ सिंह की ओर आँसू भारी आँखों से देखा। कुछ कहने के लिए होंठ हिले। रघुनाथ सिंह की आँखें भी धुंधली हुई।
दूर से दुश्मन की बिगुल के शब्द की झाई काम में पड़ी। मुंदर ने रघुनाथ सिंह को मस्तक नवाकर प्रणाम किया और उस ओट में जल्दी आँसू पोंछ डाले। रघुनाथ सिंह ने मुंदर को नमस्कार किया फिर तुरंत दोनों शर्बत लिए हुए रानी के पास पहुँचे।
मुंदर ने जूही को पिलाया रघुनाथ सिंह ने रानी को। अंग्रेजों की बिगुल का साफ़ शब्द सुनाई दिया। तोप का धड़ाका हुआ, गोला सन्ना कर ऊपर से निकल गया। रानी ने दूसरा कटोरा नहीं पाई पाया।
रानी ने रामचंद्र देशमुख को आदेश दिया, “दामोदर को आज तुम पीठ पर बांधो। यदि मैं मारी जाऊँ तो इसको किसी तरह दक्षिण सुरक्षित पहुँचा देना। तुमको आज मेरे प्राणों से बढ़कर अपनी रक्षा की चिंता करनी होगी। दूसरी बात यह है कि मारी जाने पर ये विधर्मी मेरी देह को न छूने पावे। बस। घोड़ा लाओ।”
मुंदर घोड़ा ले आई। उसकी आँखें छलछला रही थी। पूर्व दिशा में अरुणिमा फैल गई। अबकी बार कई तोपों का धड़ाका हुआ।
रानी मुस्कराई। बोली, “यह तात्या की तोपों का जवाब है।”
मुंदर की छलकती हुई आँखों को देखकर कहा, “यह समय आँसुओं का नहीं है, मुंदर। जा, तुरंत अपने घोड़े पर सवार हो।”
अपने लिए आए हुए थोड़े को देख कर बोली, “यह अस्तबल को प्यार करने वाला जानवर है। परंतु अब दूसरे को चुनने का समय ही नहीं है। इसी से काम निकालूँगी।”
जूही के सिर पर हाथ फेर कर कहा, “जा जूही अपने तोपख़ाने पर। छका तो दे इन बैरियों को आज।”
जूही ने प्रणाम किया। जाते हुए कह गई, “इस जीवन का यथोचित अभिनय आपको न दिखला पाया। ख़ैर।”
अंग्रेजों के गोलों की वर्षा हो उठी। रानी के सब सरदार और सवार घोड़ों पर जम गए, जूही का तोपख़ाना आग उगलने लगा।
इतने में सूर्य का उदय हुआ।
सूर्य की किरणों ने रानी के सुंदर मुख को प्रदीप्त किया। उनके नेत्रों की ज्योति दुहरे चमत्कार से भासमान हुई। लाल वर्दी के ऊपर मोटी - हीरों का कंठ दमक उठा और, चमक पड़ी म्यान से निकली हुई तलवार।
रानी ने घोड़े को एड लगाई। पहले ज़रा हिचक फिर तेज हो गया। रानी ने सोचा कई दिन का बांध होगा, थोड़ी देर में गरम हो जाएगा।
उत्तर और पश्चिम की दिशाओं में तात्या और राव साहब के मोर्चे थे। दक्षिण में बाँदा के नवाब का, रानी ने पूर्व की ओर झपट लगाई।
गत दिवस की हार के कारण अंग्रेज जनरल सावधान और चिंतित हो गए थे। इन लोगों ने अपनी पैदल पलटनें पूर्व और दक्षिण के बीहड़ में छिपा ली और हुज़ूर सवारों की कई दिशाओं से आक्रमण करने की योजना थी। तोपें पीठ पर रक्षा के लिए थी ही, हुज़र सवारों ने पहला हमला कड़ाबीन बन्दूकों से किया। बन्दूकों का जवाब बन्दूकों से दिया गया। रानी ने आक्रमण पर आक्रमण करके हुज़ूर सवारों को पीछे हटाया। दोनो ओर के सवारों की बेहिसाब दौड़ से धूल के बादल छा गए। रानी के रन कौशल के मारे अंग्रेज जनरल थर्रा गए। काफ़ी समय हो गया, परंतु अंग्रेजों को पेशवाई मोर्चों में निकल जाने की गुंजाइश न मिली।
जूही की तोपें ग़ज़ब ढ़ा रहीं थी। अंग्रेज नायक ने इन तोपों का मुँह बंद करना तै किया। हुज़र सवार बढ़ते जाते थे, मरते जाते थे, परंतु उन्होंने इस तरफ़ की तोपों को चुप करने का निश्चय कर लिया था। रानी ने जूही की सहायता के लिए कुमुक भेजी। उसी समय उनको खबर मिली कि पेशवा की अधिकांश ग्वालियरी सेना और सरदार अपने महाराज की शरण में चले गए।
मुंदर ने रानी से कहा, “सवेरे अस्तबल का प्रहरी रिस रिस कर अपने ‘सरकार’ का स्मरण कर रहा था। मुझे संदेह हो गया था कि ग्वालियरी में कुछ गड़बड़ करेंगे।”
“गाँठ में समय न होने के कारण कुछ नहीं किया जा सकता था”, रानी बोली, “अब जो कुछ सम्भव है वह करो।”
इनकी लालकुर्ती अब तलवार खींच कर आगे बधी। उस धूल धूसरित प्रकाश में भी तलवारों की चमचमाहट ने चकाचौंध लगा दी।
कुछ ही समय उपरांत समाचार मिला कि ग्वालियरी सेना के पर पक्ष में मिल जाने के कारण राव साहब के दो मोर्चे छिन गए और अंग्रेज उनमें से घुसने लगे हैं। रानी के पीछे पैदल पलटन थी। उसको स्थिति सम्भालने की आज्ञा देकर वह एक ओर आगे बधी। उधर हुज़र सवार जूही के तोपख़ाने पर जा टूटे। जूही तलवार से भिड़ गई। घिर गई और मारी गई। मरते समय उसने आ तक नहीं की। चिर गई थी। परंतु शत्रु की तलवार चीरने में, जिस बात में असमर्थ रही - वह थी जूही कि क्षीण मुस्कुराहट जो उसके होठों पर अनंत दिव्यता की गोद में खेल गई।
वर्दी के काट जाने पर हुजरों ने देखा की तोपख़ाने का अफ़सर गोरे रंग की एक सुंदर युवती थी। और उसके होठों पार मुस्कुराहट थी।
समाचार मिलते ही रानी ने इस तोपख़ाने का प्रबंध किया।
इतने में ब्रिगेडियर स्मिथ ने अपने छिपे हुए पेडलों को छिपे हुए स्थानों से निकाला। वें संगीने सीधी किए रानी के पीछे वाली पैदल पलटन पर दो आरशवों से झपटे। पेशवा की पैदल पलटन घबरा गई। उसके पैर उखड़े। भाग उठी। रानी ने प्रोत्साहन, उत्तेजन दिया। परंतु उनके और उस भागती हुई पलटन के बीच में गोरों की संगीनें और हुजरों के घोड़े आ चुके थे।
अंग्रेजों की कड़ाबीनें, संगीने और तोपें पेशवाई सेना का संहार कर उठी। पेशवा की दो तोपें भी उन लोगों ने छीन ल। अंग्रेज़ी सेना बाढ़ पर आई हुई नदी की तरह बढ़ने और फैलने लगी।
रानी की रक्षा की लिए लाल कुटी सवार अटूट शौर्य और अपार विक्रम दिखलाने लगे। न कड़ाबीन की परवाह, न संगीन का भय और तलवार तो मानों उनकी ईश्वरीय दें थी। उस तेजस्वी दल ने घंटो अंग्रेजों का प्रचंड सामना किया। रानी धीरे धीरे पश्चिम दक्षिण की ओर अपने मोर्चे की शेष सेना से मिलने के लिए मूडी। यह मिलान लगभग असम्भव था, क्योंकि उस भागती हुई पलटन और रानी के बीच में बहुसंख्यक हुज़र सवार और संगीन बरदार पैदल थे। परंतु उन बचे खुचे लालकुर्ती वीरों ने अपनी तलवारों की आड़ बनाई।
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दांतों में थामी और दोनो हाथों से तलवार चला कर अपना मार्ग बन्ना आरम्भ कर दिया। दक्षिण पश्चिम की ओर सों रेखा नाला था। आगे चलकर बाबा गंगदास की कुटी थी। कुटी के पीछे दक्षिण और पश्चिम की ओर हटती हुई पेशवाई पैदल पलटन।
मुंदर रानी के साथ थी। अग़ल बग़ल रघुनाथ सिंह और रामचंद्र देशमुख। पीछे कुंवर गुल मुहम्मद और केवल बीस पच्चीस अवशिष्ट लाल सवार। अंग्रेजों ने थोड़ी देर में इन सबके चारों तरफ़ घेरा डाल दिया। सिमट सिमट कर उस घेरे को कम करते जा रहे थे।
परंतु रानी की दुहत्थू तलवारें आगे का मार्ग साफ़ करती चली जा रही थी। पीछे के वीर सवारों की संख्या घटते घटते नगण्य हो गई। उसी समय तात्या ने रुहेली और अवधि सैनिकों की सहायता से अंग्रेजों के व्यूह पर प्रहार किया। तात्या कठिन से कठिन व्यूह में होकर बच निकलने की रणविद्या का पारंगत पंडित था। अंग्रेज थोड़े से सवारों को लालकर्ति का पीछा करने के लिए छोड़कर तात्या की ओर मुड़ गए। सूर्यास्त होने में कुछ विलंब था।
लाल कुर्ती का अंतिम सवार मारा गया। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गई। पीछे कड़ाबीन और तलवार वाले दस पंद्रह गोरे सवार। आगे अनगरीं वाले कुछ गोरे पैदल।
रानी ने पीछे की तरफ़ देखा - रघुनाथ सिंह और गुल मुहम्मद तलवार से अंग्रेज सैनिकों की संख्या कम रहे हैं। एक ओर रामचंद्र देशमुख दामोदर राव की रक्षा की चिंता में बरकाव कर करके लड़ रहा था। रानी ने देखमुख की सहायता के लिए मुंदर को इशारा किया, और वह स्वयं संगीनबरदारों को दोनो हाथों की तलवारों से खटाखट साफ़ करके आगे बढ़ने लगी। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवारों से उस संगीनबरदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गई।
रानी ने सोचा, “स्वराजय की नींव का पत्थर बनने जा रही हूँ।”
रानी के खून बह निकला।
उस संगीनबरदार के खतम होते ही बाक़ी भागे। रानी आगे निकल गई। उनके साथी भी दाएँ, बाएँ और पीछे। आठ दस गोरे घुड़सवार उनको पछियाते हुए।
रघुनाथ सिंह पास था। रानी ने कहा, “मेरी देह को अंग्रेज न छूने पावें।”
गुल मुहम्मद ने भी सुना - और समझ लिया। वह और भी ज़ोर से लड़ा।
एक अंग्रेज सवार ने मुंदर पर पिस्तौल दागी। उसके मुँह से कवल ये शब्द निकले : बाई साहब, मैं मारी। मेरी देह….. भगवान।” अंतिम शब्द के साथ उसने एक दृष्टि रघुनाथ सिंह पर डाली और वह लटक गई।
रानी ने मुस्कुराकर देखा।
रघुनाथ सिंह ने कहा, “सम्भालो उसे। उसके शरीर को वे छूने पावे।” और वे घोड़े को मोड़कर अंग्रेज सवारों पर तलवारों की बौछार करने लगी। कई काटे। मुंदर का मारने वाला मारा गया।
रघुनाथ सिंह फुर्ती के साथ घोड़े से उतरा। अपना साफ़ फाड़ा। मुंदर के शव को पीठ पर कसा और घोड़े पर सवार होकर आगे बाधा।
गुल मुहम्मद बाक़ी सवारों से उलझा। रानी ने फिर सों रेखा नाले की ओर घोड़े को बढ़ाया। देशमुख साथ हो गया।
अंग्रेज सवार चार पाँच रह गए थे। गुल मुहम्मद उनको बहकावा देकर रानी के साथ हो लिया। रानी तेज़ी के साथ नाले की ढीपर आ गई।
घोड़े ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया - बिलकुल आड़ गया। रानी ने पुचकारा। कई प्रयत्न किए, परंतु सब व्यर्थ।
वे अंग्रेज सवार आ पहुँचे।
एक गोरे ने पिस्तौल निकाली और रानी पर दागी। गोली उनकी बाईं जंघा में पड़ी। वे गले में मोटी हीरों का दमदमाता हुआ कंठा पहने हुई थी। उस अंग्रेज सवार ने रानी को कोई बड़ा सरदार समझ कर विश्वास कर लिए कि अब वह कंठा मेरा हुआ। रानी ने बाएँ हाथ की तलवार फेंक कर घोड़े की अयाल पकड़ी और दूसरी जाँघ तथा हाथ की सहायता से अपना आसन सम्भाला इतने में वह सवार और भी निकट आया। रानी ने दाएँ हाथ के वार से उसको समाप्त कर दिया। उस सवार के पीछे से एक और आगे निकल पड़ा।
रानी ने आगे बढ़ने के लिए फिर एक पैर की एड लागई।
घोड़ा बहुत प्रयत्न करने पर भी अड़ा रहा। वह दो पैरों से खड़ा हो गया। रानी को पीछे खिसकना पड़ा। एक जाँघ काम नहीं कर रही थी। बहुत पीड़ा थी। खून के फ़व्वारे पेट और जाँघ के घाव से छूट रहे थे।
गुल मुहम्मद आगे बढ़े हुए अंग्रेज सवार की ओर लपका।
परंतु अंग्रेज सवार ने गुल मुहम्मद के आ पहुँचने के पहले ही तलवार का वार रानी के सिर पर किया। वह उनकी दाईं ओर पड़ा। सिर का वह हिस्सा कट गया और दाईं आँख बाहर निकल पड़ी। इस पर भी उन्होंने अपने घातक पर तलवार चलाई और उसका कंधा काट दिया।
गुल मुहम्मद ने उस सवार के ऊपर कसकर भरपूर हाथ छोड़ा। उसके दो टुकड़े हो गए।
बाक़ी दो तीन अंग्रेज सवार बचे थे। उन पर गुल मुहम्मद बिजली की तरह टूट। उसने एक को घायल कर दिया। दूसरे के घोड़े को लगभग अधमरा। वे तीनों मैदान छोड़कर भाग गए। अब वहाँ कोई शत्रु न था। जब गुल मुहम्मद मुड़ा तो उसने देखा - रामचंद्र देखमुख घोड़े से गिरती हुई रानी को साधे हुए हैं।
दिन भर के थके माँदे, भूखे प्यासे, धूल और खून में सेन हुए गुल मुहम्मद ने पश्चिम की ओर मुँह फेर कर कहा, “ख़ुदा, पाक परवरदिगार, रहम, रहम!”
उस कट्टर सिपाही की आखें आसुओं को मानो बरसाने लगी और वह बच्चों की तरह हिलक हिलक कर रोने लगा।
रघुनाथ सिंह और देशमुख ने रानी को घोड़े पर से सम्भाल कर उतारा। आवेश में आकर उस अड़ियल घोड़े को एक लात मारी। वह अपने अस्तबल की दिशा में भाग गया।
रघुनाथ सिंह ने देशमुख से कहा, “एक जन का भी विलम्ब नहीं होना चाहिए। अपने घोड़े पर उनको होशियारी के साथ रक्खो और बाबा गंगादास की कुटी पर चलो। सूर्यास्त हुआ ही चाहता है।”
देशमुख का गला रुँधा हुआ था। बालक दामोदरराव अपनी माता के लिए चुपचाप रो रहा था।
रामचंद्र ने पुचकार कर कहा, “इनकी दावा करेंगे, अच्छी हो जाएँगी, रोओ मत।”
रामचंद्र ने रघुनाथ सिंह की सहायता से रानी को सम्भाल कर अपने घोड़े पर रक्खा।
रघुनाथ सिंह ने गुल मुहम्मद से कहा, “कुंवर साहब, इस कमजोरी से काम और बिगड़ेगा। याद करिए अपने मालिक से और क्या कहा था। अंग्रेज अब भी मारते काटते दौड़ धूप कर रहे हैं। यदि आ गए तो रानी साहब की देह का क्या होगा?
गुल मुहम्मद चौंक पड़ा। साफ़े के छोर से आँसू पोंछे। गला बिलकुल सूख गया था।
आगे बढ़ने का इशारा किया। वे सब द्रुतगति से बाबा गंगादास की कुटी पर पहुँचे।
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बिसूरते हुए दामोदर राव को एक ओर बिठला कर रामचंद्रराव ने अपनी वर्दी पर रानी को लिटा दिया और बचे हुए साफ़े के टुकड़े से उनके सिर के घाव को बांधा। रघुनाथ सिंह ने अपनी वर्दी पर मुंदर के शव को रख दिया। गुल मुहम्मद ने घोड़े को ज़रा दूर पेड़ों से जा अटकाया।
बाबा गंगादास ने पहिचान लिया। बोले, “सीता और सावित्री के देश की लड़कियाँ हैं ये।”
रानी ने पानी के लिए मुँह खोला। बाबा गंगादास तुरंत गंगाजल ले आए। रानी को पिलाया। उनको कुछ चेत आया।
मुँह से पीड़ित स्वर में धीरे से निकला, “हर हर महादेव।” उनका चेहरा कष्ट के मारे बिलकुल पीला पड़ गया। अचेत हो गई।
बाबा गंगादास ने पश्चिम की ओर देखकर कहा, “अभी कुछ प्रकाश है। परंतु अधिक विलंब नहीं। थोड़ी दूर घास की एक गंजी लगी हुई है। उसी पर चिता बनाओ।
मुंदर की ओर देखकर बोले। “यह इस कुटी में रानी लक्ष्मीबाई के साथ कई बार आई थी। इसका तो प्राणांत हो गया है।”
रघुनाथ सिंह के रुद्ध कंठ से केवल ‘जी’ निकला।
उसके मुँह में भी बाबा ने गंगाजल की कुछ बूँदे डाली।
रानी फिर थोड़े से चेत में आई। कम से कम रघुनाथ सिंह इत्यादि को यही जान पड़ा। दामोदर राव पास आ गया। उसको अवगत हुआ कि माँ बच गयी और फिर खड़ी हो जाएगी।उत्सुकता के साथ उनकी ओर टकटकी लगाई।
रानी के मुँह से बहुत टूटे स्वर में निकला,”ॐ वासुदेवाय नमः।”
इसके उपरांत उनके मुँह से जो कुछ निकला वह अस्पष्ट था। होंठ हिल रहे थे। वे लोग कान सुना कर सुनने लगे। उनकी समझ में केवल तीन टूटे शब्द आए।”
द…. ह…. ति…. नै…. य… पावक “ मुख मंडल प्रदीप्त हो गया।
सूर्यास्त हुआ। प्रकाश का अरुण पुंज दिशा की भाल पर था। उसकी आगणित रेखाएँ गगन में फैली हुई थी।
देशमुख ने बिलख कर कहा, “झाँसी का सूर्य अस्त हो गया।”
रघुनाथ सिंह बिलख बिलख कर रोने लगा।
दामोदर राव ने चीत्कार किया।
बाबा गंगादास ने कहा, “प्रकाश अनंत है। वह कण कण को भासमान कर रहा है। फिर उदय होगा। फिर प्रत्येक कण मुखरित हो उठेगा।”
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बाबा गंगादास ने सचेत किया, “झाँसी की रानी के सिधार जाने को अस्त होना कहते हो। यह तुम्हारा मोह है। वह अस्त नहीं हुई। वह अमर हो गई। कायरता का त्याग करो। उस घास की गंजी पर इन दोनों देवियों के शवों का दाह संस्कार करो अंग्रेज इन लोगों की खोज में आते होंगे।
वे दोनो सम्भले।
देशमुख ने कहा, “घास की गंजी बड़ी है?”
बाबा गंगादास ने उत्तर दिया, “गंजी तो छोटी साई है।”
देशमुख कष्टपूर्ण स्वर में बोला, “झाँसी की रानी के दाह के लिए आज लकड़ी भी सुलभ नहीं! घास की अग्नि तो इन दो शवों को केवल झोंस देगी। सवेरे शत्रु इनके अर्धनग्न शरीर देखेंगे, हँसेंगे और शायद कहीं फेंक देंगे।”
बाबा ने सिर उठा कर अपनी कुटिया को देखा।
बोले, “इस कुटिया में काफ़ी लकड़ी है। उधेड़ डालो। अंत्येष्टि का आरम्भ करो।”
रघुनाथ सिंह ने प्रार्थना की, “आपकी कुटी की लकड़ी! आप एक कृपा करें तो।”
बाबा ने पूछा।”क्या?”
रघुनाथ सिंह ने उत्तर दिया, “फिर से कुटी बनाने में आपको असुविधा होगी, इसलिए कुछ भेंट ग्रहण कर ली जावे।
बाबा मुस्कुराए।
बोले, “यह लकड़ी मेरी नहीं है। जिन्होंने पहले दी थी वे फिर दे देंगे। देर मत करो। कुटिया को उधेड़ो।”
देशमुख ने कहा, “उसमें का सामान बाहर निकाल लिया जाए।”
बाबा भीतर से एक कंबल, तुंबी, चटाई और लँगोटी उठा लाए।
बोले, “बस और कुछ नहीं है, जल्दी करो।”
दोनो शवों को बाहर रखकर, दामोदर राव को एक और बिठलाया और वे तीनों सिपाही कुटी को उधेड़ने में लग गए। बात की बात में कुटी को तोड़ कर लकड़ी इकट्ठी कर ली।
गंजी की कुछ घास घोड़ों को डाल दी और कुछ से चिता का काम लिया।
रानी का कंठ उतार कर दामोदर राव के पास रख दिया। मोतियों की एक छोटी कंठी उनके गले में रहने दी। उनका कवच और तवे भी।
चिता पर देशमुख ने रख दिया और अग्नि संस्कार कर दिया। अपनी और रघुनाथ सिंह की वर्दियाँ भी चिता पर रख दी।
आधि घड़ी में चिता प्रज्वल्लित हो गई।
उस कुटी की भूमी पर रस बह गया था। उसको देशमुख ने धो डाला।
परंतु उन रक्त की बूँदो ने पृथ्वी पर जो इतिहास लिख दिया था वह अमिट रहा।
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कूच दूरी पर रिसाले की तापों का शब्द सुनाई पड़ा। वह रिसाला अंग्रेजों का था।
देशमुख - “रानी साहब की तलाश में बैरी घूम रहे हैं।”
रघुनाथ सिंह - “आप दामोदरराव को लेकर तुरंत निकल जाइए।”
देशमुख - “आप दीवान साहब क्या झाँसी की ओर जाएँगे?”
रघुनाथ सिंह - “झाँसी में मेरा अब क्या रक्खा है। में उन सवारों को मार मार मारूँगा। ये लोग चिता की ओर ले आएँगे। इसे उसे लेंगे। जाइए तुरंत जाइए। रात को कहीं छींट जाना, विश्राम करना।”
देशमुख - “कंठे का क्या होगा?”
रघुनाथ सिंह - “मृत सिपाहियों के बाल बच्चों में बाँट देना या कूच भो करना।” देशमुख ने दामोदर राव को पीठ पर बांधा और घोड़े पर सवार होकर चल दिया।
रघुनाथ सिंह ने गिल मुहम्मद से कहा, “कुंवार साहब आप भी जाइए। मेरे घोड़े को छोड़ दीजिए, उस बिचारे को कोई न कोई रख लेगा। आवरे में से मेरी बंदूक़ और गोली बारूद का झोला लाने की कृपा करिए।”
गुल मुहम्मद घोड़े के पास गया। दोनो के आवरों में से गोली बारूद और बंदूक़ें निकाल ली। और दोनों घोड़ों को जीन सहित छोड़ दिया।
गुल मुहम्मद और रघुनाथ सिंह बंदूक़ और गोली बारूद देते हुए कहा, “दीवान साहब, अम कहाँ जाएगा? अम राहतगढ़ से जब चला तब पाँच सौ पठान था। अब एक रह गया। अकेला कहाँ जाएगा? अम भी मारेगा और मारेगा। बाई, अमको मत हटाओ।’
रघुनाथ सिंह ने कहा, “मैं चाहता हूँ आप ज़िंदा रहें, और इनकी पवित्र हड्डियों और भस्म को किसी ग़ैर को न छूने दे। रहा मैं तो जाने की बहुत जल्दी पड़ रही है। वे अभी रास्ते में होंगे उनसे जल्दी मिलना है, और बंदूक़ें भरने लगा।
रघुनाथ सिंह पागलों का सा हँसा।
गुल मुहम्मद ने एक क्षण सोचा। बोला, “यह फ़क़ीर साहब हड्डियों की हिफ़ाज़त करेगा।”
रघूँथ सिंह ने कहा, “फ़क़ीर नहीं करेगा। आप चाहे तो कर सकते हैं।”
“अपनी बंदूक़ भी मुझको दे दो कुंवर साहब, रघुनाथ सिंह ने प्रस्ताव किया।”
गुल मुहम्मद ने प्रतिवाद किया, “अब कुंवर साहब नहीं। अम फ़क़ीर बनकर रहेगा। गुल साई नाम होना।”
उसने अपनी बंदूक़ दे दी।”
“बस बाई। अब बंदूक़ या कोई हथियार नहीं छुएगा अम खुदापाक की याद में बाक़ी ज़िंदगी खतम करेगा। “
एक तरफ़ जाकर गुल मुहम्मद ने अपनी वर्दी जलती हुई चिता पर फेंक कर ख़ाक कर दी - केवल साफ़ रखा। उसके एक टुकड़े की लँगोटी लगाई। बाक़ी ओढ़ने बिछाने को रख लिया।
खूब हँसकर बोला, “अब अम बिलकुल आज़ाद हो गया बाई।”
रघुनाथ सिंह ने दोनों बंदूके भर ली। गोली बारूद के झोले लटकाए गुल मुहम्मद के पास गया उसको देखकर विस्मित हुआ।
बोला, “आप तो सचमुच फ़क़ीर हो गए! अच्छा सलाम कुंवर, सारी साहब। भूल चूक गलती माफ़ कीजिए।”
“सलाम”, गुल मुहम्मद ने कहा।
जिस ओर से तापों का शब्द आ रहा था रघुनाथ सिंह उसी दिशा में गया। पास जाकर एक आड़ ली। लेट गया। प्रतीति कर ली कि अग्रेजों का रिसाला है और कुटी की ओर आ रहा है।
“धाँय धाँय” बंदूक़ें चलाई।
“धाँय धाँय” अंग्रेज़ी रिसाले का जवाब आया।
काफ़ी समय तक रिसाले के सैनिकों को हताहत करता रहा। फिर? एक गोली से मारा गया।
चिता “साँय साँय “ जलती रही।
गुल महामाद चिता से कुछ दूर जाकर लेट गया। साफ़े के टुकड़े से अपने को ढाका। बेहद थका हुआ था, सो गया। सवेरे जब आँख खुली देखा कि चिता के स्थान पर कुछ जाली हुई हड्डियाँ बाक़ी रह गयी हैं।
उसके मुँह से निकल पड़ा, “ओफ़ रानी साहब का सिर्फ़ यह हड्डी रह गया है। और उस लड़की का!”
फिर तुरंत उसने अपने मन में कहा, “ओ कबी नहीं। वो मारा नहीं। वो कबी नई मारेगा। वो मुर्दों को जान बख़्शता रहेगा।
चिता के ठंडे हो जाने पर गुल मुहम्मद ने उस स्थान पर एक चबूतरा बांधा और कहीं से फूल लाकर उस पर चढ़ाए।
अंग्रेज़ी सेना का एक दल रानी की ढूँढ खोज में वहाँ पर आया।
चबूतरा अभी सूखा ना था। उस दल के अगुआ का कुतूहल जागा।
गुल मुहम्मद से उसने पूछा, “यह किसका मज़ार है साई साहब?”
गुल मुहम्मद ने उत्तर दिया, “अमारे पीर का, वो बौत बड़ा वली था।"
Part 29 ; Parishisht
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