Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 22 - Vrindavan Lal Verma
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झाँसी के तोपची और सिपाही रात भर जागते रहे। रानी ने दुहरी कुमुक का प्रबंध किया। दिन में अपनी अपनी काँग पर ग़ुलाम गौस, खुदाबख्श, रघुनाथ सिंह, भाऊ बख्शी, दुल्हाजु, पूरन और सागर सिंह, रात में उनके स्थानापन्न, रन ईके स्त्री गोलंदाज।
परंतु यह बदली सुबह होते ही नहीं हुई। स्त्रियाँ इन गोलंदाज़ों के पास पहुँच गई और काम में मदद करती रही। दोपहर के उपरांत बदली होनी थी।
ग़ुलाम गौस रात भर का जाग था, जो स्त्री उसके पास काम कर रही थी, उससे गौस का माँ नहीं भर रहा था। उसने उसके बदले में लालता ब्राह्मण को माँग। रानी ने लालता को भेज दिया। लालता के आते ही गौस की खुमारी चली गई।
गौस ने उससे कहा, “रानी साहब को स्त्री गोलंदाज चपल बहुत हैं, मुझको ठंडा आदमी चाहिए को काम करने के समय गाता न हो।”
लालता हँसकर बोला, “कभी कभी आल्हा गाते गाते तो मैं भी काम करता हूँ खां साहब।”
“तब वह गीत याद रखना पंडित जी”, गौस ने कहा, “जननी जनम दियों है तोखो बस आजहीं के लानें।”
लालता ने फ़ासील के छेद में होकर देखा कि जीवनशाह की पहाड़ी की आड़ में होकर बग़ल वाली टौरियों के पीछे कुछ तोपें और चढ़ाई जा रही हैं। ग़ुलाम गौस ने भी देखा।
गौस की आँख एक पल के लिए गीध की आँख की तरह सधी।
बोला, “पंडित जी, एक लोय जल पिलाओ और मेरी धनगरज तोप और उसकी छोटी बहिनों का काम देखो। मैं बारह बजे छुट्टी लूँगा। ख़ुदा ने चाहा तो खाना वाना खाने के बाद शाम को मिलूँगा। फिर रात को सोऊँगा। हाँ तो एक बार वह गीत तो माँ से गा दो। एक सतर से ज़्यादा नहीं।
लालता ने सवार में गाया, “जननी जनम दियों है तोखो बस आजहि के लानै।” गीत की समाप्ति हुई कि गौस ने तोपख़ाने को पलीता छुलाया ‘घनगरज और उसकी छोटी बहिनों ने इतनी ज़ोर की गरज की कि ज़मीन कामप गई। दक्षिणी सिरे की सब बुर्जों से एक एक क्षण के बाद बाढ़ दागना शुरू हो गई। तोपों के भरने का उत्कृष्ट प्रबंध था। एक तोपख़ाने की बाढ़ और दूसरे की बाढ़ के दागने में थोड़ा ही अंतर जान पड़ता था। रोज़्ज़ के तोपख़ानों ने जवाब दिया, परंतु जवाब कमजोर था। गौस के तोपख़ानों ने ऐसी मार बरसाई कि रोज़ का दम फूल उठा।उसका दक्षिणी दस्ता नष्ट भ्रष्ट हो गया। कूच तोपख़ाने बैंड हो गए, परंतु एक तोपख़ाना कोलाहल कर रहा था। समय दोपहर का हो गया था।
ग़ुलाम गौस ने कहा, “मुझे भूख लग रही है और गोरों का यह तोपख़ाना मानता नहीं। अच्छा देखता हूँ।”
ग़ुलाम गौस ने ‘घनगरज’ को एक अंगुल इधर उधर सरकाया। निशाना बाधा और एक फटने वाला गोला छोड़ा।
बारूदें इन तोपों की ऐसी थी कि धुआँ न होता था, इसलिए गौस ने अपने निशाने की सफलता तुरंत देख ली। उच्छल कर बोला, “वह मारा।” उसके साथियों ने देखा कि गोरे तोपची मारे गए और तोप भी उलट कर बेकार हो गई।
अंग्रेजों का दक्षिणी मोर्चा बिलकुल ठंडा हो गया। गौस भोजन और आराम के लिए चला गया। लालता ने स्थान पकड़ा।
पूर्व की ओर से अंग्रेज़ी तोपों के गोले आने लगे। कूच क़िले से टकराते थे और कूच शहर में गिरकर घरों का और लोगों का नाश करते थे। भाऊ बख्शी ने कड़कबिजली का स्थान ज़रा सा परिवर्तित किया और निशाना साधकर पलीता कर दिया। थोड़ी देर में रोज़ का पूर्वीय मोर्चा नजी ठंडा हो गया। तोपची मारे गए और तोपें बेकार हो गई। बख्शी अपनी पत्नी को तोपख़ाना सौंप कर भोजन और आराम के लिए चला गया।
मुंदर ने रघुनाथ सिंह की जगह ली। सुंदर ने दुल्हाजु की, मोतीबाई ने खुदाबख्श की। दीवान जवाहर सिंह को थोड़ी देर के लिए छुट्टी दे दी गई। रानी घोड़े पर सवार होकर शहर के सब मोर्चों को देखने और सम्भालने के लिए चली गई। तीसरे पहर के अंत में लौट आई। जवाहर सिंह फिर अपने काम पर डट गया।
चौथे पहर से लेकर संध्या तक स्त्री तोपचियों ने दृढ़ता पूर्वक काम किया। रात को भी उन्ही को काम पर रहना था। केवल खंडेराव फाटक और सागर खिड़की पर स्त्रियाँ काम नहीं कार अहि थी। खंडेराव फाटक पर सागर सिंह ने अपना नायब स्वयं चुन लिया और सागर खिड़की पर बरहामुद्दीन नाम का एक बुंदेलखंडी पठान भेज दिवा गया।
इसका आना पीर अली को अच्छा नहीं लगा।
पीर अली ने कहा, “खांसाहब आपको नाहक कष्ट दिया गया। मैं तो दिन रात इस छोटी साई खिड़की को सम्भालने को तैयार हूँ।”
“मीर साहब”, बरहामुद्दीन बोला, “आप थोड़ा आराम कर लाइन, रात भर के जागे हुए हैं।”
“गई रात तो सभी जागे हैं। आप भी तो न सोए होंगे?”
“हुकुम है। पालन करना होगा।”
“ऐसा भी क्या! आरी साहब सोईए। कल रहिएगा मेरी मदद पर।”
“नहीं जनरल साहब सुनेंगे तो नाराज़ होंगे। और रानी साहब सुनेंगी तो मैं अपना मुँह ही न दिखा सकूँगा।”
“तो रह जाइए, मगर एक बात है - किसी को मालूम न हो।”
“मुझे किससे कहानी कहते फिरने से मतलब ही क्या?”
“बात ऐसे है कि अगर फूटकर बाहर निकल जाय तो मेरे टुकड़े हो जाएँगे।”
“आप कहिए, विश्वास करिए।”
अंग्रेज़ी छावनी में क्या हो रहा हिया, क्या होने वाला है, कहाँ कहाँ नए मोर्चे बनाए गए और किस तरह से हमला ज़ोर का होगा इन बातों की जासूसी करने का भार मेरे सिर है। अंग्रेज़ी छावनी में भोपाल रियासत की भी सिपाही हैं। उनमें से एक मेरा रिश्तेदार है। जब मैं थोड़े दिन हुए तालबेहट की ओर गया था तब उसको मैंने मिला लिया था। वह कुछ और लोगों से मिला हुआ है, इसलिए ठीक ठीक खबर मिल जाएगी। वह खबर अपने बड़े काम की होगी। इस खबर के लाने के लिए मैं रात को चुपचाप बाहर जाऊँगा। सबेरे के बहुत पहले आ जाऊँगा। यदि अंग्रेजों को खबर लग गई, तो मैं मार दिया जाऊँगा और अंग्रेज़ी फ़ौज में मेरा जो रिश्तेदार है, वह, और उसके साथी, सब मारे जाएँगे। रानी साहब का नुक़सान होगा।”
“मैं किसी से ना कहूँगा, मगर में चला जाऊँ या सो जाऊँ तो आपके ठौर ख़ाली हो जाएगा। फिर यदि दुश्मन यहाँ होकर रात में धावा बोल दे तो अपना कितना बड़ा नुक़सान न होगा?”
“यह तो छोटी साई खिड़की है। इसकी खबर भी अंग्रेजों को न होगी।”
“जैसा आप उचित समझें। मैं सोचता हूँ, हर हालत में मेरा इस ठिए पर रहना आपके लिए लाभदायक होगा।”
“खूब। आप रहिए। मगर जब सब लोग सो जाएँगे तब मैं जाऊँगा।”
“लेकिन फाटक नहीं खोलना चाहिए।”
“फाटक पर ताले पड़े हैं। मैं मुहरी के रास्ते जाऊँगा।”
“मुहरी! कौन सी मुहरी?”
“वही जो खिड़की के बग़ल में है?”
जब सब सो गए पीर अली ने बरहामुद्दीन को मुहरी दिखलायी और उसी में होकर बाहर चला गया।
आध मील चलने के उपरांत वह अंग्रेज़ी छावनी के पास पहुँचा। टोका गया। उसने पूर्व निश्चित संकेत को कहा। संतरी ने आगे बढ़ने दिया। कई अड्डों पर रोका जाने और अनुमति पाने पर पीर अली रोज़ और उसके मातहत दलनायकों के सामने पहुँचा, दुभाषिये के द्वारा तुरंत बातचीत हुई।
रोज़ - “क़िले में जो गोलाबारी हुई, उसका प्रधान नायक कौन है?”
पीर अली - “ग़ुलाम गौसखां और भाऊ बख्शी।”
रोज़ ने बाग़ियों का का रजिस्टर लौटवाया, पलटवाया। उसमें ये नाम न थे।
रोज़ - “ये लोग कौन हैं?”
पीर अली - “रानी साहब के नौकर हैं।”
रोज़ - “ओरछा फाटक और सैयर फाटक पर कौन हैं?’
पीर अली - दीवान दुल्हाजु ओरछा फाटक पर हैं और कुंवर खुदाबख्श सैयर फाटक पर।”
फ़िर रजिस्टर देखा गया। ये नाम भी न निकले।
रोज़ - “कोई लालता ब्राह्मण है?”
पीर अली - “है क़िले में है।”
रोज़ ने दांत पीसे।
बोला, “जनरल कौन है?”
पीर अली - “खुद रानी साहब। उनके नीचे दीवान जवाहर सिंह जागीरदार काम करते हैं।”
रोज़ -“कुल कितने गोलंदाज हैं?”
पीर अली - “बेहिसाब। सैकड़ों। बहुत तो औरतें गोआंदाज हैं।”
रोज़ - “बाई जोव! स्टूअर्ट, यह झाँसी तो महज़ नरक है। औरतें गोलंदाज! कल दूरबीन से अच्छी तरह देखूँगा।”
स्टूअर्ट - “बारूद बन्ने का कोई कारख़ाना है या पहले से बनी रक्खी है?”
पीर अली - “पहले से बनी रक्खी है और बनाने का कारख़ाना भो है।”
रोज़ - “it is smokeless powder Stuart! उत्तरी दरवाज़े किसके सुपुर्द हैं?”
पीर अली - “ठाकुरों, काछियों और कोरियों के हाथ में। दतिया फाटक तेलियों के हाथ में है।”
रोज़ - “The whole people against us. अच्छा तुम किस जगह काम करते हो?”
पीर अली - “सागर खिड़की पर।”
रोज़ - “हमारे हवाले कर सकोगे?”
पीर अली - “ख़ुशी से, मगर आपको फ़ायदा कुछ न होगा। सागर खिड़की की ठीक पीठ पर ख़ज़ांची की कोठी है। उस पर तोपखाना है। वह मेरे क़ाबू का नहीं है। वहाँ पठान और ठाकुर हैं।”
रोज़ - “कोई औरतें हाथ में आ सकती हैं?”
पीर अली - “तौबा तौबा, झाँसी की औरतें पूरी शैतान हैं। एक नाचने गाने वाली मेटी जान पहचान की है, मगर वह जासूसी महकमे की प्रधान है और अब तोप चलाती है।”
रोज़ - “Dancing Girl a gunner! What else have I to hear in this dam accursed place?”
स्टूअर्ट - “मगर जासूसी महक़मे का अफ़सर तो एक मोतीसाई सुना गया था?”
पीर अली - “जी नहीं वह अफ़सर यही नाचने वाली है और उसका नाम मोतीबाई है।”
वे सब हँस पड़े।
रोज़ ने कहा, “we have made fools of us! अच्छा किसी एक फाटक वाले से हमको मिला दो। तुमको और उसको बहुत इनाम मिलेगा।”
पीर अली - “कोशिश करूँगा।”
रोज़ - “तुम बटला सकते हो शहर और क़िले पर हमारी तोप का गोला कहाँ से अच्छा पड़ेगा?”
पीर अली - “जार पहाड़ी पर से।”
रोज़ - “oh Silly! जार पहाड़ी से क़िले का बहुत कम नुक़सान होगा।”
पीर अली - “जी नहीं। क़िले की पश्चिमी दीवाल जो मटीली टौरिया पर है बहुत कम ऊँछी है। उसको दाहिनी बग़ल में शकरगढ क़िले का उत्तर पश्चिमी हिस्सा है। इसी में पानी पीने का कुआँ और रानी साहब के पूजन का मंदिर है। तमाम औरतें जो सिपाहिगिरी का काम करती हैं, इसी जगह डपहरि या शाम को जमा होती है। इस जगह के तोड़ने से क़िला हाथ में आ जावेगा और शहर की एक इमारत न बचेगी।”
रोज़ - “और उत्तर की ओर से?’
पीर अली - “उन्नाव फाटक और भंडेरी फाटक की सीध में मटीले टेकडे हैं, जिनकी वजह से आपका तोपख़ाना कामयाब न हो सकेगा।”
रोज़ - “अच्छा, तुम हमको दक्षिण तरफ़ का कोई फाटक वाला मिला दो।”
पीर अली - “मैंने अर्ज़ की ना, कोशिश करूँगा।”
रोज़ ने पीर अली को धन्यवाद देकर वापिस किया।
पीर अली जब सागर खिड़की पर वापिस आया, उसने बरहामुद्दीन को सावधान पाया।
पीरअली ने कहा, “ख़ुदा ख़ुदा करके लौट पाया हूँ। आज बहुत थोड़ा भेद मिल पाया है। कल मौक़ा मिलते ही फिर जाऊँगा।”
बरहामुद्दीन ने पूछा, “आज कुछ मालूम हो पाया या इतनी मेहनत सब बेकार हो गई?”
“बेकार तो नहीं गई”, पीर अली ने उत्तर दिया, “यह मालूम कर लाया हूँ कि एक भी तोप या तोपख़ाना हिंदुस्तानी सिपाही के हाथ में नहीं है। सब तोपें अंग्रेजों ने अपने क़ाबू में रख छोड़ी हैं।”
“इतना तो मुझको भी मालूम है कि अंग्रेजों ने हिंदुस्तानियों का भरोसा करना बिलकुल छोड़ दिया है।”
“इस पर भी गोरों के साथ भोपाल, हैदराबाद और ओरछा रियासत के दस्ते हैं और मद्रास उत्तर की काली पलटन भी।”
“ओरछा रियासत का दस्ता उत्तर की ओर अंजनी की टौरिया पर तैनात है।”
“तुमको कैसे मालूम?”
“क़िले में चर्चा थी। रानी साहब के जासूसों ने खबर दी होगी।”
पीर अली ने सोचा, “बरहामुद्दीन चतुर मालूम होता है; सावधान होकर काम करना चाहिए।
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उसी रोज़ ने सतर्कता के साथ जार पहाड़ी पर तोपख़ानों के मोर्चे बाँधे। सुबह होते ही तोपों के मुहरे ठीक किए गए, निशान साढ़े। तोपों पर पलीते पड़े और शहर का विध्वंस आरम्भ हो गया। लोग बेहिसाब मरने और घायल होने लगे। आगें लगी, बाज़ार बंद रहे। साधारण जनता भूखों प्यासों मरने लगी। शहर में हाहाकार मच गया। झाँसी की गलियाँ वीरान दिखने लगी। क़िले की पश्चिम दिवार में सूराख हो उठे।
शहर का हाल जानकार रानी दुखी हुई। तुरंत सवार होकर क़िले से उतरी और बरसते हुए गोलों में जोकर प्रत्येक मुहल्ले को उत्साह दां किया। आग बुझाने का बहुत अच्छा प्रबंध किया। अन्नक्षेत्र और सदार्वत क़ायम किए। तब क़िले को लौटी।
लौटते ही ग़ुलाम गौस के पास पहुँची। उसने भक्ति पूर्वक प्रणाम किया।
“खां साहब, आज पश्चिम की ओर कोई नया मोर्चा मोर्चा बना है। इसका निरोध होना ही चाहिए”, रानी ने कहा, “चौथाई नगर बर्बाद हो गया है। कल ना जाने क्या गत होगी।”
“दक्षिणी मोर्चे का सरकार इंतज़ाम कर दें”, गौस ने निवेदन किया, मैं अंग्रेजों के उस मोर्चे को देख लूँगा।”
रानी ने कहा, “मैं मोतीबाई को भेजती हूँ।”
गौस बोला, “वह कमाल की गोलंदाज है सरकार, मगर इस मोर्चे को न सम्भाल पावेगी। अंग्रेज लोग दक्षिण के सिवाय और किसी ओर से नहीं आ सकते।
रानी ने पूछा, “तुम्हारा ऐसा विचार क्यों है?”
“हुज़ूर” गौस ने उत्तर दिया, “इसी दिशा से क़िला अत्यंत निकट पड़ता है।
रानी ने कहा, “बख्शीं को यहाँ भेज दूँ?”
“भेज दीजिए सरकार”, गौस ने सहर्ष स्वीकार किया, “वह बड़े ख़ानदान की है।”
रानी की त्योरी बदली, परंतु उन्होंने तुरंत नियंत्रण किया। सोचा, “अतमत्याग में वह वेश्यापुत्री किस ख़ानदान वाले से जाम है? ही भगवान, “त्याग में भी ऊँच नीच! और चली गई।
बख्शीं ने दक्षिण बुर्ज की ‘घनगरज’ और उसकी ‘छोटी बहिन’ को सम्भाला। वह गौस के बतलाए हुए करम पर काम करती रहती।
ग़ुलाम गौस तुरंत पश्चिमी बुर्ज पर पहुँचा। यहाँ लालता काम कर रहा था। गौस ने बारीकी के साथ दूरबीन द्वारा निरीक्षण किया।
बोला, “पंडित जी अंग्रेजों का मोर्चा पहिचाना?”
“वह देखो न काली टोरों के पीछे है।”
“नहीं पंडित जी, काली टोरों के पीछे महज़ बारूद का धुआँ किया जा रहा है जिसमें हम लोग धोखा खाते रहे। वे जो ताज़ा लाल मिट्टी के ढेर लगे हैं तोपें वहाँ हैं।”
लालता ने दूरबीन पकड़ी ‘देखो’ असहमत हुआ।
“खां साहब” लालता ने कहा, “मिट्टी और बजरी के उन ढेरों में तोपें नहीं बिठलाई जा सकती।”
“माफ़ कीजिएगा पंडित जी”, गौस बोला, “तोपें खस मतलब से उन्ही ढेरों में बिठलाई गई हैं। ज़रा ठहरिए।”
गौस ने तोपों पर दूरबीनें कसी। तोपों को इधर उधर खिसका कर ठीक किया। निशान बाधे, बारूद और गोले भरे। इस कार्य में उसको अधिक समय नहीं लगा।
इसके बाद इधर गौस ने तोपों को पलीते दिए उधर वे मिट्टी के ढेर उधड़ गए, मारे हुए तोपची नज़र आए। उल्टी हुई और टूटी हुई तोपें। फिर बाढ़ें की गई।
अंग्रेजों के पश्चिमी पोर्च का जवाब बिलकुल बैंड हो गया। नगर में चैन हो गया। गौस ने जाकर रानी को प्रणाम किया। रानी ने सोने के चूड़े मँगवा कर गौस को अपने हाथ से पहिनाए। रानी हर्ष से मगन थी और गौस का खुरदुरा चेहरा आंसुओं से तार था। तीसरे पहर के उपरांत कुमुक बदली। स्त्रियों ने तोपें हाथ में लीन और भीषण गोलाबारी शुरू कर दी।
कामासिन टौरिया पर से रोज़ ने दूरबीन में से देखा। बग़ल में उसका फ़ौजी डॉक्टर लो था और पास ही मातहत जनरल स्टूअर्ट।
रोज़ ने कहा, “ओह! स्त्रियाँ तोप चला रही है! स्त्रियाँ गोला बारूद धो रही हैं। कूच खाना पानी बाँट रही हैं। टूटी हुई दिवारों और कंगूरों की मरम्मत में मदद दे रही हैं। इतनी तरतीब से, इतनी तेज़ी से हिंदुस्तानियों को। काम करते आज देखा है! अचरज होता है।”
लो ने दूरबीन हाथ में ली। देखते ही बोला, “जनरल पेड़ों की छाया में कुछ स्त्री पुरुष काम कर रहे हैं। हमारा एक गोला उनके बीच में पड़ा। धूल फिंकी। फिर भी वे सब वहीं के वहीं।
रोज़ ने स्टूअर्ट ने भी निरीक्षण किया। स्टूअर्ट बोला, “ये सब नेपोलियन हो गए क्या?”
लो ने कहा, “टन झाँसी हमारा वॉटरलू होगा।”
रोज़ ने मुस्कुराकर झिड़का, “हिश, अभी बहुत घोर युद्ध करना पड़ेगा। यह रानी नेपोलियन नहीं, जॉन ओड आर्क साई जान पड़ती है।”
स्टूअर्ट ने कहा, “इसको ज़िंदा पकड़ सके तो कमाल होगा।”
उसी समय तार खटखटाया।
मालूम हुआ कि पश्चिमी मोर्चा सबका सब तहस नहस हो गया। स्टूअर्ट को पश्चिमी मोर्चे को फिर सम्भालने की आज्ञा दी। वह चला गया। स्टूअर्ट के ब्रिगेड का अधिकांश दक्षिणी मोर्चे पर था। उसके दलनायक को रोज़ ने तार द्वारा आदेश दिया, “बहुत ज़ोर के साथ क़िले की दक्षिणी बुर्ज पर गोलबारी करो। उस व्हिस्लिंग डिक को किसी तरह बंद करो।
गौस के ‘घनगरज’ तोपख़ाने के शोर और मृत्युवमन का नाम इन लोगों ने व्हिस्लिंग डिक - हल्ला करने वाला शैतान रक्खा था।
आज्ञा पारे ही दक्षिणी ब्रिगेड ने अत्यंत तीव्रता के साथ काम शुरू किया। उसंके तोपख़ाने लगातार भयंकर आग और गोले उगलने लगे। बख्शीं जवाब पर जवाब दे रही थी बारूद और धुएँ से उसका सुंदर चेहरा काला पद गया था। पसीने की रेखाओं से जितना चेहरा धूल गया था केवल उतना उसके स्वर्ण वर्ण को प्रकट कर रहा था। ब्रिगेड ने तोपों की रख्श में क़िले की ओर दौड़ लगाई। घनगरज के तोपख़ाने ने उनका संहार कर दिया। बहुत अंग्रेज़ी फ़ौज मारी गई। उसको लौटना पड़ा। परंतु उनके तोपख़ानों ने एक काम कर लिया।
एक गोला बुर्ज के कंगूरे को तोड़कर बख्शीं के कंधे पर लगा। कंधा टूट गया, उड़ गया। वह अचेत होकर गिर पड़ी।
बख्शी को पूर्वी बुर्ज पर समाचार मिला। निर्मम होकर बख्शी ने उत्तर दिया, “उससे बढ़कर झाँसी और झाँसी की रानी हैं। शाम को देखूँगा। तब तक दाह मत करना।
बख्शी अपने काम पर जुट गया। एक बार आकाश की ओर उसने देखा। गीता के कृष्ण को याद किया और पाने को कठोर से कठोर संकट में डालता हुआ तोपों को दुगुनी तेज़ी के साथ चलाने लगा। रोज़ का पूर्वी मोर्चा बुझ गया।
परंतु बख्शी का पलीता सुलगता और आग देता रहा।
बख्शिन चली गई। रानी तुरंत आईं। बख्शिन के रक्तमय शव को गोद में रख लिया। गला अवरुद्ध हो गया, एक शब्द भी मुहँ से नहीं निकल रहा था - और न आँख से एक आंसू। तोपख़ाना बैंड हो गया आठ। अंग्रेजों के गोले धड़धड बुर्जों और दिवारों से टकरा रहे थे और उनको ढ़ा रहे थे। मुंदर ने दूरबीन से अपनी बुर्ज पर से देखा। दौड़कर आई।
घबराकर बोली, “बाई साहब!”
रानी के मुँह से केवल एक शब्द निकला, “गौस।”
मुंदर समझ गई। दौड़कर पश्चिमी बुर्ज से ग़ुलाम गौस को बुला लाई।
गौस ने देखा झाँसी कि रानी धूल में बैठी बख्शिन के शव से लिपटी हुई हैं।
गौस ने कहा, यह क्या सरकार, अभी न जाने कितने सरदार क़ुर्बान होंगे? हुज़ूर हम लोगों को समझाती हैं कि स्वरजय की लड़ाई किसी के मारने जीने पर निर्भर नहीं है। और फिर बख्शिनजू तो अमर जो गई। उठिए। देखिए उस जवांमर्द बख्शी को। वह अपने ठिए पर अटल है। आप ऐसा मोह करेंगी तो हम लोग गोरों से कितने दिन लड़ सकेंगे? आप यहाँ से हट जाएँ और दीवान ख़ास में बैठकर हुकुम भेजती रहे। मैं इनको मज़ा चखाता हूँ।”
रानी बख्शिन के शव का आवश्यक प्रबंध करके दीवान खस में चली गई।
गौसखां ने ‘बिस्मिल्लाह’ किया और घनगरज को सम्भाला। तीन बाढ़ों में ही अंग्रेज़ी मोर्चे का तोपख़ाना, तोपची और तोपख़ाने पर काम करने वाले, सब स्वाहा हो गए।
गौस ने अपने साथियों से कहा, “यह तो मेरे साथी सरदार को मारने का बदला हुआ, अब कूच प्रसाद भी देता हूँ। देखो झोखन बाग के पूर्व में गुसाइयों के मंदिरों की आड़ से ये लोग सौयर फाटक पर गोलाबारी कर रहे हैं। बिचार खुदबख्श मंदिरों के लिहाज़ के कारण जवाब नहीं दे पाता, परंतु मंदिरों के बीच में सन्ध है। उसी सन्ध में होकर अंग्रेज़ी तोपख़ाना काम कर रहा है। वह सन्ध खुदाबख्श की सीध में नहीं है, पर घनगरज की सीध में है।”
साथी ने अनुरोध किया, “मंदिर पर गोला न पड़े खांसाहब। नहीं तो बड़ा अनर्थ हो जावेगा।”
“अगर मंदिर की एक ईंट भी मेरे गोले से टूट जाय तो तलवार से मेरी गर्दन कलम कर देना।”
गौस ने घनगरज का मुहरा मोड़ा, परंतु वहाँ से सीध नहीं बैठती थी और न निशाना जमता था। तोप को ज्यों का त्यों करने वह रघुनाथ सिंह वाली बुर्ज पर गया।
“दीवान साहब, गौस ने विनय की, “दो पल के लिए तप मुझे बख्श दीजिए। सैयर फाटक के सामने वाला अंग्रेज़ी तोपख़ाना बंद करना है।”
“तोप ख़ुशी से ले लीजिए”, रघुनाथ सिंह ने कहा, "परंतु अंग्रेज़ी तोपख़ाने पीछे मिटेंगे, मंदिर पहले।”
गौस ने दृढ़तापूर्वक कहा, “दूरबीन दीजिए, मुझको मंदिरों की सन्ध से केवल अंग्रेज़ी तोपख़ाना देखना है। मंदिरों को मैं देखूँगा ही नहीं।”
रघुनाथ सिंह को ग़ुलाम गौस की गोलंदाजी का भरोसा था दूरबीन और तोप उसके हवाले कर दी।
गौस ने तोप के ठिए को सम्भाला, सुधार और दूरबीन लगाकर निश्चिंतता के साथ गोला छोड़ा। उसका जो कुछ फल हुआ उसे रघुनाथ सिंह ने दूरबीन से देखा।
अंग्रेज तोपची मारे गए। तोपें नष्ट हो गई और मंदिर बच गए।
उसी समय ग़ुलाम गौसखां को रानी ने अपनी तोल भर चाँदी का तोड़ा पुरस्कार मैं दिया। जब लालता ने सुना उसका जी गिर गया।
संध्या समय बख्शिन ने शव का दाह किया गया।
बख्शी हर्षोंन्मत्त था, परंतु उसको आँखों में पागलपन था।
कभी कभी वह असंगत और अप्रासंगिक बात कहता था। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः” और कोई समझा हो या न समझा हो, परंतु रानी इस महावाक्य को समझाती थी।
रात हुई। लड़ाई ने कुछ शांति पकड़ी। पीर अली ने पास बरहामुद्दीन पहुँच गया।
पीर अली ने तुरंत कहा, “देखो मेरे पता लगाने के कारण गोलंदाज़ों को कितना लाभ हुआ।”
बरहामुद्दीन को शक हुआ। उसको दबाकर बोला, “बेशक हुआ होगा, मगर क़िले में गोलंदाजी नहीं कर रहा था, इसलिए कुछ कह नहीं सकता।”
पीर अली ने शेखि मारी, “हमारी खिड़की के सामने अंग्रेजों का कोई मोर्चा नहीं पड़ता नहीं तो दांत खट्टे कर देता।”
बरहामुद्दीन ने खुशामद की, “मीर साहब कहिए दाँत और सिर तोड़ देते।”
पीर अली ने प्रसन्न होकर कहा, “एक ही बात है।”
जब कूच रात बीत गई पीर अली ने बरहामुद्दीन से धीरे से कहा, “अब में जासूसी पर जाता हूँ आप यहाँ होशियार रहना।”
बरहाम ने मंज़ूर किया।
पीर अली ने मुहरी के रास्ते से बाहर हो गया। और उसके पीछे पीछे चुपचाप बरहाम। आध मील चलने के बाद जब पहले छबीने के संतरी ने टोका तब पीर अली ने संकेत शब्द में उत्तर दिया। पीर अली आराम के साथ अंग्रेज छावनी में दाखिल हो गया। बरहाम बहुत उदास धीरे धीरे सागर खिड़की को लौट आया।
जब पीर अली लौटा बरहाम ने प्रश्न किया, “आज की क्या खबर लाए मीर साहब?”
उसने उत्तर दिया, “ज़्यादा पता नहीं लगा। सिर्फ़ इतना मालूम कर सका कि कल शहर पर गोलाबारी पश्चिम की तरफ़ से होगी।
“आज तो सरदार ग़ुलाम गौस ने कमाल कर दिया। जिधर की तोप सम्भाली उसी तरफ़ कहार बरस दिया।”
“हमारी बारूद भी बहुत अच्छी है। धुआँ होता ही नहीं। अंग्रेजों को पता नहीं लगता कि तोपख़ाने किधर लगे हुए हैं।”
“तो भी वे लोग हमारे गोलंदाज पर गोलंदाज मार रहे हैं। ख़ैर है कि हमारे यहाँ तोपचियों की कमी नहीं है वरना झाँसी का घंटे भार भी बचना मुश्किल था।”
“बारूद कहाँ बनाई जाती है खांसाहब?”
“महल के उत्तर में इमली के पेड़ों कि नीचे। आपने क्या नहीं देखा?”
“नहीं तो मैं उस तरफ़ नहीं गया खांसाहब।”
“एक बात मुझको भी बतलाइए मीर साहब। आप अंग्रेज़ी छावनी में पहुँच कैसे जाते हैं?”
“कुछ न पूछो खांसाहब, गड्ढों, खाइयों और झाड़ झंकाड़ की आड़े लेता हुआ जाता हूँ। ज़रा चुकूँ तो गोली सार पर पड़े। बड़ी जोखिम का काम है। सीटी का एक बंधा हुआ इशारा करता हूँ। मेरा रिश्तेदार आ जाता है और बातें बतला देता है। मैं लौट आता हूँ। फिर वही मुहरी की मुसीबत। इतना बदबूदार कीचड़ है कि तौबा।”
बरहाम के पैरों में भी कीचड़ लगा हुआ था। पीर अली ने देख लिया।
उसने पूछा, “खांसाहब तुम्हारे पैरों में कीचड़ कैसा?”
उसने भोलेपन के साथ उत्तर दिया, “मैं भी मुहरी में होकर बाहर थोड़ी दूर चला गया था। देखता था कि कैसा रास्ता है। आपके जाने के बाद गया और तुरंत लौट आया।”
पीर अली को संदेह हो गया। उसने एक निश्चय किया। बरहाम का संदेह जाग्रत हुआ। उसने भी एक संकल्प किया।
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