Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 21 - Vrindavan Lal Verma

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अस्त 

(क्या सचमुच?)


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मदनपुर की लड़ाई जीतने के बाद रोज़ की सेना ने शाहगढ़ को अधिकार में किया। फिर मडावरा की गढ़ी को क़ब्ज़े में करने के उपरांत बानपुर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया। बानपुर के महल के कुछ भाग को तोप से उड़ा दिया, बाक़ी को जला दिया और उन दोनो राज्यों के बड़े कर्मचारियों को फाँसी पर चढ़ा दिया। इन महलों में पुस्तकों और चित्रों का भी संग्रह था, परंतु विप्लवकारियों की सम्पत्ति होने के कारण से अस्पृश्य हो गए थे। 

वध और अग्नि बरसाती हुई, रोज़ की सेना १२ मार्च सन १८५८ को तालबेहट पहुँची। तालबेहट का प्राचीन दृढ़ क़िला लड़ाई के लिए उपयुक्त था, परंतु उसमें विप्लवकारी बहुत थोड़ी संख्या में थे और उनका नायक कोई बड़ा आदमी था। मुक़ाबले में रोज़ सरीखा चतुर और विजय प्राप्त सेनापति तथा अंग्रेज़ी की विशाल सेना और तोपें - विप्लवकारी भाग गए और रीज़ ने तालबेहट का क़िला सहज ही अधिकार में कर लिया। चन्देरी में बानपुर के राजा का एक दस्ता था। रोज़ ने सोचा 

बग़ल के इस काँटे को पहले निकाल डालना चाहिए। उसने चन्देरी पर हमला करने के लिए अपने एक अफ़सर ब्रिगेडियर स्टूअर्ट को भेजा। स्टूअर्ट ने बिना किसी कठिनाई के चन्देरी को पराजित कर दिया। 

झाँसी की पूर्वी तहसील मऊ में एक छोटा सा गढ़ था। इस गढ़ में रानी की ओर से काशीनाथ भैया और आनंदराय इत्यादि छोटे छोटे जागीरदार तैयारी कर चुके थे। मऊ के दमन के लिए रोज़ ने बानपुर विध्वंस के बाद अपना एक दस्ता सीधा भेज दिया था। रोज़ ने झाँसी पर चढ़ाई करने के पहले रानी लक्ष्मीबाई के पास संवाद भेजा। 

आप अपने दीवान लक्ष्मणराव, लाला भाऊ बख्शी, मोरोपंत ताम्बे (आपके पिता), नाना भोपटकर, दीवान जवाहरसिंह, दीवान रघुनाथ सिंह, कुंवर खुदाबख्श और मोतीसाई के साथ निशस्त्र चली आवें अन्यथा कठोर और भयंकर फल के लिए तैयार रहे।

इस प्रकार के संवाद के लिए रानी तैयारी थी, परंतु जिस मोतीसाई को जनरल रोज़ चाहते थे उसके स्मरण से रानी के दीवान खास में हँसी का तूफ़ान खड़ा हो गया

नाना साहब”, रानी ने हँसी को रोक कर कहा, “इस मोतीसाई को कहाँ से पकड़ बुलाऊँ?”

नाना भोपटकर ने कहा, “सरकार के यहाँ यदि बनावट चलती होती और जाली सिक्के ढलते होते तो किसी कि किसी को साई का चोग़ा पहिना दिया जाता।

मोतीबाई दीवान खस में मौजूद थी, झुंझलाई हुई सूरत बनकर बोली, “सरकार दूत को बुलाकर पूछा जाय कि मोतीसाई किस हुलिया का आदमी है?”

मोरोपंत ने कहा, “उसके लम्बी दाढ़ी होगी, बड़े बड़े केश और खूनी आँखें। साईयों और साधुओं ने अंग्रेज़ी फ़ौज के भड़काने में ज़्यादा भाग लिया है, इसलिए रोज़ को एक साई भी चाहिए। 

दीवान लक्ष्मणराव गम्भीर होकर बोला, “सरकार उत्तर जल्दी भेज दिया जाना चाहिए। दूत को शीघ्र लौटना है, क्योंकि उसको कोई भी अपने घर नहीं ठहराना चाहेगा।

भाऊ बख्शी ने कहा, “और रोज़ यहाँ से बहुत दूर भी नहीं है। शायद दूत के पीछे पीछे रहा हो।

मोतीबाई ने पूछा, “और यह मोतीसाई कौन साई बाला है?इसका क्या उत्तर होगा?”

रानी ने हँसी को दबाकर कहा, “मैं बतलाऊँगी।

लक्ष्मणराव फिर बोला, “क्या उत्तर दिया जाए?”

रानी ने और अभी अधिक गम्भीर होकर कहा, “मैं अकेली उत्तर देने वाली कौन होती हूँ? झाँसी ने समग्र मुखियों को, सब जातियों के पंचों को जोड़ो। अपने सब सरदार इस समय झाँसी में ही हैं। वे सब और आप लोग एकमत होकर कह दें तो मैं अकेली निसशस्त्र  चली जाऊँगी।

वाक्य समाप्त होते होते रानी ने श्वास और उच्छ्वास लिए और किसी उखाड़ते हुए भाव का कठिनता के साथ, कठोरता के साथ नियंत्रण किया।

तुरंत झाँसी के मुखिया, पाँच, सरदार इत्यादि इकट्ठे किए गए। जो कुछ उन लोगों ने कहा उसमें महत्व की बातें ये थी।

लड़ेंगे।अपनी झाँसी के लिए, अपनी रानी के लिए, मरेंगे।

हमारे पास जितना, रुपया और आभूषण हैं, सब स्वराज्य की लड़ाई के लिए रानी के हाथ संकल्प है।

हम दिखलाएँगे कि झाँसी का पानी कितना स्वच्छ और कितना गहरा है।

आप अंग्रेजों को उत्तर दीजिए कि झाँसी उन लोगों को माँ की छठी के दूध की याद दिलावेगी।

जनमत रानी के मत से मिला हुआ था ही, इस समय बहुत प्रबल हो गया। परंतु रानी ने झाँसी की हुंकार को, वीना की टंकार में परिवर्तित करके भेजा। उन्होंने लिखा। 

मिलने के लिए क्यों बुलाया - इसका ब्योरा आपने कुछ नहीं दिया। मिलाप के पर्दे में मुझे धोखा दिखलाई पड़ता है। मैं स्त्री हूँ। निसशस्त्र कैसे सकती हूँ? राज्य के दीवान और बख्शी ससैन्य सकते हैं।रानी ने इस चिट्ठी पर अपने हस्ताक्षर किए।

भोपटकर से कहा, “आपकी नीति का क्या फल हुआ?”

उसने उत्तर दिया, “यही कि अंग्रेज लोग बिना सूचना के झाँसी पर नहीं चढ़ दौड़े।

मार्टिन को चिट्ठी लिखी थी?”

हाँ सरकार। उसने जबलपुर के कमिश्नर को और इस जनरल को अवश्य कुछ लिखा होगा।
फल?’

कुछ समय मिल गया, यही बहुत है।

दूत को रानी की चिट्ठी दे दी गई। दूत गया। उसने प्रस्थान कर पाया होगा कि पीर अली ने रानी के पास संदेसा भेजा। सरकार की आज्ञा हो तो मैं अंग्रेज छावनी की खबर ले आऊँ कि कितनी और कैसे सेना है, तथा कितनी तोपें हैं और वे लोग किस ढंग से झाँसी पर आक्रमण करेंगे।

मोतीबाई ने इन बातों का पता लगाने का सामर्थ्य तो प्रकट किया, परंतु पीर अली के भेजे जाने पर आक्षेप नहीं किया। पीर अली को अनुमति मिल गई। 

रानी ने मोतीबाई से कहा, “तेरा नाम कैसे सुंदर रूप में अंग्रेजों के पास पहुँचा है। मुझको कोई संदेह नहीं मेरे जासूसी विभाग के सरदार को ही साई बना लिया गया है।

मोतीबाई बोली, “सरकार के सामने गाली नहीं निकली, परंतु यदि उस मुँहझोंसे रोज़ को पा गई तो तोप बंदूक़ या तलवार से सच्चा नाम बतलाए बिना मानूँगी।

मैं तो दरबार मेंरानी ने कहा, “बड़ी कठिनाई से हँसी को रोक पायी। मोतीसाई! मोतीसाई कैसा बधिया नाम है।और वह खिलखिला कर  हँस पड़ी।

मोतीबाई भी हँसते हंसते बोली, “सराकर मेरी चल नहीं सकती थी, नहीं तो मैं चिट्ठी के सिरनामे पर लिखवाती, “मैम साहब रोज़ को मोतीसाई का सलाम। चुपचाप हिंदुस्तान को पीठ दिखाओ और अपनी विलायत में झख मारो।जब यह चिट्ठी उसकी फ़ौज में चर्चा पाती तब उस मुँहजले को मुहँ दिखलाने में लाज आती।

रानी गम्भीर हो गयी।

पीर अली कल तो लौट आवेग?”

यदि उसको किसी ने मार्ग में ही समाप्त कर दिया तो।

आदमी तो चतुर है।

बहुत काइयाँ। मुझको उस पर कभी कभी अविश्वास हो जाता था, परंतु कुछ दिनों से वह ऐसा जी लगाकर काम करता है कि संदेह निवृत हो गया।

अंग्रेजों के साथ हिंदुस्तानी सिपाही भी हैं।

मैंने भी सुना है। भोपाल और हैदराबाद की रियासतों के दस्ते हैं। कुछ तिलंगा पलटन है, बाक़ी गोरे।

सब कितने होंगे?”

सरकार ठीक ठीक पता नहीं। कई हज़ार हैं। ठीक बात पीर अली के लौटने पर मालूम होगी।


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पीर अली इतनी तेज़ी के साथ गया कि उसको जनरल रोज़ का दूत मार्ग में ही मिल गया।उसने जनरल रोज़ के पास पहुँचने की प्रार्थना की। पीर अली को रोज़ के पास पहुँचा दिया गया। उसके पार नवाब अली बहादुर का संदेसा और पीर अली का नाम पहुँच चुका था। पीर अली को पाकर रोज़ प्रसन्न हुआ। पीर अली ने रोज़ को झाँसी की पकी और कच्ची सब बातें सुनाई। स्त्रियों की सेना का सविस्तार वर्णन सुनकर रोज़ हैरान हो गया। हिंदुस्तान की स्त्रियाँ सिपाहिगिरी का काम करती हैं। उआस्को विश्वास होता था, परंतु अली बहादुर की चिट्ठियों से और उसने बम्बई में आते ही विप्लवकारियों का जो वर्णन सुना था और उस वर्णन में रानी ने जो स्थान पाया था, उससे वह इस असम्भव बात को मानने के लिए तैयार हो गया। 

रोज़ ने पूछा, “रानी ने अंग्रेज बच्चों और स्त्रियों का क़त्ल करवाया?

हरगिज़ नहीं”, पीर अली ने उत्तर दिया।

रोज़ को मार्टिन की चिट्ठी की बात जबलपुर के कमिश्नर ने बतलाई थी, और उसने मार्टिन की चिट्ठी पर अपना अविश्वास भी प्रकट किया था। परंतु रोज़ और उसके साथी अंग्रेज रानी की निर्दोषिता को मानने के लिए तैयार ही थे।

 झाँसी के कुछ लोगों ने उनके बाल बच्चों का वध किया था, इसलिए उनको झाँसी और सारी भूमि  से बदला लेना था। रानी झाँसी का सजग चिन्ह थी, इसलिए उनको दोषमुक्त कैसे माना जा सकता था? दूत ने रानी का जो उत्तर दिया, वह शिष्ट और मधुर होते हुए भी स्पष्ट था। 

रोज़ ने १७ मार्च को तालबेहट से कूच करके बेतवा पार की। पीर अली आगे किस प्रकार जनरल रोज़ की सहायता करेगा, यह तै हो गया और वह शीघ्र झाँसी लौट आया। रोज़ झाँसी की ओर सावधानी के साथ आगे बाधा। आसपास का प्रदेश दृढ़ता के साथ अपने अधिकार में करने में उसको दो तीन दिन लग गए।

इसी समय रोज़ को प्रधान सेनापति कैम्बैल का आदेश मिला - “तात्या टोपे ने चरखारी के राजा को घेर लिया है। पहले चरखारी की सहायता करो।

रोज़ ने आदेश का उल्लंघन किया - वह झाँसी के महत्व को जानता था। 

उसने उत्तर दिया, “मैं आज्ञा की अवज्ञा के लिए क्षमा चाहता हूं। चरखारी का गिर पड़ना या खड़ा रहना कूच मूल्य नहीं रखता। मुझको पहले झाँसी से निबटना है।” 

चरखारी को राजभक्ति का पुरस्कार मिल गया। तात्या टोपे ने चरखारी से २४ तोपें और तीन लाख रुपए चीन लिए, और कालपी लौट आया।

पीर अली ने जो समाचार रानी के पार भिजवाया वह बहुत अनोखा था, परंतु उसको काफ़ी महत्व दिया गया।

उसने बतलाया कि पलटनें अमुक अमुक नम्बर की हैं और प्रत्येक पलटन में इतने सिपाही। तोपों की गिनती बतलाई और प्रबंध की खूबी को प्रकट किया। रोज़ की कुल सेना सात हज़ार कूती गई। 

नाना भोपटकर तक को पीर अली का विश्वास हो गया और वह रहस्य के कार्यों में शामिल किया जाने लगा। जब मोतीबाई को ही पीर अली पर संदेह रहा तब रानी को संदेह हो ही क्यों सकता था?

पीर अली ने नवाब साहब के पार भांडेर समाचार भेज दिया और कहला भेजा कि अब बहुत समय तक कोई खबर मिल सकेगी। पीर अली भयानक खेल खेल रहा था। 

जिस दिन पीर अली लौटकर आया उसी दिन राहतगढ के भागे हुए लगभग पाँच सौ पठान रानी के शरणार्थी हुए। रानी ने उनको नौकर रख लिया। उनके एक सरदार का नाम गुल मुहम्मद था। इन लोगों का समाचार पीर अली ने रोज़ को नहीं भेज पाया और इस बात का उसको खेद था। 

रानी के पास जब ये पठान आए तब वे बड़ी हीन अवस्था में थे। कपड़े सब फट गए थे। जाने कितने दिन से उनको भरपेट भोजन मिला था। अच्छे हथियार पास थे। कुछ के पास तो सिवाय लाठी या छुरी के और कुछ था। रानी ने उन सबको सब प्रकार की सुविधाएँ दी। उन्होंने प्रण किया, “स्वरजय के लिए रानी के कदमों में अपने सबके सिर देंगे।इन पठानों ने अपने प्रण को जैसा निभाया उसको इतिहास जानता है और झाँसी की लोक परम्परा उसको नहीं भूली और कभी भूलेगी। 

पीर अली को कुछ पठान मिले। उसने पूछा।

तुम्हारा कौन मुल्क है खान?”

झाँसी अमारा मुलक है बाबा, तुम्हारा मुलक?”

मैं झाँसी का ही रहने वाला हूँ।

तब अम तुम बाई बाई हे बाबा।

बाईसाहब का राज्य है खान।

बेशक है। और हमारा तुम्हारा बी।

झाँसी नगर के काट के सब फाटकों पर बड़ी और छोटी तोपों का उचित प्रबंध कर दिया गया। बारूद और गोले फाटकों की बुर्जों में इकट्ठे कर दिए गए और निरंतर युद्ध सामग्री तथा रसद भेजने का प्रबंध कर दिया गया। फसीलों के छेदों में से बन्दूकों की मार का काम जिन सिपाहियों को दिया गया, उनकी तथा उनके अफ़सरों की उत्कृष्ट व्यवस्था कर ली गई। सबसे बड़ी बात यह हुई कि एक स्थान से दूसरे स्थान को और सब स्थानों से रानी के पार तथा उनके पास से सब स्थानों सब मोर्चों को तुरंत समाचार और आज्ञाएँ भेजने का बहुत अच्छा बंदोबस्त कर लिया गया।

ऐसा विश्वास था कि रोज़ दक्षिण की ओर से गया, इसलिए सागर खिड़की, ओरछा फाटक और सैयर फाटक का खास इंतज़ाम किया गया।

दीवान दूल्हाजू ओरछा फाटक पर पीर अली सागर खिड़की पर, कुंवर खुदाबख्श सौयर फाटक पर, कुंवर सागर सिंह खंडेराव फाटक पर, पूरन कोरी उन्नाव फाटक पर नियुक्त किए गए। दीवान जवाहर सिंह के हाथ में सम्पूर्ण नगर और नगर के फाटकों की रख्श का भार सौंपा गया। क़िले में हर बुर्ज पर सब मिलाकर इक्कावन बड़ी बड़ी तोपें साजी सम्भाली गई। दक्षिणी बुर्ज की टोपे ग़ुलाम गौसखां के संचालन में, पूर्व और उत्तर की तोपें भाऊ बख्शी के हाथ में और पश्चिम की तोपें दीवान रघुनाथ सिंह के अधिकार में दी गई। क़िले में पठान, चुने हुए बुंदेलखंडी सैनिक और रानी के स्त्री सेना की नियुक्ति कर दी गई। सब सैनिक लगभग चार हज़ार होंगे। पानी का प्रबंध बहुत अच्छा था, परंतु संतोषप्रद था - क़िले के पश्चिमी भाग में - शकरगढ में जहां महादेव जी का मंदिर है - एक कुआँ था उसी से सारी सेना को पानी पिलाने के लिए ब्राह्मण नियुक्त कर दिए गए।


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चैत की अमावस हो गई। नवरात्र का आरम्भ हुआ।क़िले में गौर की स्थापना हुई। रानी ने धूमधाम के साथ सिंदूरोत्सव मनाया। गौर के सामने चाँदी ही चाँदी के बर्तनों की तड़क भड़क और मंदिर के बाहर सबके लिए भीगे चाने और बताशों का प्रसाद। नगर की स्त्रियाँ सजधज के साथ उत्सव में शरीक हुई। 

फूलों की सुंदरता और सुगंधी से महादेव जी का मंदिर भार गया। स्त्रियाँ थोड़े देर के लिए आने वाली विपत्ति को भूल गई। वे अपने क़िले में थी, अपनी हंसती मुस्कुराती रानी के पास। उसकी तोपें, उनके गोलंदाज, उनके सिपाही आस पास और अपनी रक्षा का पुख़्ता हौसला अपने मन में। फिर किस बात की चिंता थी?

महादेव जी के मंदिर के समीप पलाश का एक वृक्ष था। उसमें इन दिनों प्रति वर्ष बड़े बड़े लाल फूल लगते थे और तीक्ष्ण ग्रीष्म ऋतु में उसके हरे चिकने बड़े पत्ते छाया दिया करते थे। जंगल का अवशेष और स्मारक, महादेव के मंदिर का अकेला पड़ोसी वह वृक्ष काटने से बचा दिया गया था। नवरात्र में वह पलाश लाल फूलों से गैस गया। स्त्रियाँ फूलों की एक एक माला उसकी भी डालों को पहना दे रही थी।मानो सौंदर्य को सुगंधी प्रदान की गई हो। लाल फूलों पर बेला, चमेली, गेंदा और जूही की रंग बिरंगी मलाएँ ऐसी लगती थी जैसे प्रभात के समय उषा की किरणों के गुलाल बिखेर दी हो। इस वृक्ष के नीचे कुआँ था और कुएँ के ऊपर एक बारहदरी। इस बारहदरी की रक्षा के लिए ऊँचा परकोटा था। इसके पूर्व में बहुत ऊँचाई पर क़िले की पश्चिमी बुर्ज और उसके पीछे ज़रा दूर महल।

पूजन के पश्चात स्त्रियाँ पलाश के वृक्ष के पास से सीढ़ियों द्वारा बारहदरी में इकट्ठी हो हो जा रही थी। रानी वही थी। वही सिदूरोत्सव हो रहा था - हेली कुम कुम। रानी विधवा थी, इसलिए वह स्वयं सिंदूर नहीं दे रही थी, परंतु वहाँ भाऊ बख्शी की पत्नी थी और भी अनेक सधवायें थीं, जो आपस में सिंदूर दे रही थी और किसी किसी बहाने एक दूसरे के पति का नाम लिवाने का हँस हँस कर प्रयत्न कर रही थी। 

मोतीबाई ने भाऊ बख्शी की पत्नी से कहा, “तुम अपने देवर को क्या कहकर पुकारोगी?”

बख्शीं, “मेरे देवर हैं ही नहीं।

मोतीबाई - “होता, तो बख़्शिनजु उसको कैसे पुकारती?”

बख़्शिन - “लाला कहती।

रानी - “और बिंदेलखंड में लाला के लिए दूसरा शब्द क्या है?”

बख़्शिन - “सरकार, भउआ।

सब हैंड पड़ी।

बख़्शिन ने क्रोध में मुद्रा बनकर कहा, “महारानी साहब की सहायता से हारा लिया, नहीं तो मैं इतना छकाती कि ये सब याद करती।

रानी बोली, “तुम इस सबके लिए अकेली ही बहुत हो।

बख़्शिन मोतीबाई के पीछे पद गई। उसे पकड़कर अकेले में ले गई।

बख़्शिन - “बतलाओ भगवान का दूसरा नाम क्या है?”

मोतीबाई - राम, कृष्ण, मुरारी, परमात्मा, अल्लाह।

बख़्शिन - “और और?”

मोतीबाई - “दयासागर, परवरदिगार, रहीम……..”

बख़्शिन - “मैं तुम्हारा मुँह मींद दूँगी। बतलाओ वह नाम जिसको मुसलमान लोग दिन रात जपते हैं, नहीं तो तमहरि गत बनाऊँगी।

मोतीबाई ने धीरे से कहा, “ख़ुदा।

बख़्शिन ने उसका सिर पकड़कर कंधे से लगा लिया।

बोली, “ख़ुदा से दूर हो या पास?”

मोतीबाई ने उत्तर दिया, “दूर हूँ दीदी। यदि अच्छे दिन आए तो ब्याह करूँगी।

रानी के सामने आने को थी कि मोतीबाई ने बख़्शिन से कहा, जूही से कुछ मत पूछना।। वह सरदार तात्या टोपे को प्राण दिए बैठी है, पर उन्होंने आज तक प्यार की दो बातें भी उससे नहीं की। 

नहीं पूछूँगी”, बख़्शिन ने आश्वासन दिया। रानी समझ लिया। छेड़छाड़ नहीं की। 

झलकारी नहीं आई थी। रानी ने उसको बुलवाया। उसके आते ही रानी के पैर पकड़ लिए।

रानी ने कहा, “मैंने इसके लिए नहीं बुलाया था। तू हर साल आती थी। इस साल अब तक क्यों नहीं आई?”

सरकार”, झलकारी ने उत्तर दिया, “मोंसे अपराध हो गओ हतो।

रानी बोली, “कोई अपराध नहीं हुआ।

झलकारी - “बछिया घायल तौ हो गई ती।

रानी - “हो गई होगी। मरी तो नहीं - बच गई।

झलकारी - “सरकार ने मोय और मोरे आदमी खौं बचा लओ, नई तर कऊ ठिकानो हतो।

रानी - “तमहरे आदमी का नाम भूल गई उसको क्या कहते हैं?”

झलकारी - “ऊँ….ऊँ….”       

रानी - “ऊँ….ऊँ भी कोई नाम होता है?”

ऊँ….ऊँ ने कहा, “सरकार इससे बुंदेलखंडी बोली में बोले।

मोतीबाई ने आग्रह किया, “सरकार के मुँह से यहाँ की बोली बहुत अच्छी लगती है।

जूही ने अनुरोध किया। 

सुंदर, मुंदर और काशीबाई भी पीछे पद गई। 

मुंदर बोली, “सरकार, बुंदेलखंडी में बोले तो यह अवश्य अपने पति का नाम बटला देंगी। बतलाओगी झलकारी? बटला देना भला, नहीं तो हम लोगों की बात बिगड़ जाएगी।

झलकारी ने उस बारहदरी के वातावरण को परिहास, सौंदर्य, सुगंधी और आग्रह से भरा पाया - उसने हामी का सिर झुकाया।

रानी ने कहा, “तोरे घर वारे को का नाओ झलकारी?”

झलकारी - “हओ ऐसे सूदऊँ बताऊँ जात कऊँ?”

रानी - “तौ कैसे बताए पनमेसरी?”

झलकारी - “मोए कौनऊँ धोको देओ। जैसे एक बेर पूँछी हटी तैसे पूँछो अपन।

रानी - “आज कौन मिति है?”

झलकारी - “पाचै महाराज।

रानी - “दस दिन पाछै का हुइये?”

झलकारी - “पूनै।

रानी हँस पड़ी, उन्होंने फोलों की एक माला झलकारी के गले में डाली, सिर पर हाथ फेरा।

विनोद की समाप्ति पर सब स्त्रियाँ महादेव के मंडित के पास उतर आई। उतरती जाती थी और पलाश के पेड़ को हिलाती जाती थी। उसके लाल फूल मालाओं समेत झूम झूम जाते थे।

महादेव का मंदिर छोटा सा है और आस पास का आँगन भी संकरा ही है, परंतु उसमें बहुत स्त्रियाँ इकट्ठी थी।

चहल पहल को बैंड करके रानी ने स्त्रियों से कहा, “दो चार दिन के भीतर ही अपनी झाँसी के ऊपर गोरों का प्रहार होने वाला है। तुम में से अनेक युद्ध विद्या सीख गई हो। जो जिस कार्य को कर सके वह उस कार्य को हाथ में ले। लड़ने वालों के पास गोला, बारूद, खाना पानी इत्यादि ठीक समय पर पहुँचता रहना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर हथियार भी चलाना पड़ेगा। तुम में से कोई मेरी बहन के बराबर हो, कोई माता के समान , अपने बाप की, अपने ससुर की, अपने पति की अपने भाई की लाज तुम्हारे हाथ है। ऐसे काम करना जिसमें अपन पुरखों को कीटी मिले। मैंने नगर का प्रबंध कर लिया है। तुम्हारी आवश्यकता मुझको क़िले में है। मेरे साथ रहना। बीच बीच में छुट्टी मिल ज़ाया करेगी, तब घर हो आया करो।

झलकारी बोली, “मैं सरकार अपने आदमी के पासए रैहो। अपन ने उन्नाव, फाटक की तोप उनखो सौंपी है।

रानी ने मुस्कुराकर कहा, “ऐसौइ हुइहै झलकारी। अपने आदमी के पास रइओ, पै ऊकौ नाओ तो बताऔ।

झलकारी घूँघट काढ़ कर बोली, “हूँ - अबईं तो बताओ तो।

सब स्त्रियाँ हँस पड़ी।

रानी ने कहा, “अब एक बार सब भगवान का नाम लो, “हर हर महादेव।

सब स्त्रियों के कंठ से ध्वनित हुआ, “हर हर महादेव।

ऊँ कोयल, किंतु दृढ़ काँटों का वह निनाद क़िले की कठोर दिवाली से जा टकराया। उसकी झाई महादेव के मंदिर में लौट अपदि। हुआहर हर महादेवअनंत दिशाओं में, अनंत काल में वह अनंत अमर नाद सा समा गया। महल के पास सिपाहियों के कोठे थे। उनमें नवागंतुक पठान भी थे। हल्ले को सुनकर हथियार लेकर बाहर निकल आए। बुंदेलखंडी सिपाहियों ने उस हल्ले का उनको सविस्तार अर्थ समझाया।

उनका अगुआ गुलमुहम्मद बोला, “बाई जहां की औरत लड़ने को ऐसा तैयार है, वहाँ का मरद तो आस पास को चक्कर खिला देगा। ओर अम लोग अम लोग ख़ुदा क़सम इस मुलक के लिए सब मर मिटेगा। वकत आने दो, बाई वकत।पठानों ने दांत मीसकर मन ही मन प्रण किया।


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जनरल रोज़ ससैन्य २० मार्च के सवेरे झाँसी के पूर्व दक्षिण कमसिं देवी की तौरिया के पीछे, झाँसी के लगभग तीन मील के फ़ासले पर गया। थोड़ी देर में तम्बू टन गए। इन तम्बुओं को रानी ने क़िले के महल की छत पर से दूरबीन द्वारा देखा। झाँसी भर में सनसनी फैल गई, परंतु वह सनसनी भय की थी, उत्साह की थी।

क़िले के गोलंदाज़ों ने भी दूरबीन लगाई। तोपों पर पलीते डालने के लिए हाथ सुरसुरा उठे, परंतु उस समय की तोपों के लिए अच्छा निशाना मारने के प्रसंग में तीन मील का फ़ासला बहुत था। स्त्री गोलंदाज़ों ने भी दूरबीन पकड़ी। 

मोतीबाई ने उमंग के साथ रानी से का, “सवारों का हमला कर दिया जाय तो सब तम्बू कनातें तीतर बितर हो जाएँ।

रानी बोली, “समझ से काम लो। इन तम्बुओं के बीच में अग़ल बग़ल और आगे पीछे तोपें लगी होंगी। एक सवार भी लौट कर सकेगा। लड़ाई क़िले और परकोटे के भीतर से लदनी पड़ेगी। घिर जाएँगे। परंतु एक तत्यस टोपे राव साहब की सेना लेकर जावेंगे। तब रोज़ की सेना पर दुहरी मार पड़ेगी।

राव साहब के पाद संदेश भिजवा दिया गया?”

आज ही भेजती हूँ।

पीर अली के हाथ भेजा जाय। जाने माँ क्यों नहीं बोलता।

सोचती हूँ किसको भेजूँ। रानी ने कुछ क्षण सोचकर कहा, “तू बतला मोती  किसको भेजूँ।

मोतीबाई बली, “जो मन में नाम उठते हैं, वे सब किसी किसी काम पर लिकज लिए गए हैं। मैं सोचती हूँ, जूही हो सवार के साथ भेज दिया जाय।

वह सुकुमार है, कोमल है”, रानी ने कहा। 

मोतीबाई ने सतृष्ण नेत्रों से रानी की ओर देखा। बोली, “सरकार संसार की जितनी मंजुलता है, वह हमारे मालिक में निहित है। उनसे बढ़कर कोई नहीं। इतनी मृदुल होते हुए भी वे फ़ौलाद से भी बढ़कर कठोर हैं। तब उनकी चाकरनी क्या संवाद वाहक का भी काम कर सकेगी? और फिर वह दृढ़ भी काफ़ी है। इस कार्य में उसका माँ लगेगा। उसी को भेजने की अनुमति दी जाय। उसको तुरंत शहर छोड़ देना चाहिए। अंग्रेज लोग शीघ्र घेरा डालेंगे। सब फाटक बंद होने ही वाले हैं। फिर कोई भी जा सकेगा।

रानी ने स्वीकृति दे दी।

कहा, “मैं जूही को भेजने की अनुमति देती हूँ। उसके साथ काशी को भेजना चाहती हूँ। तुमको उसके साथ कर देती, परंतु तुम्हारी यहाँ अधिक आवश्यकता पड़ेगी।

रानी ने काशी और जूही को उसी समय कालपी के लिए रवाना कर दिया उन दोनों के घोड़े अच्छे थे। ज़रूरी सामान साथ था। दोनो सशस्त्र युवा के वेश में गई। 

काशीबाई और जूही के चले जाने पर नगर के सब फाटक बंद कर लिए गए।

झाँसी की अनेक स्त्रियों ने उसी दिन रानी के पास सैनिक वेश में अपना निवास बनाया। ये ही स्त्रियाँ जो घर पर बात में चबड़ चबड़ किया करती थी, ज़रा सा कारण पाने पर परस्पर लड़ बैठती थी, साध्य के समय वस्त्राभूषणों और फूलों से सुसज्जित होकर, थालों में दिए रख रख कर, मंदिरों में पूजन के लिए जाती थी, वे ही स्त्रियाँ सैनिक वेश में, तलवार बांधे और बंदूक़ कंधे पर साढ़े, चुपचाप अपना अपना कर्तव्य पालन करने में निरत हो गई। उनका शृंगार और वाक् युद्ध - सब तलवार के म्यान में समा गया। लोगों की कल्पना थी कि अंग्रेज रात को झाँसी पर हमला करेंगे। झाँसी सचेत थी, परंतु रात को हमला नहीं हुआ।

२१ मार्च को जनरल रोज़ ने अपने मातहत दलपतियों के साथ दूर से झाँसी का चक्कर काटा और भूमि का सूक्ष्म निरीक्षण किया। आक्रमण और रक्षा के स्थान में सेना की टुकड़ियाँ और तोपें लगा दी। शहर और क़िले के भीतर के लोगों को जिन जिन मार्गों से सहायता या रसद मिल सकती थी, उन सबको उसने अपने आधीन कर लिया। शहर के सब फाटकों की नाकेबंदी कर ली। उसी दिन चन्देरी से ब्रिगेडियर स्टूअर्ट अपने दस्ते के साथ लौट आया। रोज़ को और बल मिला। 

जहां जहां अंग्रेज फ़ौज के दल लगाए हे थे वहाँ वहाँ उनकी रक्षा के लिए खाइयाँ खोद ली गई। एक स्थान से दूसरे स्थान टक्क तार लगा दिया गया। कामासिन टौरिया पर एक बड़ी दूरबीन लगाई गई और तार घर क़ायम किया गया। बात की बात में युद्धक्षेत्र के एक स्थल से दूसरे स्थल को समाचार भेजने की पूरी सुविधा हो गई, और दूरबीन से देखने योग्य क़िले का सब हाल मालूम करना भी सुलभ कर लिया गया। 

झाँसी के आस पास की सब टौरियों की आड़ से अंग्रेज़ी तोपख़ाने मृत्यु वामन करने के लिए वैज्ञानिक तौर पर सन्नद्ध हो गए और टौरियों के बीच बीच में जो नीची जगह और खाईयाँ थी उनमें बंदूक़ चलाने के लिए छेद और नालियाँ बनकर, सैनिक अपने जनरल की आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे। रोज़ जैसा योग्य सेनापति था, सेना उसकी उतनी ही सीखी सिखायी हिंसामय और अनुभवी थी।

दूसरे दिन (२२ मार्च को) रोज़ के बीस पच्चीस घुड़सवार निरीक्षण के लिए काट के कुछ अधिक निकट गए। सैयर फाटक के पास दाहिनी ओर जहां ऊँची मटीली टौरिया काट के बाहर और भीतर हैं। यहाँ से उन घुड़सवारों के ऊपर तदातड गोलियों की वर्षा हुई। मारा तो उनमें से कोई नहीं, परंतु घायल अनेक हो गए। रोज़ को तुरंत समाचार मिल गया। उसने समझ लिया कि झाँसी कर्रा मुक़ाबला करने के लिए तैयार है। रोज़ ने उसी दिन झाँसी पर धावा नहीं बोला। अपने सम्पूर्ण साधनों और उपकरणों का फिर से निरीक्षण किया जहां को त्रुटि पाई, उसको सम्भाला।

मंगलवार (२३ मार्च) को रोज़ ने हमले की आज्ञा दी। युद्ध आरम्भ हो गया।

सैयर फाटक की बाईं तरफ़ एक टेक पर अंग्रेजों का तोपख़ाना था। वहाँ से सैयर फाटक और ओरछा फाटक पर तथा उन फाटकों के बीच की दीवार पर गोलों के बरस हुई। चलते हुए गोलों की चादर के नीचे गोरी पलटन संगीनी बंदूक़ें लिए दीमक की तरह चली। खुदाबख्श और दुल्हाजु ने उनको बढ़ने दिया। जब मार के काफ़ी भीतर गए तब उन्होंने कहार को मानो उँडेल दिया। गोरी पलटन धरती में बिछ गई और फिर खुदाबख्श ने टेक के तोपख़ाने को अपना लक्ष्य बनाया। अंग्रेज तोपची मारे गए और तोपों का मुँह बैंड हो गया। तोपख़ाने के पीछे वाली सेना पीछे को भागी। उसके ऊपर ग़ुलाम गौस नेघनगरजकी मार फेंकी। मुश्किल से कूच आदमी बचकर रोज़ के पास तक पहुँच पाए। पूर्व की ओर से भी सागर खिड़की और लक्ष्मी फाटक पर हमला होता हुआ दिखा, परंतु उसकी गति धीमी थी - लक्ष्मी ताल के दक्षिणी सिरे का छोटा सा चक्कर देना पड़ा, परंतु भाऊ बख्शी कीकड़कबिजलीने पूर्व का मोर्चा ऐसा साध रक्खा था कि पूर्व की ओर से आक्रमण करने की रोज़ को साध माँ में ही समा गई।

रोज़ ने क़िले के दक्षिण में, जीवनशाह की टौरिया के ठीक बग़ल में - पूर्व की ओर - क़िले से तीन सौ गज के फ़ासले पर मोर्चा बनाया, परंतु इस मोर्चे के बनाने में उसको काफ़ी समय और आदमी खर्च करने पड़े। संध्या तक वह बहुत काम काम कर पाया। रात में मोर्चा बनकर तैयार हो गया। इसके सिवाय रोज़ ने इस मोर्चे की सहायता के लिए तीन नए मोर्चे और बनाए। 


Part #20 ; Part #22

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