Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 19 - Vrindavan Lal Verma
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नत्थेखां के दूत ने जो संदेसा दिया, उसका सार यह था कि झाँसी पहले ओरछा को अंश था, वह अनुचित प्रकार से ओरछा से काट दिया गया, अब ओरछा ओ वापिस मिलना चाहिए। अंग्रेज जो पाँच सहस्र मासिक वृत्ति रानी साहब को देते थे उन्हें ज्यों की त्यों मिलती रहेगी, किल नगर और शास्त्र हमारे हवाले कर दो।नगर में समाचार फैलते देर न लगी। नई बस्ती से, जहां अली बहादुर का निवास था, खबर फैली कि नत्थेखां फ़ौज ले कर आ भी गया है और शहर के चारों ओर घेरा पड़ गया है। लोग घबरा गए।
मोतीबाई ने रानी को समाचार दिया, नत्थेखान बीस सहस्र सेना और अनेक तोपें लेकर ओरछा से कूच करने वाला है।
रानी ने पूछा, “वह ओर्छे में आया कब?”
“कल आया था” , मोतीबाई ने उत्तर दिया।
रानी ने कर्मचारियों से विचार विमर्श किया। झाँसी में अच्छी तैयारी न थी। कर्मचारी सब घबराहट में थे।
अकेली रानी धैर्य धारण किए थी। उन्होंने कहा, “राजनीति की आप लोग जानो। युद्ध का संचालन मैं करती हूँ, नत्थेखां को भागने के लिए कठिनता से गली मिलेगी।”
नाना भोपटकर ने अनुरोध किया, “सरकार विजय की मूर्ति हैं। हमको युद्ध के अंतिम परिणाम के विषय में कोई संदेह नहीं। यदि सरकार को मेरी राजनीति में विश्वास है, तो मेरी एक प्रार्थना मानी जाय।”
रानी ने स्वीकार किया।
भोपटकर ने कहा, “हमारे यहाँ अंग्रेज झंडा यूनियन जैक रक्खा हुआ है। अपने झंडे के साथ हम उसको भी खड़ा करेंगे। क़िले में जो अंग्रेज बंद हो गए थे उनमें से एक मार्टिन नाम का व्यक्ति, फ़ौज वालों के हाथ से भाग निकला था। वह आगरा में है। एक चिट्ठी में उसको इस प्रकार की लिखूँगा कि हम लोग नत्थेखां के विरुद्ध अंग्रेजों की ओर से लड़ रहे हैं। मेरी राजनीति को इस चिट्ठी से सहायता मिलेगी।”
रानी बोली, “परंतु यह राजनीति चलेगी कितने दिनों? हमारी आनर में, सारे देख में स्वरजय स्थापित करना है। यूनियन जैक झंडे के नीचे स्वराज्य की स्थापना असम्भव है। चिट्ठी चाहे जिसको मनमानी लिखो, परंतु झंडा तो चिट्ठी से बहुत बड़ा होता है।”
“सरकार”, भोपटकर ने कहा, चिट्ठी और खंडे का सामंजस्य है। हम कुछ समय तक अपने आदर्श को ढका मुँदा रखना चाहते हैं। यदि स्वराज्य का प्रयत्न देश भर में ३१ मई को एक साथ ही हो गया होता, तो राजनीति की दिशा कुछ और होती, परंतु अब उसमें परिवर्तन आवश्यक है।”
लाला भाऊ बख्शी बोला, “सरकार देखने के दांत कुछ और, खाने कुछ और। भोपटकर साहब का रही तात्पर्य है।”
रानी मुस्कराई। दरबारियों ने समझ लिया कि उन्होंने कोई दृढ़ निश्चय कर लिया है।
“नाना की बात को मैं टाल नहीं सकती हूँ”, रानी ने कहा, “परंतु गेरुआ झंडा सबसे ऊपर की बुर्ज पर रहेगा और अंग्रेजों का झंडा चाहे जहां, नीचे की बुर्ज पर लगा लो।”
मंत्रिमंडल ने स्वीकार किया।
रानी बोली - “लाला भाऊ, तोपों का तुरंत प्रबंध करो। जवाहर सिंह रघुनाथ सिंह इत्यादि को सावधान करो। सब फाटक बंद करके फाटकों की बुर्जों पर गोला बारूद इसी समय जमा करो। नत्थेखां कई ओर से आक्रमण करेगा। क़िले पर बड़ी तोपें चढ़ी हैं?”
भाऊ ने उत्तर दिया, “सरकार, केवल कड़क बिजली नीचे रक्खी है। उसको अभी चढ़वाता हूँ और सरकार की अन्य आज्ञाओं का पालन करता हूँ। दीवान जवाहर सिंह यहीं हैं, परंतु दीवान रघुनाथ सिंह उन्नाव की ओर गए हुए हैं।”
रानी - “तुरंत बुलाओ।”
भाऊ - “जो आज्ञा सरकार।”
रानी - “बरुआसागर वाला सागर सिंह कहाँ है?”
भाऊ - “मऊ वाले काशीनाथ भैया के साथ करेरा की ओर गए हुए हैं।”
रानी - “दोनो को वहाँ से बुलवाओ। सेना हमारे पास बहुत थोड़ी है। यदि नत्थेखां ववतव में २० सहस्र सेना लेकर आ रहा है, तो कर्रा सामना पड़ेगा, परंतु चिंता मत करो। हमारे पास क़िला है। बुर्जें और तोपें हैं। और गोलंदाज अच्छे हैं।”
भाऊ - “”गोलंदाज हमारे पास कुछ कम हैं, परंतु सरकार का जैसा आदेश होगा, उनकी वैसे ही नियुक्ति कर ली जावेगी।
रानी - “मैं कुछ स्त्रियों को तोपची का काम सिखलाना चाहती थी,अभी उनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पायी है, इसलिए ग़ुलाम गौसखां को ओर्छे दरवाज़े के लिए तैयार रक्खो और तुम स्वयं क़िले की दक्षिणी बुर्ज पर कड़क बिजली चढ़ाकर काम करो। मैं अपनी स्त्री सेना को लेकर सब मोर्चों पर जवाहर सिंह की और गौस की सहायता करूँगी। बस्ती वालों से कह दो कि निश्चिंत रहें परंतु भीड़ बांधकर बाहर न चले फिरें।”
भोपटकर ने मार्टिन के नाम एक पात्र आगरा भेजा, और नीचे वाली बुर्ज पर यूनियन जैक झंडा चढ़ा दिया।
ओरछा के दूत को नत्थेखां के संदेसे का उत्तर दिया कि लक्ष्मीबाई एक स्त्री हैं, खां साहब को अबला की रक्षा करनी चाहिय न कि उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार। रानी अंग्रेजों की ओर से झाँसी का प्रबंध कर रही हैं, ओरछा अंग्रेजों का मित्र राज्य है, इसलिए ओरछा की ओर से झाँसी पर आक्रमण होना बिलकुल अनुचित है यदि आक्रमण हुआ तो झाँसी अपनी रक्षा करेगी।
दूत संदेसे का उत्तर लेकर तुरंत चला गया।
रानी ने दीवान से कहा, “मुझे खेद है कि झाँसी के समग्र निवासी युद्ध विद्या में निपुण नहीं किया जा सके हैं। मैं नत्थेखां से निबट लूँ तब अवश्य इस ओर अधिक ध्यान दूँगी।”
इसके उपरांत वह अनंत चरदशी की पूजा के उपकरणों में संलग्न हो गई।
जवाहर सिंह, कर्नल जमाखाँ, भाऊ बख्शी, ग़ुलाम गौसखां इत्यादि अपने काम में ज़ोर के साथ जुट पड़े। उनके लिए एक एक क्षण महत्व का था।
भाऊ बख्शी ने कड़क बिजली दक्षिण की ऊँची बुर्ज पर चढ़ा दी। ग़ुलाम गौसखां एक बड़ी तोप और कई छोटी तोपें लेकर ओर्छे दरवाज़े पर पहुँच गया। सब फाटकों की बुर्जों पर तोपें रख दी गयीं। उनका मसला तथा गोलंदाज भी तथा स्थान नियुक्त कर दिए गए। जवाहर सिंह की सेना फाटकों और परकूटे के दिवारों के छेदों के पास बंदूक़ें लेकर डाट गई। उन सब के भोजन और शयन का वहीं प्रबंध हो गया। चार पाँच घंटे के भीतर झाँसी ने रणक्षेत्र का रूप धारण कर लिया।
तीसरे पहर लगभग ३ बजे रानी अनंत चतुर्दशी का पूजन समाप्त करने को ही थी कि एक धड़ाका हुआ। दामोदर राव को अनंत रक्षा का गंदा बँधवा कर बाहर हुई थी कि समाचार मिला, “नत्थेखां ने चढ़ाई कर दी है और गोला शायद शहर में गिरा है।”
रानी ने दिन भर उपवास किया था। थोड़ा सा फलाहार किया। इतने में समाचार आया कि टकसाल के पीछे एक सेठ के मकान में गोला गिरा है। रानी ने कल्पना की कि या तो नत्थेखां का गोलंदाज अनजान है, इतने बड़े क़िले को उसने अनी पर नहीं साध पाया या काफ़ी चतुर है - अनुमान से महल को निशाना बनाया, परंतु गोले ने करवट ले ली और महल को बचा गया।
योद्धा वेश में तुरंत घोड़े पर सवार हुई और अपनी तीनों सहेलियों को लेकर ओर्छे दरवाज़े पहुँची। ग़ुलाम गौसखां को आज्ञा दी “शत्रु इसी ओर हैं। गोलों की लगातार वर्षा करें।”
काशीबाई से कहा, “तू तुरंत क़िले पर जा। बख्शी से कहना कि जैसे ही नत्थेखां की सेना टौरियों का आश्रय लेने के लिए पश्चिम में सैयर फाटक की ओर बढ़े, कड़क बिजली की मार करे। जब तक उसकी सेना ओरछा फाटक से पश्चिम की ओर न बढ़े, कड़क बिजली चुप बनी रहे।”
काशीबाई तुरंत गई।
गौस ने अपने तोपख़ाने को सम्भाला। एक के बाद दूसरी तोप पर पलीता पड़ना शुरू हुआ ११ तोपें थी। जब तक अंतिम तोप गोला उगलती तब तक पहली विनाश-वामन के लिए तैयार हो जाती।
गोला, बारूद और काम करने वाले सुव्यवस्थित।
ओरछा फाटक के पूर्व उत्तर की ओर थोड़ी दूरी पर सागर खिड़की और उससे कुछ अधिक दूरी पर लक्ष्मी का फाटक था। सुंदर और मुंदर के साथ रानी सागर खिड़की पर आई। इस खिड़की से पश्चिम की ओर ओरछा फाटक की तरफ़ - कूच ही दाग के फ़ासले पर एक मुहरी थी। नगर के दक्षिणी भाग के पानी का बहाव इसी में होकर था। यह मुहरी इतनी बड़ी थी कि नाते क़द का आदमी आसानी से इसमें होकर निकल सकता था। सागर खिड़की के ऊपर को तोपें थी, उनमें से एक को रानी ने, इस मुहरी के ऊपर दिवार के पीछे लगा दिया। एक से अधिक तोपें वहाँ रक्खी भी नहीं जा सकती थी।
सागर खिड़की पर दीवान दूल्हाजू गोलंदाज था। उसको रानी ने आदेश दिया, “तुम पश्चिम दक्षिण की ओर कूच अंतर से तोप दागो। कोई दिखलाई पड़े या नहीं, परंतु जब तक मेरा निषेध ना मिले, ऐसा ही करते जाना।”
दूल्हाजू ज़रा ठमठमाया।
रानी ने समझाया, “मैंने चाहती हूँ कि नत्थेखां की सेना और तोपें दक्षिण की ओर ओरछा फाटक और सैयर फाटक के बीच में ही बनी रहे। तुम्हारे पास से होकर पूर्व और उत्तर की ओर न बढ़ने पावे। मैं जहां चाहती हूँ, युद्ध वहीं हो। समझ गए?”
दूल्हाजू ने कहा, “हाँ सरकार।”
इसी प्रकार सब फाटकों पर आवश्यक आज्ञा देकर रानी ओरछा फाटक पर फिर आ गई। नत्थेखां की सेना मार खाकर पीछे हटी, परंतु टौरिया पर नहीं चढ़ी। उनके बीच में जो खाईयाँ थी, उनमें रक्षा का यत्न करने लगी।
इतने में रात हो गई। रानी मुंदर को वहीं छोड़कर महल चली आई।गीता के अठारहवें अध्याय का पारायण या श्रवण वह यथासंभव नित्य करती थी। पथ समाप्त करके आधी घड़ी विश्राम किया था कि मुंदर ने समाचार किया है, ओरछा फाटक पर आक्रमण सबसे अधिक भयंकर है।”
रानी सहेलियों समेत सवार होकर तुरंत ओरछा फाटक पर पहुँची।
चाँदनी रात। आकाश निर्मल। पास का काफ़ी अच्छा दिखलाई पड़ रहा था और दूर का धूमरा धूमरा। सागर खिड़की पर गोले बरस रहे थे और ओरछा फाटक तो ऐसा जान पड़ता था कि अब गया, अब गया।
रानी ने ग़ुलाम गौस और उसके तोपचियों को समझाया, “दो बाढ़ें जल्दी जल्दी दाग कर बिलकुल चुप हो जाओ। बैरी समझेगा कि तोपें बंद कर ली। बढ़ेगा। बढ़ते ही दीवार के छेदों में से बन्दूकों की बाढ़ दागी जाय। बैरी अपनी तोपें ऊँची टौरियों पर चढ़ा कर ले जावेगा और वहाँ से फाटक और बुर्ज को धुस्स करने का उपाय करेगा। उस समय तोपें दागना।
काशीबाई से कहा, “तुम भाऊ बख्शी से क़िले में जाकर कहो कि कड़क बिजली के प्रयोग का समय आ गया। जैसे ही ओरछा फाटक की हमारी तोपें बंद हो और अपनी बन्दूकों की बाढ़ के उपरांत शत्रु के तोपख़ाने से बाढ़ दगे, वह कड़क बिजली और उसी बुर्ज के तोपख़ाने से ओरछा फाटक के बाहर की दायीं ओर वाली ऊँची टौरिया को अपना अचूक निशाना बनावे और अनवरत गोलाबारी करे।”
काशीबाई संवाद ले कर चली गई।
रानी ने सुंदर और मुंदर की कूच हिदायतें देकर दूसरी दिशाओं में भेजा।
ग़ुलाम गौसखां ने अपनी तोपों से जल्दी जल्दी दो बाढ़े छोड़ी। नत्थेखां की सेना ने जवाब दिया। गौस की तोपें बिलकुल बंद हो गई। नत्थेखां ने सोचा तोपची मारे गए। उसके सिपाही दिवार पर चढ़ने के लिए बढ़े। इधर से बन्दूकों की बाढ़ दगी। उसका कोई बड़ा असर नहीं हुआ। जब बाढ़ों पर बाढ़ें दगी तब उसके सिपाही पीछे हटे। नत्थेखां ने निश्चय किया कि ऊँची टौरिया पर तोपख़ाना चढ़ा कर ओरछा फाटक और अग़ल बग़ल की दिवारों पर गोलाबारी करने से शहर के लिए मार्ग मिल जाएगा और फिर क़िले को अधिकृत कर लेना सहज हो जाएगा। सागर खड़की की ओर से बराबर गोलबारी हो रही थी और उसका तोपख़ाना इस ओर मोर्चा लगाए था। ओरछा फाटक की तोपें बैंड थी, इसलिए उसको अपना यही उपाय महा फलदायक जान पड़ा।
उसने ऊँची टौरिया पर अपनी तोपें चढ़ा दी और फाटक पर बाढ़ दागी। दिवारों पर उस बाढ़ का विनाशकारी प्रभाव पड़ा। तोपची उक्त उठे। रानी ने वर्जित किया।
नत्थेखां की तोपों से दूसरी बाढ़ नहीं दागने पाई। टौरिया पर धम धम हुआ और विकट चीत्कार और तुरंत क़िले से चली हुए तोपों ला भयंकर गर्जन तर्जन सुनाई पड़ा। भाऊ का निशाना अचूक बैठा। फिर बाढ़ आई। इधर रानी ने ग़ुलाम गौस को अपनी तोपों पर पलीता देने की आज्ञा दी।
अब नत्थेखां को मालूम हुआ कि किसका सामना कर रहा हूँ।
उसने स्थिति को सम्भालने का प्रयत्न किया, परंतु कुछ न बन पड़ा। तोपों और सामान को छोड़कर नत्थेखां भाग। वह केवल एक दाग लगा गया - लक्ष्मी फाटक पर कर्नल जमाखां मारा गया।
रात को लड़ाई बहुत धीमी गति से चली। परंतु रानी की सावधानी में रत्ती भर भी अंतर नहीं आया।
दूसरे दिन भी लड़ाई चली, परंतु शहर से ज़रा हटकर नत्थेखां की सेना का एक बड़ा भाग झाँसी के उत्तर में जाकर प्रताप मिश्र के परकोटे की आड़ पा गया, परंतु यही उसके नाश का भी कारण हुआ।
दीवान रघुनाथ सिंह एक दूर गाँव में था, इसलिए विलम्ब से समाचार मिला था। वह लड़ाई के दूसरे दिन उन्नाव की ओर से, जो झाँसी के उत्तर में है, आ गया। फाटक सब बैंड थे। खुलवाने की ज़रूरत भी न थी। उसने नत्थेखां की सेना की उस टुकड़ी पर ज़ोर के साथ हमला किया, जो प्रताप मिश्र के परकोटे से झाँसी के उत्तरी भाग को परेशानी में डाले थी। इस परकोटे के क़रीब एक पहाड़ी है। इस पहाड़ी की ओट से रघुनाथ सिंह और नगर काट के पीछे से झाँसी की सेना की बन्दूकों ने नत्थेखां की सेना को छलनी कर दिया। ठीक अवसर पाकर रघुनाथ सिंह ने प्रचंड वेग के साथ प्रहार किया और उस टुकड़ी को तहस नहस कर डाला। दक्षिण पश्चिम की ओर से काशीनाथ भैया आ पहुँचा। सर्वनाश में को कसर रह गई थी वह उसने पूरी कर दी।
फिर कई दिन तक झाँसी से ज़रा दूर नत्थेखां की सेना की छोटी बड़ी टुकड़ियाँ भागते भागते लड़ती रही। परंतु तोपें और बहुत सी युद्ध सामग्री छोड़कर नत्थेखां को पराजित होकर भागना पड़ा।
नत्थेखां एक टुकड़ी समेत नवाब अली बहादुर के नई बस्ती वाले महल में आ गया था। नवाब अली बहादुर नहीं चाहते थे, परंतु विवश थे।
नत्थेखा के भागने पर उनके महल पर काशीनाथ भैया के दस्ते ने आक्रमण किया। अली बहादुर ने समझ या कि सब गया।बच निकलने का प्रयत्न किया। उनके महल के पीछे बहुत निचाई पर मेहंदीबाग नाम का उद्द्यान था। एक सुरंग में होकर इस बगीचे से निकल जाने का मार्ग था। जवाहर इत्यादि जितना सामान बना लेकर पीर अली के साथ बाहर निकल आए। बाल बच्चे और एक नौकर भी।
सुरक्षित स्थान में पहुँचने पर पीर अली ने कहा, “आप अकेले भांडेर चले जाइए। मैं यहीं रहूँगा। रानी की सेना के साथ मिलकर महल पर में भी हमला करूँगा। उनका भला बन जाऊँगा और महल में को कुछ बचाने योग्य है, बचाने की कोशिश करूँगा। यहाँ रह कर आपकी अधिक सेवा कर सकूँगा।”
“किस तरह?”। अली बहादुर ने आतुरता के साथ पूछा।
पीर अली ने उत्तर दिया, “आपको समय समय पर समाचार मिलता रहेगा और जब अंग्रेज यहाँ रानी से लड़ने के लिए आवेंगे तब उनको आपके सेवक के द्वारा बड़ी सहायता मिलेगी। आप फिर झाँसी आवेंगे? फिर महल आपके होंगे और कोई बड़ी जागीर भी कम्पनी सरकार की तरफ़ से आपको मिलेगी, क्योंकि रानी का राज थोड़े दिन ही और टिकेगा। इस वक्त तो खून का सा घूँट पीकर रह जाइए। अपमान का बदला लिया जाएगा आप प्रतीति रखिए।
अली बहादुर चले गए। पीर अली रानी के सैनिकों की ओर लौट पड़ा। उसको सैनिक पहचानते थे। मारने पकड़ने दौड़े। सागर सिंह उस भीड़ में था।
पीर अली ने कहा, “क्या करते हो, मैं तो तुम्हारा मित्र हूं। महारानी साहब का शुभचिंतक , बस्ती भर जानती है। नौकरी नवाब साहब की ज़रूर करता रहा हूँ परंतु सदा उनको समझाता रहा कि सीधे रास्ते पर चलो। वें नहीं माने उन्होंने भुगता। मैंने तुम्हारी सहायता करने आया हूँ। यह महल गोला गोली लायक़ नहीं है। इसमें आग लगाओ।”
सैनिकों को कुछ आश्वासन हुआ।
सागर सिंह ने पूछा, “किधर से आग लगाए? नवाब साहब कहाँ हैं?”
“भीतर”, पीर अली ने उत्तर दिया, “आग फाटक से लगाना शुरू करो। दरवाज़ा अपने आप खुल जाएगा। भीतर काफ़ी माल है। मुझको सब पता है। राई रत्ती बतलाऊँगा।”
सिपाहियों ने फाटक में आग लगा दी। जल जाने पर घुसने का मार्ग मिल गया। फिर भीतर के फाटकों में आग लगाई। एक दो जगह और। पीर अली ने स्वयं कई जगह अग्नि प्रज्वलित की। जब भीतर पहुँचे तो वहाँ कोई न मिला।
“मालूम होता है गड़बड़ में नवाब साहब निकल भागे। मगर असबाब सामान तो मौजूद है।”
पीर अली ने उनकी साधारण धन सम्पत्ति लूटवा दी। थोड़ी देर में आग शांत हो गई, परंतु काफ़ी क्षति हो गई थी।
पीर अली का नाम हो गया कि रानी की सेना के साथ वह नवाब साहब और नत्थेखां की फ़ौज के ख़िलाफ़ लड़ा। काशीनाथ और सागर सिंह ने विश्वास दिलाया। मोतीबाई को आश्चर्य था। परंतु विजय के हर्ष में अपने हितचिंतक पर संदेह करना ईश्वर के प्रति कृतज्ञता की मात्रा को कम करना था। इसलिए पीर अली शीघ्र विश्वास पात्र लोगों की गिनती में मान लिया गया।
रानी ने ग़ुलाम गौसखां, रघुनाथ सिंह और भाऊ बख्शी को विशेष तौर पर पुरस्कृत किया।
दीवान खास में जब रघुनाथ सिंह अकेला रह गया तब उसने रानी से प्रार्थना की।
“सरकार मुझको सब कुछ मिल गया। केवल लड्डू रह गए।”
रानी हँसी। मुंदर पास खड़ी थी। उससे कहा, “उस दिन तू ही थाल उठा लाई थी। आज भी तू ही ला।”
मूँदत थाल ले आई। बहुत प्रसन्न थी।
रानी ने आदेश दिया, “अब तू ही खिला भी दे।”
मुंदर ने रघुनाथ सिंह को लड्डू खिलाए। वह हँस हँस कर लड्डू खिलाने में सचेष्ट थी, परंतु रघुनाथ सिंह अधिक नहीं खा सका। उसके गले में कूच अटक अटक जाता था।
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रात को मोतीबाई आई। रानी ने भजन सुना। समाप्ति पर काशीबाई ने कहा, “सरकार मैं बड़ी तोप चलाने का काम सीखना चाहती हूँ। जब बख्शी जी कड़क बिजली चला रहे थे, मैं उनके पास थी। निशाना मिलाना, ध्यान के साथ बाहर की स्थिति को परखकर तोप का रुख़ बदलना और पलीता छुलाकर बैरी की बड़ी सेना में भी अकेले खलबली उत्पन्न कर देना मुझको बहुत अच्छा लगा।”
रानी बोली। “मैंने निश्चय कर लिया है। तुम सबको तोप का काम सिखवाऊँगी। परंतु पूरी शिक्षा के लिए कुछ समय लगेगा।”
सुंदर ने कहा, “अपने यहाँ ग़ुलाम गौस तो बहुत चतुर तोपची हैं ही, अंग्रेज़ी सेना से आया हुआ एक लालता ब्राह्मण भी बहुत अच्छा जानकर है। उसके ज्ञान का भी लाभ उठाया जाए।”
“दीवान रघुनाथ सिंह भी इस काम को बहुत अच्छा जानते हैं”, मुंदर ने उत्साह के साथ कहा।
एक पल के बहुत छोटे अंश के लिए रानी की आँख असाधारण सजग हुई, और तुरंत ही शांत। मुंदर ने लक्ष नहीं किया।
रानी ने मोतीबाई से पूछा, “तू नाटक खेलना भूल गई कि अभी आता है?”
मोतीबाई - “सरकार, जो एक बार पानी में तैरना सीख लेता है, वह फिर कभी नहीं भूल सकता। आज्ञा हो तो किसी दिन कोई अच्छा खेल दिखलाऊँ?”
रानी - “सूचित्त हो जाऊँ तो किसी दिन अवश्य देखूँगी। तू किस खेल को सबसे अच्छा समझती है?”
मोतीबाई - “रत्नावली को। वैसे शकुंतला, हरीश्चन्द्र, प्रबोध चंद्रोदय भी बहुत अच्छे हैं।”
रानी - “मैंने सुना है कि ग्वालियर में एक मंडली हरीश्चन्द्र नाटक बहुत अच्छा खेलती है।”
मोतीबाई - “हम लोगों का और ग्वालियर की मंडली का भी अभिनय देखा जावे। फिर सरकार तुलना करे। मुझको विश्वास है कि झाँसी की बात सिरे पर रहेगी।”
रानी - “मोटी, मैं झाँसी को हर बात में आगे देखना चाहती हूँ। अश्वारोहण और असि-विद्या में उस्ताद वजीरखां, अमीरखां ; गोलंदाजी में ग़ुलाम गौस, सैन्य संचालन में जवाहर सिंह, रघुनाथ सिंह, गायन में मुग़लखां, शस्त्र बनाने में भाऊ बख्शी, कपड़े सौने में बलदेव दर्ज़ी, नृत्य में दुर्गा। ये सब झाँसी के गौरव हैं। मैं चाहती हूँ कि प्रत्येक विद्या में झाँसी देश भर में सबसे आगे रहे, परंतु होगा यह तभी जब देश को अंग्रेजों के पंजे से छुटकारा मिल जाय।”
मोतीबाई - “सरकार ने जिस यज्ञ का आरम्भ किया है, वह किसी न किसी दिन वरदान देगा।”
मुंदर - “सरकार, ब्राह्मण लोग कहते हैं कि एक यज्ञ भी होना चाहिए।”
रानी - “ब्राह्मणों को यज्ञ और मिष्ट भोज चाहिए। कर दूँगी, परंतु युद्ध के देवता कार्तिकेय, इस युग में बारूद और गोले का होम अधिक पसंद करने लगे हैं। और ब्राह्मणों को कलयुग की यह बात कम मालूम है।
मुंदर - “अपने यहाँ के भट्ट और शास्त्री लोग अनुष्ठान के लिए बहुत आग्रह कर रहे हैं। कहते हैं कि सब काम छोड़ कर, पहले उनके विधान का पालन होना चाहिए।”
रानी - “सब काम छोड़कर तो ऐसा न होगा, परंतु और सब कार्यों के साथ साथ अवश्य हो जाएगा। तो पहला काम यह है कि कल से तोप चलाना मोतीबाई गौस से काशीबाई भाऊ बख्शी से मुंदर रघुनाथ सिंह से, और सुंदर…. “
मुंदर - “सरकार, दीवान दूल्हाजू भी अच्छे जानकार हैं।”
रानी - “उस पर ध्यान नहीं जाम रहा था। उस दिन वह ठमठमा गया था, परंतु तोप अच्छी चलाता है। ठीक है। उससे सुंदर सीखे।”
काशीबाई - “उस रात भाऊ बख्शी ने ऐसा प्रहार किया, कि नत्थेखां इस जन्म में तो भूलेगा नहीं। मेरे कान तो आज तक सनसना रहे हैं।”
रानी - “अब की बार दिखता है कि गोरों का सामना होगा। तुम सबकी उस समय परीक्षा होगी।”
काशीबाई - “सरकार, हम लोगों की परीक्षा के फल से निराश न होगी।”
मोतीबाई को एक बात कसक रही थी। उसने प्रसंग विक्षेप सा करते हुए कहा। “सरकार ने कहा था कि सब कार्य साथ साथ चलेंगे, तो नाटकशाला का भी काम चालू कर दूँ?”
“तुमको उसके लिए विशेष प्रयत्न करना ही क्या पड़ेगा?” रानी बोली, “नृत्य गान जानती ही हो। अवसर आने पर बतला दूँगी।”
मोतीबाई - “सरकार ने दुर्गा के नृत्य के विषय में कहा था। वह कत्थक नृत्य बहुत अच्छा करती है, परंतु प्राचीन नृत्यकला को बिलकुल नहीं जानती।”
रानी मुस्कराई।
रानी - “में भूल गई थी मोती। नृत्य के विषय में झाँसी का गौरव वास्तव में तुम हो, परंतु बैरियों को तो गोली से रिझाना होगा।”
मोतीबाई ने दृढ़तापूर्वक कहा, “सरकार, उनको ऐसा रिझाया जावेगा कि अनंत काल तक उनकी चर्चा होगी।”
मुंदर ने अनुराओढ किया, “सरकार, नाटक भी किसी दिन खिलवाया जाय।”
“अच्छा मुंदर”, रानी ने कहा, “मोतीबाई उसकी भी तैयारी करेगी। यज्ञ की जिस दिन पूर्णाहुति होगी, उसी दिन रात नाटक होगा। मोटी, नाटक के सम्बंध में, मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूँ।”
मोतीबाई - “आज्ञा हो सरकार।”
रानी - “तू जब अभिनय करती है, तब क्या अपने को बिलकुल भूल जाती हैं?”
मोतीबाई - “बिलकुल तो नहीं भूल सकती सरकार।”
रानी - “क्या याद रहता है?”
मोतीबाई - “अपना निज़त्व, दर्शक और अभिनय।”
रानी- “क्या सब दर्शक?”
मोतीबाई - “नहीं सरकार। जो दर्शक विशेष रुचि दिखलाते हैं, उनके ऊपर प्रायः ध्यान जाता है। तभी अभिनय अच्छा हो सकता है।”
रानी - “तुमको अपने दर्शक याद रहते हैं?”
मोतीबाई - “यदि वे बार बार नाटकशाला में आए तो।”
रानी - “तुम्हें अपने दर्शकों को अब भी स्मरण है।”
मोतीबाई की आँख ज़रा लजीली हुई, परंतु उसने तुरंत सम्भाल कर कहा, “हाँ सरकार कोई याद रह जाते हैं।”
रानी ने पूछा, “तुझे कौन सबसे अधिक याद है?”
क्षण के दशांश के लिए सहेलियों ने एक दूसरे के प्रति दृष्टिपात किया। मोतीबाई की आँख पर्वश नीची पद गई। सिर उठाया। कहने को हुई। ज़रा सा हँसी। फिर गम्भीर हो गई। खांसी।
बोली, “कोई नाम याद नहीं आता सरकार।” और हँसी।
रानी को भी हँसी आ गई।
अच्छा जब याद आ जावे तब बतलाना”, रानी ने कहा, “अभी कोई जल्दी नहीं।”
मोती ने निष्कृति की साँस ली।”
काशीबाई - “सरकार, इनके साथ जूही भी अभिनय किया करती थी।”
रानी - “वह भी अब अपना काम कर रही है।”
मोतीबाई - “उसने खूब काम किया और करेगी।”
रानी - “उसको भी ग़ुलामगौस से तोप चलाना सिखलाओ। हमको बहुत तोपचियों की आवश्यकता पड़ेगी। जिसके पार तोपें और तोपची, उसी के हाथ विजय।”
काशीबाई - “जहां हमारी श्रीमंत सरकार होगी, वही विजय होगी।”
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