Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 16 - Vrindavan Lal Verma
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स्कीन, गार्डन, डनलप इत्यादि को झाँसी में मई की खबरें मिल गयीं और रानी को उनसे पहले ही! रानी ने एक विशेष समय तक के लिए, लगभग सब आने-जाने वालों का महल में आना बंद कर दिया। जो थोड़े लोग आते जाते थे, उनमें एक मोतीबाई थी। उसी के द्वारा रानी सब महत्वपूर्ण समाचार लेती और देती थी। मोतीबाई, खुदाबख्श और रघुनाथ सिंह के सम्पर्क में थी। वह इन लोगों को सब बातें भुगता देती थी - स्वाभाविक था। ये दोनो दूसरे लोगों के सम्पर्क में थे। इस प्रकार काम जारी था।
मोतीबाई ने खुदाबख्श को महल में आगंतुकों वाले निषेध का वास्तविक कारण बताया खुदाबख्श ने पीर अली कंकों सुनाया और पीर अली ने नवाब अली बहादुर को। ३१ मई के दिन और समय वाली बात भी उन अंग्रेज अफ़सरों को मालूम हो गई। परंतु मेरठ और दिल्ली इत्यादि स्थानों में इसके काफ़ी लहले ही कांड हो चुके थे इसलिए उन लोगों ने ३१ मई सम्बन्धी सावधानी पर ध्यान नहीं दिया।
स्कीन ने को चिट्ठियाँ मई के महीने में लेफ़्टिनेंट गवर्नर के पास आगरे भेजी उनमें साफ़ लिखा कि झाँसी में विद्रोह का कोई भी चिन्ह नहीं है और सिपाहियों का पूरा विश्वास किया जा सकता है। पहली जून की चिट्ठी में उसने सबसे पहले कुछ झंझट की सूचना दी।
“रात को मुझे खबर मिली कि कुछ लोग कोच पर धावा करने वाले हैं। मैंने तुरंत डनलप को सूचित किया, सवेरे ही कुछ फ़ौज गाँव की रक्षा के लिए भेज दी। फ़ौज के पहुँचते ही ठाकुरों का विचार बदल गया। इधर उधर भले ही विद्रोह फैला हो, परंतु यहाँ के लोग हमसे कभी नहीं बिगड़ेंगे।”
असल में रानी की दृढ़ सावधानी के कारण, झाँसी में असमय विस्फोट नहीं हो पाया। महल में आगंतुकों के निषेध की बात सुनकर, इन लोगों को और भी विश्वास हो गया कि रानी को आंदोलन से सारोकार नहीं है कोच पर ३१ मई को ‘कुछ ठाकुरों’ का पाहुँच जाना, जिसका समाचार स्कीन को पहली जून की रात को मिला, काफ़ी अर्थ रखता था। परंतु जान पड़ता है कि उन ठाकुरों को यह नहीं मालूम था कि ३१ मार्च के आगे के लिए कार्यक्रम स्थगित हो गया है। और फिर दूसरे ही दिन कुछ हिंदुस्तानी फ़ौज का डनलप के साथ कोच पाहुँच जाना ठाकुरों के हतोत्साहक होने का कारण हो गया।
चौथी जून को कानपुर में उसी दिन झाँसी में क्रांति के लक्षण प्रकट हुए। गुरबख्श सिंह नाम का हवलदार कुछ सैनिकों को लेकर कम्पनी निर्मित छोटे से क़िले में, जो पुराने क़िले से एक मील शहर बहार है, और जिसे अंग्रेज लोग उसकी बनावट के कारण ‘स्टार फ़ोर्ट’ (तारा गढ़) कहते थे, घूम पड़ा और लड़ाई का सब सामान और रुपया पैसा उठवाकर ले आया। संलाप बची बचाई सेना लेकर मुक़ाबले के लिए आया।
स्टार फ़ोर्ट में कोई भी समान ना पाकर वह लौट गया। कमिश्नर को सूचना मिली। उसकी सलाह पर छावनी के सब अंग्रेज अपने बाल बच्चे लेकर क़िले में जाने को तैयार हुए। डनलप ने नौगाँव छावनी, सहायता पाने के लिए पात्र लिखा।
अब इन लोगों को रानी की, रानी के शौर्य की, उनकी योग्यता की, उर उनकी तेजस्विता की याद आयी।
गार्डन कई अंग्रेजों को लेकर रानी के महल पर पहुँचा।
गार्डन ने कहलवाया, “अभी हमको भरोसा है कि फ़ौज में जो थोड़ी साई गड़बड़ी हुई है उसको दबा लेंगे, परंतु यदि कोई बड़ी विपद आवे तो आप हमारी सहायता करिएगा।
रानी ने उत्तर दिलवाया, “इस समय हमारे पास न तो काफ़ी शस्त्र हैं और न लड़ने वाले आदमी। देख में उपद्रव फैल रहा है। यदि अनुमति मिल जाए तो मैंने अपनी और जनता की रक्षा के लिए एक अच्छी सेना भर्ती कर लूँ।”
डनलप सहमत होकर चला आया।
दूसरे दिन छावनी में स्कीन, गार्डन और डनलप की बैठक हुई। उन लोगों को अब भी विश्वास था कि हिंदुस्तानी का व्यक्तिगत रूप से अपमान करना किसी भी नुक़सान का कारण नहीं बनता। वें समझते थे कि सारी फ़ौज में कुछ व्यक्ति नाराज़ हो सकते हैं, सब नहीं।
इसी भरोसे डनलप एक और अंग्रेज को साथ लेकर पलटन में पहुँचा। सिपाहियों ने, जिनमें रिसालदार कालेखां सबसे आगे था, तुरंत गोली से मार दिया गया।
अंग्रेजों में भगदड़ मच गयी।
गार्डन अकेला रानी के पास दौड़ा गया। मुंदर द्वारा बात चीत हुई।
गार्डन - “आम लोग पुरुष हैं। हमको अपनी चिंता नहीं। हमारी स्त्रियों और बच्चों को अपने महल में आश्रय दे दीजिए।”
मुंदर ने रानी को आग-पीछा सुझाया, “सरकार, इस आफ़त से दूर रहिए। फ़ौज के लोग हमारे महल पर टूट पड़ेंगे।”
रानी ने धीमे, परंतु दृढ़ सवार में मुंदर से कहा, “हामरी लड़ी अंगरेज पुरुषों से है, उनके बाल बच्चों से नहीं। यदि मैं सिपाहियों का नियंत्रण न कर पायी तो उनका नेतृत्व क्या करूँगी? कह दो गार्डन से कि स्त्रियों और बालकों को तुरंत महल में भेज दें।”
मुंदर ने संवाद दे दिया।
गार्डन तुरंत स्त्रियों और बच्चों को छावनी से निकाल कर शहर ले आया और उनको महल में दाखिल कर दिया। रानी ने उनको भोजन करवाया और ढांढस दिया।
परंतु स्कीन ने हठ किया, इसलिए वें सब महल से हटा लिए गए और क़िले में भेज दिए गए।
इस बीच में सिपाही छावनी के तहस-नहस में उलझे थे। फ़ारिग होकर वें क़िले पर धावा करने के लिए बढ़े। गार्डन इत्यादि ने सब फाटक बंद कर लिए। लेकिन सिपाही बहुत थे। उनके पास तोपख़ाना था और क़िले में तोप न थी - युद्ध सामग्री भी थोड़ी, खाने के लिए क़रीब क़रीब कुछ नहीं।
नवाब अली बहादुर ने उसी समय पी अली को भेजा और कहलवाया कि हुक्म हो टि ओरछा और दतिया से सेना बुला ली जावे।
अंग्रेज इतने भयभीत हो गए थे या इतनी हेकड़ी में थे कि उन्होंने जवाब दिया, “कोई ज़रूरत नहीं है, छोटा सा बलवा है। दबा लेंगे।”
पीर अली ने नवाब साहब को उत्तर भुगता दिया। खुदाबख्श मिल गया। उसको भी सुनाया। खुदाबख्श ने मोतीबाई को रानी के पास भेजा और स्वयं रघुनाथ सिंह के पास चला गया।
मोतीबाई ने कहा, “सरकार अब समय आ गया है।” और खुदाबख्श की कही बात सुनाई।
रानी बोली, “नियुक्त तारीख़ पर आरम्भ न होने के कारण कार्यक्रम का रूप बदल गया है, तो भी, अपनी सेना तुरंत तैय्यार करने का प्रयत्न इसी समय किया जाना चाहिए। रघुनाथ सिंह को समाचार दो कि कटीली से दीवान जवाहर सिंह को बुला ले और जितनी विश्वसनीय सेना इकट्ठी हो सके आठ मील पर, रक़्स के निकट, जमा करे। घुड़सवार अधिक हो। जब तक मेरी आज्ञा न मिले झाँसी की ओर न आवे।”
मोतीबाई ने दीवान रसघनाथ सिंह को आज्ञा सुना दी। वह खुदाबख्श को लेकर चला गया।
उस दिन सिपाही क़िले पर बराबर आक्रमण करते रहे। परंतु अंग्रेज़ उनको गोलियों की बौछार से पीछे हटाते रहे।
दूसरे दिन भी लड़ाई चलती रही। दोपहर के उपरांत अंग्रेजों के पास खाने के लिए एक दां भी न रहा। क़िले वाला महल दुबारा तिबारा छाना कि कहीं कुछ ररक्खा हो। वहाँ कुछ भी न मिला। शाम के बाद लड़ाई कुछ ढीली हुई। अंग्रेजों ने किसी प्रकार रानी के पास अपनी भूख का समाचार भेजा।
रानी ने दो माँ रोटियाँ तत्काल बनवाई। काशीबाई से कहा, “तू इन रोटियों को किसी प्रकार अंग्रेजों के पास पहुँचा। तुझको सारे गुप्त मार्ग मालूम हैं, सुंदर और मुंदर को साथ ले जा, और कोई न जावे। जहां मशाल की अटक पड़े जला लेना।”
सहेलियाँ रानी की दया को जानते थी, परंतु उसकी सीमा को नहीं देखा था।
काशी ने विनम्र शांत सवार में कहा, “सरकार यदि हम लोग इस परिस्थिति में पड़े होते तो क्या अंग्रेज़ लोग हमको दाना पानी देते?”
रानी ने उत्तर दिया, “अंग्रेजों जैसे बनकर हम अपने और उनके बीच के अंतर को क्यों मिटाएँ? और फिर इन लोगों को भूख मारकर आगे बढ़ना अनुष्ठान की कलुषित करना है।”
रानी मुस्कराई। काशी का हृदय आभासमय हो गया।”
परंतु फिर भी उसने सवाल किया, “कब तक आप इनको इस प्रकार खिलाएँगी?”
“जब तक मेरी निज की सेना तैय्यार नहीं हो गयी”, रानी ने कहा, “जब सेना तैयार हो जावेगी, में उन लोगों के हथियार रखवा लूँगी और कहीं सुरक्षित स्थान में क़ैद कर दूँगी।”
उन तीनों सहेलियों ने रोटियों के गट्ठर पीठ पर लादे और गुप्त मार्ग में होकर क़िले में ले गई। गार्डन इत्यादि ने उन लोगों को प्रणाम किया। उनमें एक व्यक्ति मार्टिन नाम का था। मार्टिन ने सुरंग का रास्ता देख लिया। दूसरे दिन फिर ये तीनों क़िले में दो माँ रोटियाँ दे आई। मार्टिन चुप चाप पीछे पीछे आया और गुप्त मार्ग से बाहर निकल कर अगर चला गया। सहेलियों को या किसी को भी नहीं मालूम पड़ा।
उस दिन घोर युद्ध हुआ। गार्डन उत्तरी फाटक के ऊपर की खिड़की में से ताक ताक कर बंदूक़ का निशाना लगा रहा था और सिपाही उसके मारे हैरान हो रहे थे। उनको शहर का एक पुराना तीरंदाज़ मिल गया। उस तीरंदाज़ ने एक पत्थर की ओट लेकर गार्डन पर तीर छोड़ा। तीर गार्डन की गार्डन को फोड़कर पार हो गया।गार्डन के मरते ही समस्त अंग्रेजों में उदासी और निराशा छा गयी।
उधर रिसालदार कालेखां ने क़िले के उत्तर पश्चिमी कोने पर, जिसे शकर क़िला कहते हैं, भयानक दाब बोली और अपनी सेना की एक टुकड़ी सहित क़िले में घुस गया।अंग्रेजों ने देखा कि अब कोई बचत नहीं, इसलिए उन्होंने सलाह की चर्चा छेड़ी। सिपाहियों ने रक्षा का आश्वासन दिया। स्कीन ने ८ जून के सवेरे क़िले का सदर फाटक, जो दक्षिण की ओर है, खौला और कहा कि हमको सागर चले जाने दो।
सिपाहियों ने उन लोगों को क़ैद कर लिया। सिपाहियों का मुखिया रिसालदार कालेखां छावनी चला गया।
थोड़ी देर में वहाँ जेल दरोग़ा बख़्शीश अली आया। उसकी आँखें लाल थी, और मुँह झुलसा हुआ। उसने अंग्रेजों की ओर देखा।
सिपाहियों से बोला, “रिसालदार साहब रास्ते में मुझे मिले थे। हुकुम दे गए हैं कि इन सबको झोखनबाग ले चलो।”
सिपाही अंग्रेजों को झोखन बाग ले आए। वहाँ एक सपिहाई घोड़े पर सवार आया। बख़्शीश अली ने उसके काम में कुछ कहा। सवार हिचक।
बख़्शीश अली बोला, “भाइयों यह जो स्कीन कमिश्नर खड़ा है, इसने मुझको जूतों की ठोलों से पीटा था, अब क्या देखते हो?”
सिपाही एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।
बख़्शीश अली - “और इसने जूते की ठोल से मुझको इतना मारा था कि मैं गिर पड़ा था। मारने के पहले इसने मुझको सुअर की गाली दी थी।”
स्कीन भयभीत खड़ा था, परंतु इस आरोप ने उसको जगा दिया। बोला, “मैंने कभी गाली नहीं दी। मारा शायद हो, मगर याद नहीं आता। काम में गफ़लत करने पर तो कभी कभी मारना भी पड़ता है।”
वह जो सवार आया था, उसकी ओर बख़्शीश अली ने भयानक दृष्टि से देखा।”
सवार ने कड़कती हुई आवाज़ में कहा, “रिसालदार साहब ने इन सबके क़त्ल का फ़रमान किया है।”
बख़्शीश अली ने सबसे पहले स्कीन को मारा, और फिर सब काट दिए गए। उस समय वहाँ उन सिपाहियों के और कोई न था।
उसी समय रिसालदार कालेखां आ गया। खून में रंगी तलवारों को देखकर क्रुद्ध सवार में बोला, “यह क्या किया?”
बख़्शीश अली ने कहा, “और क्या करते?”
रिसालदार ने अपने सवार को संयत करके पूछा, किसके हुकुम से? क्या रानी साहब ने हुकुम दिया था?”
बख़्शीश अली के पाद ही वह सवार खड़ा था। उसने उत्तर दिया, “रानी साहब को कुछ नहीं मालूम।वें तो हम लोगों से कुछ कटी कटी जान पड़ती हैं।”
“तब किसके हुकुम से?” रिसालदार ने और भी संयत सवार में पूछा।
बख़्शीश अली ने जवाब दिया। “आपके नाम पर मेरे हुकुम से!”
“ओफ़!” रिसालदार ने धीरे से कहा, “हामरे बड़े मुखिया जब सुनेंगे क्या कहेंगे? मगर ….मगर….”
रिसालदार थोड़ी देर चुप रहा। सूर्य की किरणों में जलन बढ़ती चली जा रही थी। रिसालदार ने मुँह पर हाथ फेरा। माथा दबाया। थोड़ी देर ख़ामोश रहा।
बोला, “जो हुआ सो हुआ। आगे बिना हुकुम के कोई काम न करना। रानी साहब के महल पर चलो।”
वैसी ही तलवारें लिए सिपाही महल की ओर चल पड़े।
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सिपाहियों में अनुशासन न था। घिन्न और ग़ुस्सा माँ को घेरे था। अपनी विजय पर उनको पागलों जैसा हर्ष था।
रानी के महल पर वें पीछे पहुँचे, उनका शोरगुल पहले पहुँच गया। पहरेदार ने फाटक बैंड कर लिए। सेना के कुछ सिपाही शहर को लूटने की बातचीत करने लगे। क़वायद परेड सीखे हुए वे सिपाही अच्छे नेता की कमी के कारण महज़ हुल्लड और भंभड की भूमिका भरने लगे। कोई किसी की नहीं सुन रहा था। हर एक आदमी अपना अपना ग़ुबार निकालने की धुन में था।
इतने में कालेखां चिल्लाया, “खलक ख़ुदा का, मुलक बादशाह का, राज महारानी लक्ष्मीबाई का।”
सब सिपाहियों ने यही नारा लगाया।सिपाहियों की विचारधारा इसी नारे की ओर मूड गई - उस नारे ने अनुशासन की कमी को कुछ पूरा किया। खिड़की की झरप हटी। हाथ जोड़े हुए लक्ष्मीबाई दिखलाई दी। पीछे सशस्त्र सहेलियाँ।
बिलकुल गौर बदन। गले में हीरों का कंठ। होंठ एक दूसरे से सटे हुए।सिपाहियों ने फिर नारा लगाया।
रानी ने नमस्कार किया। हाथ उठाकर चुप रहने का संकेत किया। भीड़ में सन्नाटा छा गया। रिसालदार आगे बढ़ा।
रानी ने तीव्र सवार में पूछा, “क्या है? तुम रिसालदार कालेखां हो?” सवार में तीव्रता होते हुए भी कंठ का परकर्तिक सुरीलापन था।
कालेखां ने सैनिक प्रणाम किया। बोला, “हुज़ूर का ताबेडर कालेखां रिसालदार में ही हूँ।”
रानी की अनिमेष दृष्टि से कालेखां ने अपनी आँख मिलायी। कालेखां की आँख झरप गई। नीची हो गयी। रानी ने कहा, “इन तलवारों में रक्त कैसे लगा?”
कालेखां ने बतलाया।
रानी बोली - “इन्ही करमों से स्वराज्य और बादशाही स्थापित करोगे? तुम लोगों ने घोर दुष्कर्म किया है। क्या तुम यह समझते हो कि संसार से सब नियम संयम उठ गए हैं?”
कालेखां - “हुज़ूर ….”
रानी - “और अभी तुम लोगों में से कुछ झाँसी नगर को लूटने की भी चर्चा कर रहे थे। तुम अपने को इतना भूल गए! क्या तुम लोगों को यही सिखलाया गया है?”
कालेखां - “हुज़ूर के हुकुम के ख़िलाफ़ अगर अब कुछ हो तो हम सबको तोप से उड़ा दिया जाए। जो आज्ञा हो उसका हम लोग पालन करेंगे।”
रानी - “तो मैं यह कहती हूँ कि छावनी को लौट आओ। सोच विचार का संध्या तक आज्ञा दूँगी कि आगे तुम्हें क्या करना है।”
कालेखां सिपाहियों से बातचीत करने लगा।
कुछ ने कहा, “छावनी चलो।”
कुछ बोले, “दिल्ली चलो। वहाँ मज़ा रहेगा।”
कुछ ने सलाह दी, “कुछ रुपया तो पहले गाँठ में कर लो।”
अंत में सिपाहियों ने निश्चय किया, “रानी साहब से रुपया लो और दिल्ली चल दो। रानी साहब रुपया न दें तो जितना शहर से वसूल करते बने कर के, झाँसी को रानी के हवाले करो और आगे बढ़ो।”
कालेखां ने सिपाहियों का निर्णय रानी को सुना दिया। कहा, “साकार सिपाही भूखे हैं।”
रानी परिस्थिति को समझ गईं। उन्होंने दूरदर्शिता से काम लिया।बोली, “अंग्रेजों ने मेरे पास रुपया नहीं छोड़ा। राज्य अंग्रेजों के आधीन रहा है। मैं रुपया कहाँ से लाऊँ?”
कालेखां ने कहा, “हम लोग मजबूर हैं। आप मालिक है। आपसे कुछ नहीं कह सकते। यदि यहाँ से रुपया नहीं मिलता है तो हम लोग शहर से उगावेंगे।”
रानी समझ गई कि शहर लूटने वाला है। उन्होंने गले से हीरों का कंठ उतारा और कालेखां की अंजलि में डाल दिया।
बोली, “इससे तुम्हारी सारी अटकें पूरी हो जाएँगी। मनुष्यों की तरह यहाँ से जाओ। कहीं लूटमार बिलकुल न करना, अदब क़ायदे के साथ दिल्ली पहुँचो।हिंदुओं को गंगा की ओर मुसलमानों को क़ुरान की सौगंध है।”
कुछ सिपाहियों ने रानी की नौकरी करनी चाही। परंतु बहुमत दिल्ली जाने के पक्ष में था इसलिए लगभग सब दिल्ली चले गए - केवल थोड़े से रह गए। उनमें से एक लालता तोपची था।
सिपाहियों के चले जाने पर रानी ने रक़्स से दीवान जवाहर सिंह इत्यादि को तुरंत ससैन्य बुलवाया। सिपाही फ़ौजी सामान तोपें इत्यादि अपने साथ ले गए।
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रात में दीवान जवाहर सिंह ससैन्य आ गया। रानी ने आदेश भेजा कि नगर और क़िले का प्रबंध करो और कल दिन में मिलो।
दूसरे दिन महल में बहुत लोग उपस्थित हुए। सेना और शासन से सम्बंध रखने वाले सरदार, कर्मचारी, जागीरदार, जनता के साहूकार मुखिया और पंच।
रानी पर्दे के पीछे बैठी।
रानी ने कहा, “कल कठिनाई के साथ मैं नगर को लुटने से बचा पाया। विद्रोही तो यहाँ से चले गए, परंतु अव्यवस्था छोड़ गए हैं। डकैती और लूटमार बढ़ने का बहुत भय है। मैंने चाहती हूँ जनता त्रस्त ना होने पावे। इसलिए में झाँसी राज्य के पुराने जागीरदार और सरदारों को कुछ सेना के साथ बुलवाया है, जिसमें अव्यवस्था न रहने पावे। आप लोगों को और जनता के मुखिया पंचो को सम्मति के लिए बुलाय है। बतलाइए अब क्या करना चाहिए?”
गार्डन ने सरिश्तेदार ने कहा, “मैं तो यह सलाह दूँगा कि सागर के डिप्टी कमिश्नर को बलवे की सूचना दी जावे और जबलपुर के कमिश्नर को लिखा जावे कि आपने अंग्रेजों की ओर से शासन की बागडोर हाथ में ले ली है।”
माल के सरिश्तेदार ने समर्थन किया।
कौरियो का सरपंच पूरन बोला, “मुसकिल से तो कम्पनी को राज हाट पाओ है अब उन्हें जा खबर काय दई जाय कै हम तुमाय लानें अपना मूंड संजो रये, आऔ, और फिर किड बिड करके झाँसी के प्रान खाऔ?”
दोनो सरिश्तेदारों ने आँखें तरेरी।
काछियों के मुखिया ने कहा, “हमें नई चाऊने काऊ और कौ राज झाँसी में, करै राज तो हामरी बाई साब, न करै तो हमाई बाई साब।”
तेलियों के पाँच ने मत प्रकार किया, “हमैं तो अपनौं पुरानौ राज लौटाउनै, चाय पृथी इतै की उतै हो जाए।”
प्रमुख साहूकार मगन गन्धी बोला, “बात जोहते जोहते आँखें पथरा गईं। आज कितनी मानताओं के बाद यह दिन देखने को मिला। हम लोग तो अपना राज्य चाहते हैं।”
सरिश्तेदारों ने फिर आँखें तरेरी।
चमारों के मुखिया ने कहा, “एल्लो, ऊसई आखेर नटेर रये! राज बाई सांब कौ और फिर बाई साब को और हम सब बाई साब के।”
माल का सरिश्तेदार बोला, “नवाब अली बहादुर को भी बुला लीजिए। वें दुनिया देखें हुए हैं। ठीक सलाह दे दें। इन बेपढ़ो की सलाह पर अमल करना ग़लत होगा।”
“हौ, तै हैं बडौ मौलबी पंडित”, अहीरों के नायक ने रुष्ट होजकर कहा,”हमैं परदेसियन की हुकूमत नई चावनै। जो उनकी पिच्छदारी करै तोकौ करिया मौ हो जाय।”
मोटोपंत ने जन-मत का समर्थन किया। एक लक्ष्मण राव बाड़े नाम का, चतुर काइयाँ भी उसी सभा में था।
बोला, “सरिश्तेदार साहब अंग्रेज़ी और अंग्रेज को जानते हैं। वे वास्तव में यह चाहते हैं कि बाईसाहब दो चार रोज़ यह मुफ़्त का झमेला अपने सिर लिए रहे और सागर के डिप्टी कमिश्नर को बुला कर उनको पेशकारी दिलवा दें ताकि कसकर रोज़गार चले।”
अब सरिश्तेदारी का कोई कुछ कहने लगा और कोई कुछ।
वृद्ध नाना भोपटकर ने, जो अब भी काफ़ी स्वस्थ था, कहा, “हम लोग सरिश्तेदार साहब की सलाह पर भी विचार करेंगे। इस समय इतना तो अवश्य तै कर लेना चाहिए कि राज्य का सर्वांगीण शासन बाई साहब के हाथ में रहे और सब लोग अपने को उनकी प्रजा मानकर दृढ़तापूर्वक अपने जीवन का निर्वाह करें।”
उपस्थित जनता ने हर्ष और उत्साह के साथ इस मत को स्वीकार किया।
वें दोनो सरिश्तेदार दरबार से हटा दिए गए।
रानी बोली, “आप लोग जो भार मुझे दे रहे हैं, उसको मैं अपना गौरब मानती हूँ और परमात्मा की कृपा से उसको निभाऊँगी।”
लोगों ने जय जय कार किया।
ग़ुलाम गौसखां तोपची हाथ बांधकर खड़ा हो गया।
उसने कहा, “श्रीमंत सरकार, मुझको मेरी पुरानी नौकरी मिलनी चाहिए।’
रानी उसको पहिचानती थी।
बोली, “तुम सदर तोपची नियुक्त किए जाते हो सन तोपों को सम्भालो। जो तोपें ख़राब कर दी गयी हैं उनको ठीक करो।
“जो आज्ञा”। ग़ुलाम गौसखां ने गदगद होकर कहा, - “एक विनय और है, साढ़े तीन साल से ऊपर हुए ऐलिस क़िले वाले महल में आया और हम लोगों के माँ में आशा बंधी की झाँसी के राज्य को लौटाने की चिट्ठी लाया होगा, तब मैंने तोपों में बारूद डाल ली थी - सलामी दागने के लिए। आज मुझको अपने मन की करने का हुक्म दिया जाए।”
रानी ने सुरीले मधुर सवार में कहा, “अभी ऐसा क्या हो गया है?”
ग़ुलाम गौसखां - “हो गया है सरकार। हमारे दिलों में हो गया है। दिलों के बहार हो गया है।”
मोटोपंत - “हो गया है।”
लक्ष्मण राव - “हो गया है।”
नाना भोपटकर - “हो गया है।”
उपस्थित जनता ने उसी को दुहराया और जय जय कार की।
रानी ने अनुमति दे दी।
ग़ुलाम गौसखां ने थोड़ी देर में तोपों को सम्भाला। जो चलाने लायक़ थी,, उसने सलामी दाग दी।
जब भीड़ छाँट गई, रानी ने एकांत में अपने सरदारों से विचार विमर्श किया।
नाना भोपटकर - “अभी लक्षणों से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि अंग्रेज़ी राज्य उठ गया। इसलिए एक चिट्ठी जबलपुर के कमिश्नर के पास इस विषय की भेज दी जावे कि बाईसाहब झाँसी में अंग्रेजों की ओर से राज्य कर रही हैं, जिससे डकैती, बटमारी और अव्यवस्था जनता को त्रस्त ने कर सकें। यदि अंग्रेज देश से निकाल दिए गए तो झाँसी हाथ से कहीं गई नहीं और यदि अंग्रेज झाँसी वापिस आ गए तो बाईसाहब का कोई नुक़सान नहीं हो पावेगा।”
मोरोपंत - “मैं इस मत को अनुचित समझता हूं। नाना साहब और दिल्ली, लखनऊ इत्यादि के अपने सहयोगी सुनेंगे तो क्या कहेंगे?”
रघुनाथ सिंह - “नाना साहब इत्यादि हम लोगों को अछी तरह जानते हैं। उनके मन मंजे हुए हैं। भ्रम नहीं हो सकता। मेरे पास रानी विक्टोरिया की दी हुई सनद और तलवार है। सनद को परवाने का काम करने दीजिए और तलवार को देश की स्वाधीनता का।”
दीवान दूल्हाजू - “मैं अपने शरीर के टुकड़े टुकड़े करने कराने को तैयार हूं। खूब डट कर राज्य हो और कसकर लड़ाई। मैं तो आज हर्ष के मारे बेक़ाबू हुआ जा रहा हूँ।”
जवाहर सिंह - “दीवान साहब समय पड़ने पर सब देखा जाएगा।”
दूल्हाजू - “कैसे दीवान साहब?”
जवाहर सिंह - “आप तो रुष्ट होने लगे। लड़ना मारना सबको आता है। यह समय शांति के साथ सलाह करने का है, मेरे निवेदन का इतना ही अर्थ है।”
भाऊबख्शी - “मेरी समझ में आनन भोपटकर जो कह रहे हैं, वह ध्यान देने योग्य है।”
मोरोपंत - “मैं इस सलाह के विरुद्ध नहीं हूँ। परंतु झंडे का सवाल उठता है। जगह जगह बादशाह का हारा झंडा फहराया जा रहा है।”
रानी -“झाँसी पर केवल भगवा झंडा उड़ाया जावे।”
नाना भोपटकर - “मेरी भी यही राय है।”
रानी - “नीति का काम नाना भोपटकर जी को सौंपा जाय वे जैसा ठीक समझे करें। मैं स्वयं रणनीति और राजनीति ने समीकरण में विश्वास करती हूँ। एक का पलड़ा भारी हुआ कि दूसरा झमेले में पड़ा।”
नाना भोपटकर - “मैं स्वयं चिट्ठी नहीं लिखूँगा। गार्डन के सरिश्तेदार से लिखवाकर भेजूँगा। वह यहाँ से खिसिया कर गया है। मना लूँगा।”
इस बात के तै होने पर राजकार्य का विभाग किया गया और पदाधिकारी नियुक्त किए। लक्ष्मणराव प्रधानमंत्री, बख्शी और तोपें ढालने वाला भाऊ, प्रधान सेनापति दीवान जवाहर सिंह, पैदल सेना के तीन कर्नल - एक दीवान रघुनाथ सिंह, दूसरा मुहम्मद जमाखां तीसरा खुदाबख्श। घुड़सवारों की प्रधान स्वयं रानी। कर्नल - सुंदर मुंदर और काशीबाई। तोपख़ाने का प्रधान ग़ुलाम गौसखां, नायब दीवान दूल्हाजू। न्यायाधीश नाना भोपटकर। मोरोपंत कमठाने के प्रधान। जासूसी विभाग मोतीबाई के हाथ में, नायब जूही।
पुलिस, माल विभाग, दां धर्म विभाग इत्यादि के भी कर्मचारी नियुक्त कर दिए गए। तहसीलों के तहसीलदार भी। मऊ का परगना काशीनाथ भैया नमक एफ महाराष्ट्र और आनंद राय के हाथ में दिया गया। उस दिन खूब लू चली। काफ़ी गर्मी पड़ी। परंतु किसी ने यह न जाना कि दिन कैसे निकल गया। जब सब काम अच्छी तरह से निबटा लिया तब रानी ने सभा विसर्जित की।
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