Jhansi ki Rani - Lakshmibai # 11 - Vrindavan Lal Verma
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कप्तान गार्डन डिप्टी कमिश्नर बहादुर का बंदोबस्त बहादुरी के साथ चला। जागीरें ज़ब्त हुई; जीमीदारियाँ क़ायम हुई। मंदिरों को सेवा पूजा के लिए जो जायदांदे लगी थी वे ख़त्म हुई। पुजारियों को, पूजकों को यह बहुत अखरा। अर्ज़ी-पुरजियां की।
बगलों पर माथे रगड़े, एक ना चली। गार्डन की दृढ़ता ने चोर-डाकुओं से लेकर पुजारियों तक के होश ठिकाने लगा दिए। हर बात में अर्ज़ीनवीस का दौर दौरा बध गया। क़ानून की प्रतिष्ठा के लिए वकीलों को आदर मिला। पहले कोई परीक्षा इस पेशे के लिए जारी नहीं की गयी थी। वकालत की सनद डिप्टी कमिश्नर आता किया करता था - ठीक उसी तरह जैसे जीमीदारी या नौकरी आता होती थी। होशियार लोगों ने झटपट अंग्रेज़ी क़ानून, अदब, ढंग सीखा और आगे चलकर बिना उसके अदालत का पत्ता भी ना हिला। इस वर्ग ने उस युग में सब प्रकार की निष्ठाओं के ऊपर क़ानून की निष्ठा को बिठलाने में जाने अनजाने सहायता की। केवल यह एक ऐसा अंग्रेज़ी संस्कार है जिसके प्रति हिंदुस्तानियों की आत्मगत भावनाओं में श्रद्धा होनी चाहिए थी, परंतु जिस प्रेरणा और जिस वातावरण में होकर और जिन उपकरणों के साथ न्याय का यह साधन आया था, वे सब हिंदुस्तानियों को क़तई अच्छे नहीं लगे और इसीलिए क़ानून भी अखरा।
परोपकार की वृत्ति से प्रेरित होकर अंग्रेजों ने क़ानून की प्राण प्रतिष्ठा हिंदुस्तान के न्याय-मंडित में की हो सो बात नहीं थी।
देश में पूर्ण शांति हो, अंग्रेजों का अधिकार सदा- सर्वदा इस देश में बना रहे और अंग्रेज़ी व्यापार, व्यवसाय निर्बाध चलते रहे, बस इसी वृत्ति से प्रेरित होकर क़ानून बनाए गए और चलाए गए। गवर्नर जनरल से लेकर पटवाती और चौकीदार तह क़ायदा-क़ानून में बंधकर अपना अपना काम करते चले जाए, अनुशासन में शिथिलता न आने पावे। तभी तो अंग्रेज़ी राज्य निर्विघ्न चल सकता था। उन लोगों ने हिंदू नरेशों और मुसलमान बादशाहों के सूबेदार और अन्य कर्मचारी मौक़ा पाते ही उसको धकेल दिया करते थे।
समय समय पर गार्डन शहर के बड़े आदमियों को मुलाक़ात के आकर्षण देता रहा। चिरौरी करना तो वे जानते ही थे, इसकी भी करते थे, परंतु जब वे इसके सामने झुकते थे उनकी रीढ़ में दर्द हो उठता था और माथे पर बल पड़ जाते थे। घर आकर लाभ हानि को आंकने के साथ वे साहब की हेकड़ी पर जलते थे और अपनी चिरौरी पर हंसते थे।
रानी को भी समाचार दे आते थे। वे चुपचाप सुन लेती थी और उनके बाल बच्चों के समाचार विस्तृत ब्योरे के साथ पूछ लेती थी। अन्य कोई बात न कहने का उन्होंने माँ पर बंधेज कर रखा था।
शहर वाले महल के ठीक सामने राजकीय पुस्तकालय था। वह उन्ही के हाथ में था। पुस्तकालय के पीछे एक ढाल था और ढाल के ठीक नीचे उनका सुंदर बड़ा बाग। इस बाग में वह घुड़सवारी इत्यादि व्यायाम किया करती थी। नगर की जो स्त्रियाँ उनके पास आती थी, उनको वह सुंदर, मुंदर और काशीबाई इतना सीख गई थी, कि दूसरों को सीखने में रानी को इनसे बड़ी सहायता मिलने लगी। फिर भी रानी सोचती थी कि अश्वरोहण और शस्त्र चलन में में सर्वश्रेष्ठ नहीं हुई हूँ।
पुरानी लड़ाइयों के नक़्शे उनके महल में थे। वे उनका बारीकी के साथ अध्ययन करती थी। बनावटी लड़ाइयों के नक़्शे काग़ज़ पर बनती और बिगाड़ती। अपनी सहेलियों के साथ भिन्न भिन्न प्रकार की अनेक युद्ध परिस्तिथियों पर वाद विवाद करती। उनको पहाड़ियों पर अश्वारोहण का शोवक हुआ। झाँसी के आसपास पहाड़ियाँ हैं ही, उस समय जंगल और विषम स्थल भी थे। रानी तेज़ी के साथ सहेलियों सहित इन पर अश्वारोहण करती। झाँसी के आसपास की भूमी का उनको राई रत्ती परिचय प्राप्त हो गया। जो स्त्री पुरुष उनके पास भेंट के लिये आते उन सबसे कहती -
“शरीर को इतना कमाओ कि फ़ौलाद हो जावे, तभी माँ दृढ़ता पूर्वक भगवान की ओर जाएगा।”
उनका कसरतों का शोवक शीघ्र विख्यात हो गया। अमीर खान, वज़ीर खान दो नामी उस्ताद उनको मिले। बाला गुरु भी बिठूर से आए और मल्ल विद्या के सूक्ष्मतम दांव पेंच बटला कर चले गए। नर सिंह राव तौरिया ने नीचे दक्षिणियों के मुहल्ले में, वे एक अखाड़ा जारी कर गए। रानी कुश्ती का अभ्यास अपनी सहेलियों के साथ करती थी। तीर, बंदूक़, छुरी, बिछुआ, रैकला इत्यादि चलाने में पहले दर्जे की श्रेष्ठता, उन्होंने अमीर खां , वज़ीर खां, के निर्देशन से प्राप्त की - ऐसी और इतनी कि उनकी कुशाग्र बुद्धि, शक्ति और हस्त कुशलता पर वे दोनो नामी उस्ताद विषमय में डूब जाते थे। वे जानते थे कि रानी उद्दंड प्रकृति की हैं, इसलिए कभी कभी लगता था कि हथियार चलाने या परीक्षा के लिए ललकार न बैठे। यह उनका भ्रम था। रानी का बाह्य रूप प्रचंड तेज पूर्ण था, परंतु अंतर बहुत कोमल और उदार।
इस प्रकार महीनों पर महीने बीत गए।
एक दिन तात्या टोपे आया। रानी की सेना बहुत दिन पहले समाप्त कर दी गयी थी, परंतु सैनिक और उनके नायक, अपने कौशल को ना भूले थे। और न उनका स्वाभिमान गारत हुआ था।
मुहम्मद जमाखा अपने को कर्नल अब भी कहता था, अठवारे पखवारे रानी को वह प्रणाम कर आया करता था। उसी की हवेली के एक भाग में तात्या पूर्ववत ठहरा। रात के आठ बजे के बाद तात्या रानी के पास पहुँचा। वें तीनों सहेलियाँ उनके साथ थी। अबकी बार तात्या ने जो रानी को देखा, तो बहुत सतेज पाया।
कुशल वार्ता के बाद बातचीत हुई।
“अबकि बार राजस्थान, पंजाब इत्यादि भी घूमे?” रानी ने पूछा।
तात्या ने उत्तर दिया, “अब की बार बहुत घूमा हूँ, और एकाध जगह तो पकड़े जाने की ही नौबत आ गई।”
वे अब सतर्क होकर सुनने लगी।
तात्या कहता गया, “मैंने पाना हाल राजपूताने से आरम्भ करता हूँ। बड़े बड़े राज्य जैसे जयपुर, जोधपुर, बीकानेर इत्यादि किसी विशेष पक्ष में नहीं। तटस्थ से हैं परंतु सब कहते हैं कि झाँसी के साथ अंग्रेजों ने बेईमानी की। हम लोगों के प्रति उनका उदासीन भाव है। इसके लिए हमारा उनका, दोनो में से किसी का भी दोष नहीं है। हम लोग एकत्र स्वराज्य स्थापित करना चाहते थे और वे लोग अपनी अपनी अलग स्वतंत्रता की धन में थे। राजपूताने में एकाध ठिकाना ऐसा भी है को महाराष्ट्र नाम से ही अप्रसन्न है, परंतु हिंदुस्तान की स्वाधीनता के लिए उपयुक्त अवसर आने पर अपना सर्वस्व होमने को तैयार हैं। लेकिन वहाँ के अधिकांश राजा अपने को, अंग्रेजों की सहायता के कारण ही, निरापद समझते हैं, इसलिए न अपने जागीरदारों की परवाह करते हैं, ना प्रजा की। जैसा ढर्रा चला आया है, मज़े में उसको चालू रखने के पक्षपाती हैं, अच्छे नेतृत्व की हीनता में जनता जीवन के साधारण उद्देश्यों में ही लिप्त है। ऐसी अवस्था में वहाँ से kou आशा नहीं करना चाहिए। परंतु यह विश्वास है कि वहाँ की सेना अपनी सेना का साथ देगी। पंजाब का हाल कम आशाजनक है। रणजीत सिंह का पंजाब, अंग्रेज़ी इलाक़े और पाँच रियासतों में विभक्त हो गया है। इन रियासतों के राजा, हाथ आयी रोटी को किसी प्रकार भी फेंकने को तैय्यार नहीं। जनता नेता विहीन है, इसलिए विवश सी है। दिल्ली का बादशाह बहादुर शाह वृद्ध है। परंतु उसकी बेगम तेजस्वी है। मुसलमान लोग बादशाह के नाम पर बलिदान होने को तैयार हो सकते हैं। मैं कई प्रभावशाली मुसलमानों से मिला; वे कहते हैं कि हिंदुस्तान में फ़िट बादशाहत क़ायम करो। मैंने कहा, ‘स्वराज्य’ और बादशाहत का सामंजस्य हो सकता है। जब उन्होंने पूछा कैसे होगा तब मैंने उनको बतलाया कि अपने अपने प्रांतों और प्रदेशों में सब लोग स्वराज्य नियुक्त करेंगे- बादशाह को उनमें दख़ल देने का अधिकार तो ना रहेगा परंतु अंतरप्रान्तीय बड़े कार्यों से सम्बंध रखने वाले हुकुमों पर मुहर बादशाह के नाम की रहेगी। सिर्फ़ दिल्ली के आसपास का कप्रदेश बादशाह का खालसा रहेगा। बाहर के शत्रुओं से सब प्रांत और प्रदेश सम्मिलित होकर स्वराज्य और बादशाह के नाम पर लड़ेंगे और इस तरह मिलकर हिंदुस्तान का शासन चलावेंगे। पर हर हालत में पहले सब मिलकर इस बला को इस देश से टालें। बहुत लोग इस योजना से सहमत हुए, क्योंकि इस समय यही व्यावहारिक जान पड़ती है, परंतु यहीं पर मैं पकड़े जाने से बाल बाल बच गया। एक नायाब डिप्टी कमिश्नर ने, जो हिंदुस्तानी था, क़ैद कर लिया परंतु सिपाहियों की आँख मिचौनी में से भाग निकला। इसके बाद में दक्षिण गया।”
रानी ने कहा, “तात्या तुम बहुत चतुर हो। अपनी वार्ता सुनाते जाओ। मैं ध्यान दिए हूँ।”
तात्या मुस्कुराकर बोला, “मराठा रियासतों के राजाओं का जो हाल पहले देखा था, वही अब भी है। केवल एक अंतर है। जनता सजग है और सिपाही स्वाभिमानी हैं। महाराष्ट्र की जनता अब भी स्वराज्य-मत्त है। दरिद्र और धनाढ्य, किसान, मज़दूर और जागीरदार लगभग सब एक संकेत पर खड़े हो सकते हैं।”
“और एक बार फिर”, रानी ने साहस कहा, “वें पर्वत मलाएँ और मैदान, वे घाटियाँ और उपत्यकाएँ “हर हर महादेव” से गूंज उठेंगी, कांप उठेगी।”
रानी का सतेज मुख और भी तेज़मय हो गया। परंतु वे तुरंत मुस्कुरा उठी।
बोली, “तात्या, मुझको तमहरे सामने तक नियंत्रण के साथ बोलना चाहिए। कभी कभी मैं वाकसंयम की कमी के कारण अपने ऊपर खीझ उठती हूँ।”
तात्या ने दृढ़ सवार में कहा, “बाईसाहब, मेरे हृदय में, इनके हृदय में, और सब जनता के हृदय में, जो बात गड़ी हुई है, वही आपके मह से निकल पड़ी।
रानी बोली, “अभी उसका समय नहीं आया। समय पर ही निकालनी चाहिए। तुम आगे की वार्ता कहो।”
तात्या ने कहा, “मैं हैदराबाद गया। नवाब, अन्य रेज़ान की तरह अंग्रेजों के आतंक से बड़ा हुआ है। सेना जिस पक्ष का पास पड़े उस ओर जाएगी। जनता हमारे साथ होगी। मैं मैसूर और तंजौर भी गया था। यही हाल वहाँ का भी है।”
रन ईके होंठों पर वही मुस्कान आई, जिसके मृदुल मधुर आवरण में फ़ौलादी आदर्श नियित थे।
बोली, “तात्या अभी कुछ विलम्ब और है। तब तक महत्वपूर्ण स्थानों के भूगोल का बारीकी के साथ अध्ययन कर लो। कहा किस प्रकार सेनाओं को ले जाना पड़ेगा, कहा आसानी के साथ युद्ध किया जा सकता है और अपने अभीष्ट स्थान पर किस प्रकार शत्रु को एकत्र करके लड़ाई के लिए विवश किया जा सकता है। इन विषयों पर काफ़ी समय और परिश्रम खर्च करने की आवश्यकता है। इसके सिवाय बारबरदारी के जानवरों और अच्छे घोड़ों के इकट्ठा करने की योजना पर विचार करते रहने को भी माँ में बहुत स्थान मिलना चाहिए। तोपे, बंदूक़ें, बारूद, गोला, गोली इत्यादि युद्ध सामग्री के बनाने वाले कारीगरों को भी, हाथ में ए लो। अंग्रेज़ी कारख़ानों
में अपने आदमी नौकर रखवाओ। वे लगन के साथ सब क्रियाएँ सीखें। अपनी पुरानी बारगी युद्ध परिपाटी को तो गाँठ ही में बांध लो। हमारा देश उस परिपाटी को छोड़कर अंग्रेजों से लड़ा, इसलिए भी हारा।
तात्या - मैंने नाना साहब और राव साहब के प्रोत्साहन और आज्ञा से इन सब बातों का ध्यान रखा है और आपकी भी आज्ञा मिली। पूरा ध्यान दूँगा। मैं इतने महीनों पैदल अधिक फिरा हूँ इसलिए मुझको देश का भूगोल बहुत अछी तरह याद हो गया है। किसी न किसी तरह बहुत से आदमी, समान और जानवर लेकर कहीं का कहीं पाहुँच सकता हूँ।”
रानी - “लड़ाइयों के नक़्शों का अध्ययन किया?”
तात्या - “अछी तरह। पंजाब में को लड़ाइयाँ अंग्रेजों से सिक्ख लड़े हैं उनका भी मैंने अध्ययन किया। व्यर्थ ही सिक्खों ने इतनी वीरता खर्च की। इतनी युद्ध सामग्री, ऐसी अच्छी सीखी सिखाई फ़ौज यदि अच्छे नायकों के हाथ में होती तो अंग्रेज सिक्खों को कभी न हारा पाते। परंतु कदाचित उनकी हार देश-द्रोहियों के कारण हुई है।”
रानी - “वे लोग तो कहते होंगे कि भाग्य ने हारा दिया?”
तात्या -“निस्संदेह यही कहते हैं।”
रानी -“पंजाब में स्त्रियों को कुछ स्वाधीनता है?”
तात्या -“हिंदू और सिक्ख स्त्रियों को है।”
रानी - “तब पंजाब किसी दिन फिर खड़ा होगा।”
तात्या -“परंतु मुसलमान स्त्रियों में काम है।”
रानी - “यह खेद की बात है, किंतु वे भी किसी दिन अपनी बहनों के प्रभाव में आवेंगी।”
तात्या -“मैंने पंजाब को भी योजना में ले रहा हूँ। जिस समय इस ओर की बाढ़ पंजाब से जाट कारवेगी, उस समय पंजाब भी नीचे पड़ा ना रहेगा।”
रानी -“मैं सिक्खों की लड़ाइयों के नक़्शों का अध्ययन करना चाहती हूँ।”
तात्या ने काग़ज़ों पर मानचित्र बना कर समझाया। रानी ने और उनकी सहेलियों ने भी समझा।
तात्या ने अनुरोध किया, “हमको एक अपने विश्वसनीय जासूसी विभाग की बड़ी आवश्यकता है।”
रानी ने मुस्कुरा कर कहा, “मैंने स्थापना कर दी है।”
तात्या ने उत्सुक होकर पूछा, “कैसे? कहाँ?”
रानी ने उत्तर दिया - “यहीं। मेरी ये तीनों सहेलियाँ काम सीख रही हानि और कर रही हैं। मैंने और स्त्रियों को भी तैयार कर रही हूँ, परंतु काम सावधानी का है, इसलिए धीरे धीरे कर रही हूँ।”
तात्या प्रसन्न हुआ।
बोला, “झाँसी में एक विलक्षण बात देखी। जो यहाँ निवास करता है वह तो आपका भक्त है ही, किंतु यहाँ का निवासी जो बाहर चला गया है, वह भी झाँसी के लिया अपना तन मन बलिदान करने के लिए प्रस्तुत है।”
रानी बोली -“मुझको इसी लिए झाँसी का बहुत अभिमान है।”
तात्या ने कहा, “बाई साहब, जब में ग्वालियर राज्य का हाल लेता हुआ हाल में दक्षिण की ओर गया, तब वहाँ बाज़ार में एक फटियल ब्राह्मण मिला। उसने मुझको पहचान लिया। मैंने भी उसको चिनह लिया। वह झाँसी का रहें वाला नारायण शास्त्री निकला। उसको स्वर्गीय सरकार ने, एक अपराध में देश निकाले की सजा दी थी …।”
रानी बोली, “मैंने उस अपराध के विषय में सुना है।”
तात्या ने कहा, “नारायण शास्त्री आश्वासन देता था कि जो जँच भी कार्य भार उसको दिया जाएगा, वन प्राणपण से करेगा।”
रानी ने पूछा, “वह जिस स्त्री को लेकर यहाँ से गया था, क्या उसको त्याग दिया?”
तात्या ने उत्तर दिया, “नहीं बाईसाहब। उसने मुझसे स्पष्ट कहा।”
रानी -“समाज ने उसको कैसे ग्रहण किया होगा?”
तात्या - “वह समाज से बाहर है। मूँछ मुँड़ाए, बैरागी वेश में रहता है। साथ में वह स्त्री रहती है।”
रानी - “उसको क्या काम दिया?”
तात्या - “सेना ने साथ सम्पर्क रखने का काम। नारायण शास्त्री ज्योतिष जानत है और कविताएँ गाता है। उनके प्रयोग से वह सेना के सम्पर्क में रहेगा।”
रानी - “सेना के साथ घनिष्ठ सम्पर्क उत्पन्न करने को बहुत महत्व देना होगा।”
तात्या - “दे रहा हूँ।”
रानी - “तुमको, जान पड़ता है अकेले ही बहुत काम करना पड़ता है।”
तात्या - “नहीं बाईसाहब, नाना साहब, राव साहब इत्यादि बहुत लोग काम में जुटे हुए हैं। दिल्ली और मेरठ इत्यादि प्रदेशों के अनेक मुसलमान भी प्राणों की होड़ लगा कर निरत हैं।
रानी - “मुझको ऐसा लगता है कि शीघ्र ही कुछ ना हो बैठे परंतु मैंने सोचती हूँ कि अधकचरि तैयारी में भी कुछ किया जाना चाहिए। बहुत दिन हुए, मद्रास की ओर कुछ सिपाहियों ने अचानक उपद्रव कर डाला था वह व्यर्थ गया। फल यह हुआ कि मद्रासी अब सेना में काम भर्ती किए जाते हैं। और अंग्रेजों ने अपनी सावधानी को कसकर बढ़ा लिया है।”
तात्या - “ कैसी भी सावधानी, कुटिलता और बुद्धि से अंग्रेज लोग काम लें, हमारी विशाल, असंख्य जनता, उनका राज्य नहीं चाहती। इसलिए राजाओं और नवाबों का साथ न पाते हुए भी हमको अपने उत्साह में कमी प्रतीत नहीं होती।”
रानी ने मुस्कुरा कर कहा, “मैं जानती हूँ।”
तात्या बोला, “बाई साहब, अब आपके शयन का समय आने को है - भोजन तो अभी हुआ ही नहीं है। जाता हूँ। यहाँ एकाध दिन रह कर चला जाऊँगा। शीघ्र ही फिर सेवा में उपस्थित होऊँगा अर्थात् जैसे ही कोई महत्व की बात सामने आयी, मैं आऊँगा।”
रानी - “भोजन अब मैं नहीं करूँगी। केवल दूध पीऊँगी नहीं तो कल के कार्यक्रम का व्यतिक्रम हो जावेगा। तुम दीवान रघुनाथ और दीवान जवाहर सिंह से मिले हो?”
तात्या - “पिछली बार आया तब मिला था। अबकी बार नहीं मिल पाया हूँ।”
रानी - “उनसे मिलना। रघुनाथ सिंह नयी बस्ती में गनपत खिड़की बाहर रहते हैं, और जवाहर सिंह कँटीली गाँव में होंगे।
तात्या - “मैंने इनसे मिलूँगा।”
तात्या चला गया।
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रानी के पास आठ बजे के लगभग तात्या, रघुनाथ सिंह और जवाहर सिंह आए। रघुनाथ सिंह पुश्त देह का बड़ा बलशाली पुरुष था। जवाहर सिंह ज़रा छोटे शरीर का परंतु काफ़ी बलवान।
प्रणाम करके तीनों बैठ गए।
रानी ने पूछा, “दीवान जवाहर सिंह को क्या कँटीली से ले आए तात्या?“
हाथ जोड़कर जवाहर सिंह ने उत्तर दिया, “दीवान रघुनाथ सिंह का साडिनी सवार लिव लाया। उसने प्रात:काल के बहुत पहले ही सोते से जगाया था।”
तात्या ने कहा, “मैं स्वयं नहीं गया। दीवान साहब से प्रार्थना की और इन्होंने तुरंत रात को ही, साडिनी सवार भेज दिया। घुड़सवार जाता तो दीवान साहब को भी घोड़े पर ही आना पड़ता। शयस कोई संदेह करता, इसलिए ऊँट भेजा।”
जवाहर सिंह बोला, “श्रीमंत सरकार, मुझे किसी का भी दर नहीं है। उस दिन के लिए तरस रहा हूँ, जब झाँसी और अपने स्वामी के लिए अपना शरीर त्याग दूँ।”
रघुनाथ सिंह झूमने लगा।
रानी ने मुस्कुराकर कहा, “आप ही लोगों का बल भरोसा है। एक दिन आवेग जब आप लोगों के जौहर का उपयोग होगा। तात्या ने कुछ बतलाया होगा?”
रघुनाथ सिंह - “बतलाया है सरकार। थोड़े में समझ लिया। हम लोगों को ज़्यादा सुनने और समझने की दरकार नहीं ही नहीं है। अपनी माता के दर्शन करने थे, इसलिए चले आए।”
जवाहर सिंह - “हम लोगों को सरकार के हाथों अपनी तलवार पर गंगाजल छिटकवाना है।”
रघुनाथ सिंह - “और अपनी माता का आशीर्वाद प्राप्त करना है।”
रानी मुस्कराई। बोली, “आप लोगों को मैं अच्छी तरह जानती हूँ। आप लोग सहज ही प्राणों की होड़ लगा सकते हैं। परंतु मैं चाहती हूँ कि प्राणों को सहज ही न खोया जाय। अवसर आने पर ही तलवार म्यान से बाहर निकले। छोटी छोटी सी बात पर न खिंच जावे।”
तात्या- “इन लोगों को लाट की आज्ञा पर बहुत क्षोभ हुआ। और ये तुरंत कुछ जवाब देना चाहते थे।”
रानी - “अंग्रेजों के अन्याय बढ़ते जावे तो अच्छा ही है। फिर भगवान हमारी जल्दी सुनेंगे। असल में अभी इन छोटी बातों पर खीझ कसर का निकलना, अच्छा नहीं है।”
उन दोनों ने अपनी चमचमाती हुई तलवारें, रानी के पैरों के पास रख दी और हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
रानी ने मुंदर से कहा, “गंगाजल ला।”
मुंदर गंगाजल ले आयी। रानी ने पहले जवाहर सिंह की तलवार पर छींटे दिए और फिर रघुनाथ सिंह की तलवार पर।
उन दोनों ने रानी के चरण स्पर्श करके तलवारें म्यान में डाल ली। रानी पुलकित हुई।
एक क्षण में अपने को संयत करके बोली, “गंगाजल की पवित्रता को निभाना। आपस की कलह में इसका प्रयोग मत करना और न किसी कलुषित काम में।”
उन दोनों ने मस्तक नवाए।
रघुनाथ सिंह ने कहा, “सरकार अब आशीर्वाद मिलना चाहिए।”
रानी का गला भर आने को हुआ। उन्होंने नियंत्रण कर लिया।
बोली, “तुम्हारे हाथों स्वराज्य के आदर्श का पालन हो। सुखी रहो और पाने पीछे ऐसा नाम छोड़ जाओ कि आने वाली अनंत पीढ़ियाँ तुम्हारे स्मरण से अपने को शुद्ध करती रहें।”
जवाहर सिंह ने कहा, “माता का यह आशीर्वाद और वह पवित्र गंगाजल सदा हामरे साथ रहेगा।”
रघुनाथ सिंह बोला, “माँ आज न जाने क्यों ऐसा भास हो रहा है मानों हम लोग अनेक युद्धों पर विजय प्राप्त कर चुके हो।”
रानी ने कहा, “मुझको संदेह नहीं है, युद्धों पर विजय प्राप्त करोगे।”
रघुनाथ सिंह ज़रा मचलते हुए बोला, “माता हमको आशीर्वाद तो मिल गया, अब प्रसाद भी मिलना चाहिए।”
रानी ने तुरंत मुंदर से कहा, “लड्डू ला मुंदर। मैंने अपने हाथों आज ही बनाए हैं।”
मुंदर थाल भर लड्डू ले आयी।
“नहीं सरकार, इतने नहीं” , जवाहर सिंह हंसकर बोला, “हम लोग भोजन कर आए हैं।”
रानी उठी। दोनो हाथों में एक एक लड्डू लिया।
“अपने हाथ के बनाए लड्डू अपने ही हाथों खिलाऊँगी। तात्या तुम भी खाओ।” रानी ने कहा।
उन लोगों ने मुँह खोले। रानी ने आग्रह के साथ खिलाया। बचे हुए लड्डू उन तीनों सहेलियों को खिला दिए।
हाथ मुहँ धोकर वे सब बैठ गए।
रानी ने कहा, “आप लोग अभी केवल इतना करें - नातेदारियों में अपना मेल बढ़ाएँ और उनको अपनावें। सबके काम में पड़ें और छोटी से छोटी जाति के पुरुष या स्त्री का, गरीब से गरीब, मज़दूर या किसान को, कदापि छोटा ना समझें। सब जातियों और सब वर्गों को, बिना अपना उद्देश्य बतलाए, हथियार चलाना सिखलाएँ। इस काम के लिए काफ़ी अवसर मिल सकते हैं, जैसे शिकार, उत्सव, ब्याह, बारात इत्यादि।
जवाहर सिंह ने कहा, “बहुत अच्छा।”
रघुनाथ सिंह ने कहा, “ऐसा ही होगा।”
तात्या बोला, “मैंने इनसे कहाँ है कि ऐसी कोशिश करो कि कोई नातेदार डाका ना डाले। ये कहते हैं कि बड़ी मुश्किल पड़ेगी। मैंने कहा कि डाके डालने ही हैं तो ख़ज़ाने पर डालो और थाने लूटो।”
रानी ने निवारण करते हुए कहा, “नहीं तात्या, यह उचित नहीं अनाचार और अत्याचार को प्रोत्साहन एक बार मिला, कि वह बार बार सीट उठाता है। जब स्वराज्य का युद्ध शुरू होगा तब ख़ज़ाने और थाने सब अपने अधिकार में किए जावेंगे। अभी नहीं।”
जवाहर सिंह और रघुनाथ सिंह ने हामी भरी।
तात्या बोला, “अभी तो गार्डन अपना प्रबंध पक्का किए जा रहा है। समझता होगा कि जनता को अपनाते जा रहे हैं।”
रानी ने कहा, “जनता मूर्ख नहीं है।”
तात्या, दीवान जवाहर सिंह और दीवान रघुनाथ सिंह प्रणाम करके चले गए।
रानी ने अपनी सहेलियों से पूछा, “बतलाओ, इन दोनो में से, झाँसी की स्वराज्य सेना का प्रधान सेनानायक बनाने योग्य कौन हैं?”
मुंदर - “दीवान रघुनाथ सिंह।”
सुंदर - “मैंने भी ऐसा ही सोचती हूँ।”
काशीबाई - “जवाहर सिंह।”
फिर वें तीनों रानी का मुँह ताकने लगी।”
मुंदर बोली, “हम दोनो की बात सही निकलेगी।”
सुंदर ने कहा, “बाई साहब देखे क्या कहती हैं।”
काशीबाई हंसकर बोली, “वें अभी बतला देवेगी।”
रानी ने कहा, “समय बतलावेगा।”
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