Jhansi Ki Rani - Lakshmibai # 10 - Vrindavan Lal Verma

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झाँसी की जनता के क्षोभ का समाचार, ऐलिस को मिल गया। उसने अपने मन में एक सामंजस्य स्थिर किया और उसके अनुसार मालकम को लिखा। मालकम ने गवर्नर जनरल को सिफ़ारिश की :- 

रानी लक्ष्मीबाई को आजीवन पाँच हज़ार रुपए दिए जावें और नगर वाला राजमहल उनकी सम्पत्ति समझी जाकर उन्ही को दे दिया जाय। रानी या उनके नौकरी पर ब्रिटिश अदालतों की सत्ता रहे। अपने नौकरों के अपराधों का वें स्वयं न्याय करें। राजा का निज का धन, रियासत के लेन देन का हिसाब करके जो बाक़ी बचा रहे वह, और राज्य के सब जवाहरात, रानी को दे दिए जाएँ। राजा और रानी के नातेदारों की एक सूची बनाई जाए, और उन लोगों के निर्वाह की व्यवस्था कर दी जाए।

डलहौज़ी ने ये सिफ़ारिशें स्वीकार की, केवल एक बात नहीं मानी। वह यह कि राजा की निज की सम्पत्ति और रियासत की जवाहरात रानी के हों। उसने तय किया दामोदरराव के होंगे क्योंकि यद्यपि वह राज्य का अधिकारी नहीं है, मगर हिंदू शास्त्र के अनुसार गंगाधर राव की निजी सम्पत्ति का अधिकारी अवश्य है। 

डलहौज़ी ने यह आज्ञा २५ मार्च १८५४ को दी और तदनुसार पोलिटिकल एजेंट ने झाँसी के ख़ज़ाने से छः लाख रुपए निकल कर दामोदर राव के नाम से अंग्रेज़ी ख़ज़ाने में जमा कर दिए और निश्चय किया कि दामोदर राव को बालिग़ होने पर ब्याज समेत लौटा दिए जावेंगे। रियासत के सब जवाहरात और सोने चाँदी के आभूषण इत्यादिदामोदर राव हेतुरानी के आधीन कर दिए। 

ईमान और राजनीति दोनो की परस्पर निभा दी। 

अब अंग्रेज़ी बेलन अपरिहार्य और अनवरत गति से चला। 

सबसे पहले जो हुआ, वह रानी से क़िले का ख़ाली कराना था।

क़िले से एक बड़ी सुरंग हाथीखाने को और वहाँ से शहर वाले महल को गई थी। रानी ने इसके द्वार को मुंदवा दिया और वह क़िले के शहर वाले महल में सहेलियों सहित चली आयी। 

अंग्रेज़ी पलटन ने क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसके अंग्रेज अफ़सरों ने रात को कबाब- शराब से जश्न मनाया। पलटन के बहुत से हिंदुस्तानी सिपाही आंसू बहाते हुए सोए।

दूसरे दिन बहुत सा रियासती फ़ौजी सामान नष्ट किया गया और बड़ी बड़ी तोपों को निरुपयोगि कर डाला गया। झाँसी राज्य की सम्पूर्ण सेना एक कलम से बर्खास्त कर दी गई - उनको छः छः महीने का वेतन देने की उदारता ज़रूर की गयी। सिपाही वेतन लेकर महल के सामने से निकले। वें रानी का एक अंतिम दर्शन लेना चाहते थे। रानी झरोखे पर पर्दे के पीछे गयी। सिपाही आंसू बहाते चले जाते थे और रानी माता, रानी माता कहते हुए उनको प्रणाम करते चले जाते थे। रानी पर्दे के बाहर केवल अपने जुड़े हुए हाथों नमस्कार करती जाती थी। रानी ने सिपाहियों के आंसू देखकर भी अपने आंसू किसी आश्चर्यपूर्ण क्रिया से रोके।

छः छः मास वाले वेतन की उदारता केवल सिपाहियों तक सीमित रही बाक़ी सब रियासती नौकर ख़ाली जेब घर चले गए। जिसको पटवार-गिरी और कानून-गोई से पेट भरना था उनकी अर्ज़ियाँ जल्दी जल्दी मंज़ूर कर ली गयी। एक बख़्शीश अली झाँसी नगर के सब फाटकों का फाटक दार था और रियासती कर्मचारियों में उसका बहुत ऊँचा स्थान था। उसको झाँसी के जेल की दरोगाई मिल गई।

लगभग सब जागीरदार ख़त्म कर दिए गए। केवल गुरसराय, कटेरा और गुसाइयों की जागीरें बच गयी। वें इसलिए कि बेलन के नीचे कुछ कड़े कंकड़ बच ही जाते हैं। छोटे जागीरदारों में आनंद राय भी था। उसके पास ताम्र पात्र थे। छीन लिए गए और बदले में काग़ज़ पर नक़ल दे दी गयी। 

औरों की तरह आनंद राय से भी पूछा गया, “नौकरी करोगे?”

कौन सी?”

पटवारगिरी।

नहीं कर सकूँगा। खेती से पेट पाल लूँगा।

नायब थानेदारी करोगे?”

कर लूँगा।

जहां सैंकड़ों और सहस्रों की तादाद में जनता के पढ़े लिखे लोग रियासत में थोड़ा वेतन भी पाकर अपनी गुजर करते थे, वहाँ रियासत के केवल थोड़े से ऊँचे कर्मचारी और छोटे छोटे जागीरदार अंग्रेज़ी राज्य में छोटे छोटे से पदों पर कुछ अधिक वेतन देकर नियुक्त कर दिए गए। बाक़ी सब बड़े बड़े पदों पर मोटा वेतन पाने वाले थोड़े से अंग्रेज मुक़र्रर हो गए। ठीक तो है - राजा की जगह अंग्रेज कमिश्नर, एक दर्जन दीवानों की जगह एक डिप्टी कमिश्नर और दो तीन अंग्रेज परगना हाकिम। सहस्रों सिपाहियों की जगह दो सौ तीन सौ अंग्रेज सैनिक। दरबार समाप्त - कवि, चित्रकार, घुरपदिये, सितारिए, नर्तकियाँ, नर्तक, साटमार, कारीगरी सब की विदा!

उनकी जगह क्लब, डाक बंगला और ऊँचे नीचे, छोटे बड़े सब हिंदुस्तानियों का अनिवार्य माथा टेकू सलाम। वह भी अर्दली को हक़ दस्तूर दो, जूते उतार कर साहब की विलायती प्रतिमा के सामने नतमस्तक जाओ, तब नसीब। कोरी,करघे, कपड़े सब ग़ायब - केवल एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिया जारी - गंगाजी के किनारों से चचाँदी सोने का शोषण करना और थेम्स जी के किनारों पर निचोड़ देना। 

हिंदुस्तान उस ओर चलाया जाने लगा जिसको आज कल की भाषा में कह सकते हैं - “महफ़िल उनकी, साकी उनका 

आँखे अपनी, बाक़ी उनका।” (अकबर इलाहाबादी)

झाँसी प्रदेश के अनेक लोग रानी के पास प्रणाम करने जाते थे और पूछते थे - “सरकार की आज्ञा हो तो अंग्रेजों की नौकरी कर लें?”

रानी उत्तर दिलवाया करती थी,”कर लो, परंतु इस बात को मत भूलना कि झाँसी राज्य में तुम्हारा कोई स्थान था।

सेठ - साहूकारों के उलाहनों के मारे रानी हैरान थी। कोई कुछ कह जाता, कोई कुछ।

आप कुछ उपाय क्यों नहीं करती?”

विलायत खरीता भेजिए। झाँसी को यों ही तो अंग्रेजों के हाथ में नहीं चला जाने देना चाहिए।

हम लोगों से जितना रुपया चाहिए हो लीजिए और मुक़द्दमा लड़ियाँ।

हम लोग साहबों के बंगलों पर सलाम करने नहीं जाना चाहते इसलिए काम से काम शहर तो अपने अधिकार में लीजिए।

हमारा सारा व्यापार ठप हो गया है। राजदरबार, सरदार कोई नहीं रहे - अब हमको कोई नहीं पूछता।

किसानों के ऊपर को लगान रियासत में क़ायम था, वह पूरा कभी वसूल नहीं हो पता था - कभी आधा कभी पर्धा। और वह भी प्रायः अन्न के रूप में। अब काग़ज़ों में लगान काम हुआ; परंतु जितना लिखा गया उसमें से वसूली कौड़ी काम नहीं की गयी - और सब सिक्कों में। भूमि का स्वामी राजा पुस्तकों में अवश्य था, परंतु नित्य के जीवन में किसान को अपनी भूमि किसी को भी देने का अधिकार था। अंग्रेज़ी राज्य में वसूली करने के लिए पहले पहल हर गाँव में ठेकेदार नियुक्त किए गए। फिर इन्ही को जिम्मेदारियाँ अता कर दी गयीं। इस श्रेणी के खड़े कर देने से किसान नीचे धसक गए। भूमी के ऊपर उनका जो अधिकार था, वह थोड़े से ज़मींदारों के हाथ पाहुँच गया। इन दोनो श्रेणियों के बीच के व्यवधान को संतुलित रखने के लिए - अथवा ज़मींदार किसान संघर्ष में किसान अभी सिर उठा पावे इसके लिए - साहब, साहब की कचहरी और साहब का बांग्ला उद्भूत हुए।

रह गयी ग्राम पंचायतें सो उनके हाथ में केवल जात-पाँत के झगड़े निबटाने का हथकंडा रह गया। बाक़ी सारी शक्ति सौतिया डाह रखने वाली अंग्रेज़ी अदालत के इजलास में चली गयी।

इंग्लैंड के कुछ आत्मनिष्ठ पुरुषों ने प्रतिवाद किए, परंतु इन प्रतिवादी का कोई प्रभाव नहीं हुआ।

इंग्लैंड सामंत युग को लांघकर, मध्यम वर्ग के नेतृत्व में चुका था। फ़्रान्स की क्रांति से घृणा करते हुए भी, इंग्लैंड के मध्यम वर्ग ने फ़्रान्स क्रांति के तीन मोहक शब्दन्याय’, ‘समताऔरभाईचाराअपने साहित्य में सोख लिए। इंग्लैंड की तत्कालीन राजनीति भी प्रभावित हुई। मध्यम वर्ग के ऐडमंड वर्क, शेरीडीन इत्यादि ने सिंहनाद किया। राजनीति के अमर सिद्धांत प्रकट हुए। मध्यम वर्ग दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ा और इंग्लैंड का अधिकार क्षेत्र उसने अपने हाथ में कर लिया।अधिकार हाथ में आते ही दायित्व ने उदारता को पीस डाला, क्योंकि निम्न वर्ग की असंख्य जनता उस अधिकार संसर्ग से दूर थी। जो मध्यम वर्ग उदार स्वरों में ऊँची राजनीति के राग अलापा करता था, वह हर कदम पर हाँ-ना के सिर हिलाने लगा। मध्यम वर्ग के उदारवृत्ति वाले जो लोग अधिकार क्षेत्र से बाहर थे, और प्रयातन करने पर भी जो उस क्षेत्र में नहीं घुस पाते थे, उसकी कौन सुनता था?

रानी ने विलायत को अपील भेजी। उसका कभी जवाब ही नहीं मिला।

पार्लियामेंट में भी थोड़ी सी बहस हुई। एक मेम्बर ने कम्पनी के डायरेक्टरों का पुराना मत उद्धृत किया।

अपने इलाक़े को और बढ़ाना बुद्धिमानी का काम नहीं है। राज्य विस्तार की नीति संकटपूर्ण है और ब्रिटिश जाती की भावना प्रतिष्ठा और नीति के प्रतिकूल है।

उस मेम्बर ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून के न्याय की भी दुहाई दी। उस मेम्बर के वाक्चातुर्य की तारीफ़ हुई और बुद्धि की निंदा।

दूसरी अगस्त सन १८५४ को अपनी सब पूर्व प्रतिज्ञाओं का विस्मरण करके ब्रिटिश सरकार ने झाँसी रण्य को अंग्रेज़ी इलाक़े में मिला लेने की मुहर लगा दी। गवर्नर जनरल की, की हुई कार्रवाई मंज़ूर कर ली गई।

चुक्खी चौधरी, मगन गंधी, लाला श्याम, झम्मी और भग्गी दाऊजू, पूरन कोरी और छंदी चमार इत्यादि सब अपनी विगत स्वतंत्रता की ओर हसरत भारी निगाहों से देखते रह गए। झलकारी कोरिन के वस्त्राभूषणों की चटक चली गई।


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अंग्रेज़ी क्लब घर के सामने वाले मैदान की दूब साफ़ कराई जा रही थी। धूप में मज़दूर हाँफ हाँफ कर काम कर रहे थे। मज़दूरों का मुखिया खड़े खड़े काम का ढंग बतला रहा था।

ऐलिस चाहता था काम ज़्यादा जल्दी हो। संध्या के पहले ही कमिश्नर स्कीन, डिप्टी कमिश्नर गार्डन और फ़ौजी अफ़सर कप्तान डनलप इत्यादि की बैठक होनी थी। कुछ फल फलारी की भी योजना थी।

झाँसी को कमिश्नरी शासन का गौरव प्राप्त हुआ। इसमें कई ज़िले शामिल कर दिए गए। झाँसी का एक अलग ज़िला बना। इस झाँसी ज़िले का पहला डिप्टी कमिश्नर कप्तान गार्डन हुआ, जो गंगाधर राव चिरौरी किया करता था। 

मैदान की सफ़ाई करने वाले मज़दूर ज़रा ढीले पड़ पड़ जा रहे थे। ऐलिस को क्षोभ हुआ। उसने मज़दूरों के मुखिया को डाँटा।

मुखिया ने कहा,”ये मुफ़्तख़ोर हैं हुज़ूर। डर के मारे मैंने अभी तक इनकी मारपीट नहीं की। अभी हड्डी पसली तोड़ता हूँ।

ऐलिस बोला, “मैं इस समय हड्डी पसली तोड़ना पसंद नहीं करता, मगर इनसे काम लो। काफ़ी पैसा दिया जाता है। जब रियासत थी तब तो इनको मुफ़्त में काम करना पड़ता था।

ऐलिस बंगले में चला गया। मुखिया ने सोचा,रियासत में काम मुफ़्त में करते थे तो रियायतें भी बहुत पाए हुए थे। लड़की लड़के के ब्याह के समय, देखें अब कौन इन लोगों की मदद करता है।

चिल्लाकर मज़दूरों का काम करने के लिए सम्बोधन करने लगा। 

पास जाकर उनसे कहा, “अब रियासत नहीं है, अंग्रेज़ी करकर उठी है। ठिकाने से काम करो नहीं तो खाल टूटती फिरेगी।

मज़दूरों ने कुड़कुड़ाते हुए कहा - “ना हमें रियासत जागीर लगाए थी, और ना अंगरेज लगा देंगे।” 

जितना खोदेंगे, उतना पावेंगे।

पर यह ज़रूर है कि अपना अपना ही है।

अपने की मार खाते थे तो उनसे लड़ भी जाते थे। इन लोगों से तो कुछ कह भी नहीं सकते।

मुखिया ने माना किया,”झंझट की बात मत करो। साहब अपनी भाषा खूब समझता है। सुन लेगा तो तुम्हारी और हमारी जान ले लेगा।

मज़दूर संध्या के पहले ही काम समापथ करके अपनी मज़दूरी लेकर चले गए। ठीक समय पर अंग्रेज अफ़सरों की बैठक हुई।

खान पान के साथ ही काम काज की बात जारी रही।

ऐलिस- “मुझको अंदेशा था कि कहीं झाँसी की जनता हटाए हुए रियासती सिपाहियों को भड़का कर, दंगा करवा दे।

डनलप - “हामरी पलटनें तैयार थी।

स्कीन - “बंदोबस्त अच्छा था।

गार्डन -“मैंने सुना है कि वें सब रानी के पास गए थे।

ऐलिस -“स्वाभाविक है।

गार्डन-“परंतु रानी ने उनको कोई प्रोत्साहन नहीं दिया। समझदार स्त्री है।

स्कीन -“मुझको उस स्त्री पर अचरज होता है। सुनता हूँ ऐसी घुड़सवार है, कि पुरुष दांतों तले उँगली दबाते हैं।

गार्डन-“हिंदुस्तानी कसरतें खूबी के साथ करती हैं।

ऐलिस-“मुझे शंका थी कि कहीं सती होने की कोशिश करे। मैं गंगाधर राव के दाह के समय कप्तान मार्टिन को ससैन्य ले गया था।

गार्डन -“मैं उन दिनों यहाँ था।

स्कीन-“इस प्रदेश के लोग शांति प्रिय और क़ानून भक्त हैं। यहाँ पहले दो बात सरकारी अमल रह चुका है, इसलिए हमारा शासन पसंद करते हैं। मालूम इस रियासत के सादे और गंदे वातावरण में यहाँ की जनता कैसे साँस लेती रही?”

ऐलिस -“ यह पूर्व है। जनता में मानो जान ही नहीं। मध्यम वर्ग यहाँ नाम मात्र को भी नहीं है। राजा जनता के भेड़िया धसान को डंडे के सिरे से हांकते रहते हैं।

डनलप - हमारा शासन उसको क़ानून और न्याय देगा। व्यवस्थित शासन में ये लोग समृद्ध और सुखी होंगे।

स्कीन -“यहाँ के बड़े लोगों को अपने पास बुलाते रहना चाहिए।वे लोग जैन समाज के मुखिया हैं। इनको हाथ में रखने से शासन में विघ्न बाधा उपस्थित होगी और जिन लोगों के माँ में रियासत की भावनाओं का पक्षपात होगा, वे भी बिलकुल ढल जावेंगे।

गार्डन -“ठीक है। हम लोग उनको जागीरें नहीं दे सकते। लेकिन उपाधियाँ दे सकते हैं। वें उपाधियों को काफ़ी बड़ा पुरस्कार समझेंगे।

स्कीन -“अली बहादुर नवाब यहाँ का बड़ा आदमी है। विश्वसनीय है मुझसे मिला है। बहुत शिष्ट है। उसको बराबर मुलाक़ात देना चाहिए।

ऐलिस -“मैं चार्ज हवाला करते समय गार्डन को समझा दिया है। नवाब अली बहादुर अपनी पेन्शन बढ़वाना चाहता है। यह नहीं हो सकता। उससे साफ़ कहना होगा, मगर उसको नवाब की उपाधि आजीवन दी जा सकती है।

गार्डन -“मैंने उसको हवेली वापिस करवा दी है। वह  बहुत कृतज्ञ है।

स्कीन-“ठीक किया। अगर उसके कोई लड़का हो तो तहसीलदार बना दिया जावे।

ऐलिस -“लड़का तो है, किंतु वह उससे नौकरी नहीं कराना चाहता।

स्कीन -“क्यों? हमारे तहसीलदारों को बहुत अख़्तियार है। हम तहसीलदारों को कुर्सी देते हैं। उनको जूता पहने दफ़्तर में आने देते हैं।

गार्डन -“हाँ इस बात में काले आदमी बड़ा गौरव देखते हैं।

स्कीन -“बनियों महाजनों को भी बुलाना चाहिए। इन लोगों के ब्याज का जनता पर बहुत असर चलता है। व्योपार और रोज़गार का अब बहुत अच्छा सुभीता हो गया है। यहाँ से लेकर बम्बई तक बेखटके माल जा सकता है। उनको विलायत का माल शहर और देहातों में बेचने से बहुत मुनाफ़ा मिल सकता है। थोड़े दिनों में मालामाल हो जावेंगे।

ऐलिस -“आज मैंने उनमें से खस खस को बुलवाया है। नवाब अली बहादुर को इशारा कर दिया था।

स्कीन -“मुझको मालूम है। गार्डन ने बतलाया था। उनसे कहना चाहिए कि झाँसी में रेल भी किसी दिन जावेगी और महीनों की यात्रा दिनों में हो ज़ाया करेगी। रेल के अरिए वे लोग सहज ही अपने तीर्थों को दर्शन के लिए जा सकते हैं।

ऐलिस -“कुछ स्कूल खोलना पड़ेंगे।

स्कीन -“वह पीछे देखा जाएगा। फ़िलहाल अस्पतालों और अच्छी सड़कों की चिंता करनी होगी।

गार्डन -“लेकिन मनचाहे सरकारी नौकर, हिंदुस्तानियों में तभी इस ज़िले में मिल सकेंगे, जब उन्हें हामरी शिक्षा मिल जाए।

स्कीन -“हाँ कुछ दिनों बाद बाबुओं की ज़रूरत पड़ेगी।

गार्डन -“परंतु केवल बाबू वर्ग उत्पन्न करने के लायक़ शिक्षा देने की नीति को पूरा पूरा स्वीकृत नहीं किया गया है।

स्कीन -“हाँ वह बात कलकत्ता, मद्रास, आगरा इत्यादि के लिए है। झाँसी सरीखी पिछड़ी हुई जगह और बुंदेलखंड से वनखंड के लिए नहीं है। यहाँ तो जो स्कूल खोला जाए, उसे मिडिल से आगे मात ले जाओ मैं नहीं चाहता कि हिंदुस्तानी छोकरे, एडमंड बर्क की मदिरा पीके मतवाले हो जाएँ।

ऐलिस -“तजुर्बा गार्डन को सब सिखला देगा।

सोने की मोटी साँकल से ठगी हुई घड़ी को स्कीन ने जेब से निकाला। समय को देखकर बोला, “ऐलिस, तुम्हारे मुलाकाती अभी नहीं आए हैं।समय हो गया है।

ऐलिस ने कहा, “इन लोगों के धर्म में सब कुछ अनंत है, इसलिए समय की पाबंदी की महत्व नहीं देते।उठकर एक तरफ़ गया। लौटकर आकर बोला।

गए हैं। मैंने झांक कर देखा। पूरा पूर्वीय ठाठ है। पगड़ी, पग्गड, फ़ेट दुपट्टे। हाथों गालों और पैरों तक में ज़ेवर।

गार्डन ने राजसी मुस्कुराहट के साथ कहा, “मैंने दरबारों में यह सब ठाठ देखा है।

स्कीन -“यह भी दरबार है गार्डन। डिप्टी कमिश्नर साहब बहादुर का दरबार।स्कीन हंसा।सब अंग्रेज हंसे।

स्कीन बोला, “हम लोग जाते हैं। ऐलिस और डनलप के सिवाय और किसी की ज़रूरत नहीं।

स्कीन इत्यादि गए। ऐलिस वाली कोठी में एक कमरा लम्बा चौड़ा था। उसी मेंदरबारकी योजना की गई थी। एक ऊँचे चबूतरे पर भी एक और चबूतरा था। उस पर दो कुर्सियाँ थी। उन पर ऐलिस और गार्डन जा बैठे। नीचे वाले चबूतरे पर आमने सामने दो कुर्सियाँ पड़ी हुई थी। एक पर डनलप बैठ गया। दूसरी ख़ाली थी। चबूतरे के नीचे ऐलिस का पेशकार खड़ा था।

थोड़ी देर में बस्ती के आदमी, सेठ, साहूकार इत्यादि आए और प्रणाम करके खड़े हो गए। उनमें नवाब अली बहादुर भी थे।

ऐलिस ने पेशकार को इशारा किया। वह नवाब अली बहादुर को चबूतरे के पास लिव लाया। उन्होंने झुक कर प्रणाम किया। ऐलिस ने उनको नीचे वाले चबूतरे की ख़ाली कुर्सी पर बिठला लिया।

नवाब साहब की बाँछे खिल गयी।

पेशकार ने बस्ती के सब लोगों को फ़र्श पर लगी हुई कुर्सियों पर बिठलाया। सन्नाटा छा गया।

ऐलिस ने खड़े हो कर बोला, “हमने अपना काम कप्तान गार्डन साहब बहादुर को सौंप दिया है। कमिश्नर साहब बहादुर अभी हम लोगों को हुक्म दे गए हैं कि आप लोगों की और प्रजा की भलाई पर खूब ध्यान दिया जाए।आप लोगों की कुशल क्षेम हम लोगों की चिंता का दिन रात कारण रहेगा। खूब बेखटके रोज़गार करिए। वहाँ से बम्बई तक अमन चैन क़ायम है। चोर उचक्कों को कुचलने के लिए हमारे हाथ में बहुत बड़ी ताक़त है। आप अपने अपने धर्म का पालन, दूसरों को नुक़सान पहुँचाए बग़ैर, चाहे जैसा करिए। हमको उससे कोई सारोकार नहीं। हालाँकि हम समझते हैं कि हमारा ईसाई धर्म सर्वश्रेष्ठ है। बहुत जल्दी मदरसे खोले जाएँगे। आपकी भाषा के साथ साथ अंग्रेज़ी भी पढ़ाई जावेगी, जिससे आप लोगों की संतान विलायत की अच्छी बातों को भी जान सके। अच्छे पढ़े लिखे हिंदुस्तानियों को, बड़ी बड़ी नौकरियाँ दी जावेंगी, जिससे आप लोग शासन में हाथ बँटा सकें। अदालतें क़ायम कर दी गयी हैं। सब लोग बिना संकोच के इन अदालतों में अपनी फ़रियाद पेश कर सकते हैं। न्याय किया जावेगा। किसी के साथ रियायत की जावेगी। अपराधियों को जो दंड दिए जावेंगे वे कठोर होते हुए भी अमानुषिक नहीं होंगे - किसी का भी हाथ पैर नहीं कटवाया जा सकेगा, किसी को भी बिच्छुओं से नहीं कटवाया जा सकेगा। आप लोग सुखी हों, हम अंग्रेज केवल यही चाहते हैं। आप लोगों में से किसी को कुछ कहना हो, तो कह सकते हैं।

ऐलिस बैठ गया। झाँसी के उपस्थित लोग एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।

एक साहूकार मगन गन्धी बोला, “हुज़ूर से हमको केवल एक बिनती करनी है। हमारे देश में पहले कभी गाय नहीं काटी गयी। मुसलमान बादशाहों ने भी कभी इस बात को नहीं होने दिया। आपकी अमलदारी होते ही इसका आरम्भ हो गया। इसको बंद कर देना चाहिए, आप शक्तिशाली हैं।

ऐलिस ने बैठे बैठे ही कहा, “आपकी बस्ती में तो यह जानवर नहीं काटा जाता - सिर्फ़ छावनी में खाने वालों के लिए विवश होकर ऐसा किया जाता है।

मगन गन्धी बैठ गया। उसने अपनी आँख का एक आंसू पोंछा। 

ऐलिस ने धीरे से गार्डन से कहा, “a sentimental fool (एक भावुक मूर्ख)

अली बहादुर ने ऐलिस और गार्डन की ओर ताक, जैसे कुछ कहना चाहते हों। उन्होंने अनुमति दी।

अली बहादुर बोले, “हम लोग परमात्मा को धन्यवाद देते हैं, कि महान कम्पनी सरकार का राज्य हो गया है। हमारे हाकिम बहुत नेक हैं। शहर और इलाक़े का बहुत अच्छा, बेमिसाल बंदोबस्त कर रहे हैं। सब लोग चैन से अपने घर सोते हैं। चोर, उठाईगीरे लापता हो गए हैं। किसी को कोई कष्ट नहीं। अब मदरसे और पाठशालाएँ खुलेंगी। सारा देश झकाझक हो जावेगा। आप लोगों का व्योपार बढ़ेगा और आप मालामाल हो जावेंगे।

अली बहादुर बैठ गए। 

पीछे की कुर्सी पर बैठा हुआ एक सेठ हँसना चाहता था, परंतु उसकी हंसी मुस्कुराहट में परिवर्तित हो गयी। ऐलिस और गार्डन ने देख लिया। गार्डन ने दरबार को समाप्त करने के लिए धीरे से अनुरोध किया। ऐलिस ने दरबार समाप्त किया। 

वह 'पूर्वीय दरबारइत्रपान की अनुपस्तिथि की विशिष्ट था। सेठ साहूकार कोरेकोरे फीके घर लौट आए। 

सब लोगों के चले जाने पर ऐलिस ने गार्डन से कहा। स्कीन की मार्फ़त आज की कार्रवाई की सूचना लेफ़्टिनेंट गवर्नर के पास अगर भेज देना।

अली बहादुर चतुर और प्रभावशाली है आदमी है। इसको हाथ में रखना। ठाकुर मुश्किल में दबेंगे। परंतु उनको दबाना है अवश्य। यदि इनकी जाति के कुछ लोगों को पुलिस का थानेदार बना सको, तो अच्छा होगा। रानी अगर बुलाए तो चले जाना, परंतु उसको कोई वचन देना क्योंकि उसके मामले में अब और कुछ नहीं हो सकता। मदरसों के खोलने की जल्दी मत करना। नौकरियाँ देने में हिंदू मुसलमानों का लाभकारी समीकरण रखना और यथाशक्ति दोनों को उनके अलग अलग हक़ समझते रहना।

गार्डन बोला, “मैं मूर्ख नहीं हूँ। मैंने शिक्षा नीति के सम्बंध में जो बात कहीं थी वह केवल यह देखने को की स्कीन कितने गहरे पानी में।

ऐलिस -“स्कीन खुर्राट है।




Part #9 ; Part #11

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