Jhansi Ki Rani - Lakshmibai #18 - Vrindavan Lal Verma

इस कहानी को audio में सुनने के लिया पोस्ट के अंत में जाएँ। 56 संध्या के पहले बरवासागर के मुखिया और पाँच रानी से मिलने के लिए आए। नज़र न्योछावर हुई। रानी ने सबसे कुशलक्षेम की वार्ता की। जब एकांत पाया थानेदार ने रानी को सागर सिंह के विषय में सूचना दी। मालूम हुआ कि खिसनी के जंगल में आश्रय पाए हुए हैं। खिसनी का जंगल बरवासागर से १२ मील था। थानेदार को उन्होंने आदेश दिया। “ सवेरे आठ बजे तैयार रहना किसी को मालूम न होने पावे। ” सवेरे सब तैयार हो गए। ठीक समय पर उन्होंने मोतीबाई को बुलाकर कहा , “ तुम यहीं रहो। खुदाबख्श की मरहम पट्टी और देख भाल करना। ” मोतीबाई ने पलकें नीची की। बोली , “ मैं तो सरकार की सेवा में चलूँगी। क्या किसी ने प्रार्थना की है ?” “ नहीं , मैं ही कह रही हूँ ”, रानी ने उत्तर दिया। मोतीबाई ने चलने का हाथ किया। उनकी अन्य सहेलियों ने भी अनुरोध किया। रानी माँ गयी। रानी अपनी और बरवासागर के थाने की टुकड़ी को लिए ...